कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक: भोगा यथार्थ 7

रमेश उपाध्याय
नवम्बर 2005 के उत्तरार्ध में कटिहार में क्षेत्रीय प्रबन्धक का प्रभार लिया ।हमारे बैंक के सातों जिलों में केवल कटिहार ही भा रिजर्व बैंक की परिभाषा में शहरी क्षेत्रथा । अर्थात सेवा के 28 वर्ष बाद मैं शहर पहुँच सका ।बीच बाजार व घनी आबादी के बीच शाखा सह क्षेत्रीय कार्यालय का भवन था लेकिन जरूरत के हिसाब से पर्याप्त नहीं था। खैरियत यही थी कि यहाँ भी रहे मेरे पूर्ववर्ती श्री आजाद प्रसाद नया भवन तय कर गये थे। लेकिन फिर नये भवन में जाने व सजाने का यशलाभ तो मुझे ही मिला ।
कटिहार में निवास की व्यवस्था हो जाने के बाद मैं सपरिवार कटिहार आ रहा था । रास्ते में रौतारा शाखा पर रुक गया ।यहाँ का भवन बहुत पुराना था।अच्छा भवन मेरी प्राथमिकता रहा है ।शाखा प्रबन्धक श्री आनंद वर्मा थे । उनसे नया भवन तलाशने की सलाह देकर कटिहार आया । भवन की समस्या तो वहाँ थी ।खैर ,उसी भवन के सामने ही मुख्य सड़क पर पहली मंजिल पर भवन बनवाने का काम श्री अशोक कुमार चौधरी के कार्यकाल मे सम्पन्न हो सका ।कटिहार में भी पुनर्स्थापन का प्रभाव देखिये । फतेहपर शाखा से कटिहार बाजार ,गोआगाछी से मनिहारी ,आले-पुर से बारसोई बाजार ,सेमापुर से गुरुबाजार ,सिरसिया से कोढा व घोडदह से सोनैली में पुनर्स्थापन हुआ था ।उस जिला के निवासी एवं बैंक कर्मियों को ही इसके प्रभाव का अनुभव हो सकता है । भले ही कुछ साथियों को इसका उल्लेख बेवजह लगेगा लेकिन कोशी की यादों के साथ यह प्रयास भी जीवन्त रहे यही मेरी मनसा है ।
यह पुनर्स्थापन का काम श्री विजय कुमार सिंह क्षेत्रीय प्रबन्धक के कार्यकाल मे ही सम्पादित हो गया था । कटिहार क्षेत्र तथा यहाँ के सहकर्मी मेरे लिए अपरिचित नहीं थे।इसलिए काम करने में मुझे असुविधा नहीं हुई ।
हर जिला की तरह यहाँ भी जिला के पदाधिकारियों से समन्वय स्थापित हो गया ।कटिहार में मेरे लगभग दो वर्ष छ: माह के कार्यकाल में तीन डी एम व तीन डी डी सी आये गये लेकिन सम्बन्ध यथावत रहा । इधर जिला परिषद के अध्यक्ष के रूप में मोहतरमा ईशरत परबीन के चुनाव के साथ सांस्थिक जमा की संभावनाएं और बढ़ गयीं ।इनके पति जनाब जाकिर हुसैन से पहले से ही अच्छे ताल्लुकात थे। श्री मिथिलेश कुमार सिंह डी डी सीबड़े भद्र व्यक्ति थे।उन्होंने भी बैंक को बहुत सहयोग किया था ।
मेरे योगदान के एक माह के बाद ही 23 दिसम्बर को बैंक का स्थापना दिवस था ।श्री धर्मेन्द्र कुमार ओझा ने सुझाव दिया कि कटिहार में ही इसका आयोजन किया जाय ।श्री अशोक चौधरी ,श्री रवि घोष व श्री प्रफुल्ल कुमार श्रीवास्तव ने भी आयोजन का समर्थन किया ।अध्यक्ष श्रीपी सी श्रीवास्तव ने न केवल सहमति जताई बल्कि उसीदिन बोर्ड की बैठक भी बुला ली ।सहमति के बाद ओझा जी और चौधरी जी ने स्कूल के बच्चों कीं भागीदारी के लिए स्कूल प्रबन्धकों से सम्पर्क किया था ।संयोग देखिए कि जिस दिन हमारा कार्यक्रम टाउन हाल में था उसी समय मेरे मित्र व एम ए के सहपाठी जिला पदाधिकारी श्री सुरेन्द्र कुमार का विदाई समारोह था ।बड़ी अजीब हालत थी । खैर,मैंने मा- जिला न्यायाधीश सिंह साहब सेसम्पर्क कर उद्घाटन के लिए सहमति ली ।अब आयोजनसफल हो इसकी चिंता सताने लगी ।
