सुशील कुमार जायसवाल

जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्म बंगाल के बरीसल जिले के मइसकड़ी में हुआ था । वो एक पिछड़ी जाति से आते थे, इनकी माता का नाम संध्या और पिताजी का नाम रामदयाल मंडल था । जोगेन्द्रनाथ मंडल 6 भाई बहन थे जिनमे ये सबसे छोटे थे । जोगेंद्र ने सन 1924 में इंटर और सन 1929 में बी. ए. पास कर पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पहले ढाका और बाद में कलकत्ता विश्व विद्यालय से पूरी की थी । सन 1937 में उन्हें जिला काउन्सिल के लिए मनोनीत किया गया । इसी वर्ष उन्हें बंगाल लेजिस्लेटिव काउन्सिल का सदस्य चुना गया । सन 1939,40 तक वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीब आये मगर, जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि कांग्रेस के एजेंडे में उसके अपने समाज के लिए ज्यादा कुछ करने की इच्छा नहीं है ।

 

 

1940 की वह घटना जब परतन्त्र भारत के सबसे कद्दावर जनाधार वाले दलित नेता ‘जोगेंद्र नाथ मंडल’ के बढ़ते प्रभाव से घबराकर तत्कालीन कांग्रेस पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखला दिया था तो निराश-हताश मंडल ने मुस्लिम लीग का हाथ थाम लिया था । मुस्लिम लीग वालों ने मंडलजी को मुस्लिम-दलित समीकरण का हरा-हरा सब्ज़बाग दिखाकर असम और बंगाल अवस्थित सियलहेट और आस-पास के दलित हिन्दू बहुलता वाले भूखंड के लोगों को उनके माध्यम से पाकिस्तान में सम्मिलित हो जाने के वास्ते पाकिस्तान के पक्ष में वोट करने के लिए राजी करवाया । श्री मंडल को डालिमा में डाले रखने के लिए उनसे पाकिस्तान के संविधान लिखवाए जाने में भूमिका अदा करवाई गई । पाकिस्तान बन जाने के बाद उन्हें वहाँ का कठपुतली कानून और श्रम मंत्री बनाया गया और उनके आँखों के सामने अल्पसंख्यक हिंदुओं का नरसंहार, धर्मान्तरण और विभिन्न उत्पीड़न शुरू हो गया । मंडल चिल्लाते रहें लेकिन वजीरे आज़म लियाक़त अली ने अपने कान बंद कर लिए । यहाँ तक कि स्वयं मंडलजी का परिवार भी उत्पीड़न का शिकार हुआ और वे समझ गए कि उनके पास विकल्प बहुत ही सीमित है । मात्र 3 साल बाद अर्थात 1950 में मंडल जैसे बड़े जनाधार वाले नेता लियाक़त अली को आक्रोश पूर्ण स्तीफा सौंपकर शरणार्थी बन भारत आ गए और यहीं 18 सालों तक गुमनामी की जिंदगी जीते हुए 5 अक्टूबर 1968 में मृत्यु को प्राप्त हुए । जोगेंद्र नाथ मंडल और उनका परिवार स्वयं तो भारत आकर सुरक्षित हो गए परन्तु लाखों हिन्दू परिवार जो मंडलजी और मुस्लिम लीग के बहकावे में आकर पाकिस्तान को चुना था वो आज भी जानवरों से भी बद्तर जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त है ।
कभी-कभी इतिहास अपने आप को दुहराता भी है । एक सोंची-समझी साजिश के तहत कुछ पार्टी के लोग आजकल एक नारा बुलंद करने में लगे हैं, “जय भीम! जय मीम!! । भीम तो बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर जी हैं लेकिन मीम क्या है ? जी हाँ मीम (MIM) है ”मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन”‘ जो आज मुस्लिम लीग का ही एक परिवर्तित स्वरुप है ।

जोगेंद्र नाथ मंडल मुस्लिम लीग के खास सदस्यों में से एक थे । लेकिन पाकिस्तान जाने के बाद उनका क्या हाल हुआ यह उनके पत्र. जो उन्होंने उस वक्त पाकिस्तानी मंत्रीमंडल से त्यागपत्र देते हुए अपने पत्र में उल्लेख किया है.

