इस जग में आने से पहले
मैं कौन से जग में था ,
जल में था या थल में था
आकाश में था , पाताल में था
मैं कौन शक्ल में था ।

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कौन नाम था , कौन काम था
कौन दशा थी , कौन दिशा थी
प्रिय जन मेरे , कौन कौन
इसी लोक या और लोक
था कौन पता मेरा ।

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कैसे उस देही को छोड़ा
कैसे नव शरीर में आया
आने जाने के इस क्रम में
कब से आया जाया ।

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केह कारण , देहों को त्यागा
देह नई केह कारण पाया
इस जग में आने से पहले
किस जग से आया ।

———–राजीव जायसवाल

यह जीवन
प्रारंभ नहीं है
न ही अंत है
यह जीवन ,
आने जाने का देहों में
चलता है
अनवरत क्रम ।

This life is neither beginning nor end .
Since inception of life in this universe , we are travelling from one body to another body .———–राजीव जायसवाल

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