संयोजक – कृषि नीति एवं अनुसंधान प्रकोष्ठ, भाजपा बिहार

One thought on “जीवनी: जोगेंद्र नाथ मंडल”
  1. जिन्ना की मौत के बाद मंडल 8 अक्टूबर, 1950 को लियाकत अलीखां के मंत्री मंडल से त्याग पत्र देकर भारत आ गये ।

    जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने खत में मुस्लिम लीग से जुड़ने और अपने इस्तीफे की वजह को स्पष्ट किया, जिसके कुछ अंश यहाँ है । मंडल ने अपने खत में लिखा, ‘बंगाल में मुस्लिम और दलितों की एक जैसी हालात थी । दोनों ही पिछड़े, मछुआरे, अशिक्षित थे । मुझे आश्वस्त किया गया था लीग के साथ मेरे सहयोग से ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे बंगाल की बड़ी आबादी का भला होगा । हम मिलकर ऐसी आधारशिला रखेंगे जिससे साम्प्रदायिक शांति और सौहादर्य बढ़ेगा । इन्ही कारणों से मैंने मुस्लिम लीग का साथ दिया । 1946 में पाकिस्तान के निर्माण के लिये मुस्लिम लीग ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ मनाया । जिसके बाद बंगाल में भीषण दंगे हुए । कलकत्ता के नोआखली नरसंहार में पिछड़ी जाति समेत कई हिन्दुओ की हत्याएं हुई, सैकड़ों ने इस्लाम कबूल लिया । हिंदू महिलाओं का बलात्कार, अपहरण किया गया । इसके बाद मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया । मैने हिन्दुओ के भयानक दुःख देखे जिनसे अभिभूत हूँ लेकिन फिर भी मैंने मुस्लिम लीग के साथ सहयोग की नीति को जारी रखा ।

    14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बनने के बाद मुझे मंत्रीमंडल में शामिल किया गया । मैंने ख्वाजा नजीममुद्दीन से बात कर ईस्ट बंगाल की कैबिनेट में दो पिछड़ी जाति के लोगो को शामिल करने का अनुरोध किया । उन्होंने मुझसे ऐसा करने का वादा किया । लेकिन इसे टाल दिया गया जिससे मै बहुत हताश हुआ ।

    मंडल ने अपने खत में पाकिस्तान में दलितों पर हुए अत्याचार की कई घटनाओं जिक्र किया उन्होंने लिखा, ‘गोपालगंज के पास दीघरकुल (Digharkul ) में मुस्लिम की झूटी शिकायत पर स्थानीय नमोशूद्राय लोगो के साथ क्रूर अत्याचार किया गया । पुलिस के साथ मिलकर मुसलमानों ने मिलकर नमोशूद्राय समाज के लोगो को पीटा, घरों में छापे मारे । एक गर्भवती महिला की इतनी बेरहमी से पिटाई की गयी कि उसका मौके पर ही गर्भपात हो गया निर्दोष हिन्दुओ विशेष रूप से पिछड़े समुदाय के लोगो पर सेना और पुलिस ने भी हिंसा को बढ़ावा दिया । सयलहेट जिले के हबीबगढ़ में निर्दोष पुरुषो और महिलाओं को पीटा गया । सेना ने न केबल लोगो को पीटा बल्कि हिंदू पुरुषो को उनकी महिलाओं सैन्य शिविरों में भेजने के मजबूर किया ताकि वो सेना की कामुक इच्छाओं को पूरा कर सके । मैं इस मामले को आपके संज्ञान में लाया था, मुझे इस मामले में रिपोर्ट के लिये आश्वस्त किया गया लेकिन रिपोर्ट नहीं आई ।

    खुलना (Khulna) जिले कलशैरा (Kalshira) में सशस्त्र पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो ने निर्दयता से पुरे गाँव पर हमला किया । कई महिलाओं का पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो द्वारा बलात्कार किया गया । मैने 28 फरवरी 1950 को कलशैरा और आसपास के गांवों का दौरा किया । जब मैं कलशैरा में आया तो देखा यहाँ जगह उजाड़ और खंडहर में बदल गयी । यहाँ करीबन 350 घरों को ध्वस्त कर दिया गया । मैंने तथ्यों के साथ आपको सूचना दी ।

    ढाका में नौ दिनों के प्रवास के दौरान में दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया । ढाका नारायणगंज और ढाका चंटगाँव के बीच ट्रेनों और पटरियों पर निर्दोष हिन्दुओ की हत्याओं ने मुझे गहरा झटका दिया । मैंने ईस्ट बंगाल के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर दंगा प्रसार को रोकने के लिये जरूरी कदमों को उठाने का आग्रह किया । 20 फरवरी 1950 को मैं बरिसाल (Barisal) पहुंचा । यहाँ की घटनाओं के बारे में जानकार में चकित था । यहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओ को जला दिया गया । उनकी बड़ी संख्या को खत्म कर दिया गया । मैंने जिले में लगभग सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया । मधापाशा (Madhabpasha) में जमींदार के घर में 200 लोगो की मौत हुई और 40 घायल थे । एक जगह है मुलादी (Muladi ), प्रत्यक्षदर्शी ने यहाँ भयानक नरक देखा । यहाँ 300 लोगो का कत्लेआम हुआ । वहां गाँव में शवो के कंकाल भी देखे नदी किनारे गिद्द और कुत्ते लाशो को खा रहे थे । यहाँ सभी पुरुषो की हत्याओं के बाद लड़कियों को आपस में बाँट लिया गया । राजापुर में 60 लोग मारे गये । बाबूगंज (Babuganj) में हिन्दुओ की सभी दुकानों को लूट आग लगा दी गयी ईस्ट बंगाल के दंगे में अनुमान के मुताबिक 10000 लोगो की हत्याएं हुई । अपने आसपास महिलाओं और बच्चो को विलाप करते हुए मेरा दिल पिघल गया । मैंने अपने आप से पूछा, ‘क्या मै इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था ।”

    मंडल ने अपने खत में आगे लिखा, ‘ईस्ट बंगाल में आज क्या हालात हैं? विभाजन के बाद 5 लाख हिन्दुओ ने देश छोड़ दिया है । मुसलमानों द्वारा हिंदू वकीलों, हिंदू डॉक्टरों, हिंदू व्यापारियों, हिंदू दुकानदारों के बहिष्कार के बाद उन्हें आजीविका के लिये पलायन करने के लिये मजबूर होना पड़ा । मुझे मुसलमानों द्वारा पिछड़ी जाति की लडकियों के साथ बलात्कार की जानकारी मिली है । हिन्दुओ द्वारा बेचे गये सामान की मुसलमान खरीददार पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं । तथ्य की बात यह है पाकिस्तान में न कोई न्याय है, न कानून का राज इसीलिए हिंदू चिंतित हैं ।

    पूर्वी पाकिस्तान के अलावा पश्चिमी पाकिस्तान में भी ऐसे ही हालात हैं । विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में 1 लाख पिछड़ी जाति के लोग थे उनमे से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित किया गया है । मुझे एक लिस्ट मिली है जिसमे 363 मंदिरों और गुरूद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं । इनमे से कुछ को मोची की दुकान, कसाईखाना और होटलों में तब्दील कर दिया है मुझे जानकारी मिली है सिंध में रहने वाली पिछड़ी जाति की बड़ी संख्या को जबरन मुसलमान बनाया गया है । इन सबका कारण एक है । हिंदू धर्म को मानने के अलावा इनकी कोई गलती नहीं है ।

    जोगेंद्र नाथ मंडल ने अंत में लिखा, ‘पाकिस्तान की पूर्ण तस्वीर तथा उस निर्दयी एवं कठोर अन्याय को एक तरफ रखते हुए, मेरा अपना तजुर्बा भी कुछ कम दुखदायी, पीड़ादायक नहीं है । आपने अपने प्रधानमंत्री और संसदीय पार्टी के पद का उपयोग करते हुए मुझसे एक वक्तव्य जारी करवाया था, जो मैंने 8 सितम्बर को दिया था । आप जानतें हैं मेरी ऐसी मंशा नहीं थी कि मै ऐसे असत्य और असत्य से भी बुरे अर्धसत्य भरा वक्तव्य जारी करूं । जब तक मै मंत्री के रूप में आपके साथ और आपके नेतृत्व में काम कर रहा था मेरे लिये आपके आग्रह को ठुकरा देना मुमकिन नहीं था पर अब मै इससे ज्यादा झूठे दिखाबे तथा असत्य के बोझ को अपनी अंतरात्मा पर नहीं लाद सकता । मै यह निश्चय किया कि मै आपके मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफे का प्रस्ताव आपको दूँ, जो कि मै आपके हाथों में थमा रहा हूँ । मुझे उम्मीद है आप बिना किसी देरी के इसे स्वीकार करेंगे । आप बेशक इस्लामिक स्टेट के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस पद को किसी को देने के लिये स्वतंत्र हैं ।

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