आखिर 23 दिसम्बर भी आ गया । निर्धारित समय पर खचाखच भरे टाउन हाल में मा न्यायाधीश ने आयोजन का उद्घाटन किया ।मुश्किल से थोड़े समय के लिए डी डी सी आ सके विदाई समारोह के कारण । बैंक के अध्यक्ष श्रीवास्तव जी निदेशक मंडल के सदस्यों के साथ पहुँचे और नृत्य,संगीत व गायन का आनंद लिए ।जिसने भी कार्यक्रम देखा उन्मुक्त कंठ से प्रशंसा किया ।अपने बैंक के अधिकारी श्री पी सी राय की बेटी ने भी मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया था ।ओझा जी का मंच संचालन बहुत प्रभावी रहा था ।सर्वश्री रवि घोष,अशोक कुमार चौधरी ,आई के झा,पी के श्रीवास्तव,गणेश यादव व अन्य मित्रों ने आयोजन को सफल बनाने में सक्रिय सहयोग किया ।
श्रीवास्तव जी के कार्यकाल बहुत बढ़िया व सुखद रहा ।मुझसे भी मर्यादित संबंध रहा ।अप्रिल 2006 में श्रीवास्तव जी का स्थानांतरण हो गया और 18-4-2006 को उनका विदाई समारोह हुआ । वे कटिहार से ही ट्रेन पकड़ने वाले थे इसलिए उन्हें विदा करने के लिए कटिहार के एक होटल में हमने भी एक समारोह आयोजित किया ।समारोह के बाद स्टेशन जाते समय गाड़ी में श्रीवास्तव जी ने कहा कि उपाध्याय जी आपको कटिहार पहले आना चाहिए था ।क्यों ? बेहतर वही जानते थे । खैर,एक सुलझे,विवेकशील व मिलनसार अध्यक्ष के रूप मे वे याद रहेंगे ।
दिनांक 25-4-2006 को श्री बी मंडल ने अध्यक्ष का प्रभार ग्रहण किया ।मंडल जी भी सकारात्मक सोच वाले कर्मनिष्ठ व्यक्ति थे ।यद्यपि उनका कार्यकाल अठारह माह से भी कम रहा लेकिन इस कम अवधि में वे अमिट छाप छोड़ गए । उनके कार्यकाल में भी मैंने पहले की तरह दो वसूली करने व दस्तावेजों के नवीकरण का अभियान चलाया और एक दिन में प्रत्येक में एक करोड़ रुपये के वसूली के लक्ष्य को शाखाओं के सहयोग से प्राप्त किया । भद्र व तेज तर्रार मंडल साहब 12-10-2007 को विदा हो गये । 15-10-2007 को श्री के के सिंह ने अध्यक्ष का प्रभार लिया ।
मेरे कार्यालय में श्री कुमुद नारायण ठाकुर तथा श्री एन के सिन्हा अधिकारी पदस्थापित थे । इन्होंने हर आयोजन व अभियान में मेरा सक्रिय साथ दिया था । स्व मानिक चन्द्र विश्वास की पुत्री सुश्री अर्चना विश्वास की नियुक्ति अनुकम्पा के आधार पर मेरे ही कार्यालय में मेरे समय र्मे हुई थी । वह कुछ दिनों में ही कार्यालय का सब काम समझ गयी थी ।मुझे खुशी है कि वह अपनी योग्यता के
बल पर आज अधिकारी पद पर कार्यरत है ।
मेरे समय में कटिहार के कुर्सैला व शरीफगंज में नयी शाखायें भी खुली ।शाखायें अच्छे भवन में रहें यह सदा ही मेरा प्रयास रहा।यहाँ भी मैंने रौतारा, चाँदपुर, हफलागंज, मल्लिकपुर ,सोनैली,रोसना शाखाओं का भवन बदला।मुझे अफसोस है कि राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण भेलागंज शाखा का पुनर्स्थापन नहीं किया जा सका जबकि वहाँ लम्बे समय से स्टाफ को समस्या थी ।
कटिहार की एक दुःखद घटना याद आ गयी ।नाम याद नहीं आ रहा था तो सबके कठिन समय के साथी श्री अरविंद उपाध्याय से नाम ही नहीं परिवार की वर्तमान स्थिति की भी जानकारी मिली ।स्व अनिल चन्द्र ठाकुर कैंसर से पीड़ित होकर इलाज करा रहे थे इसलिए उन्हें मानवीय आधार पर मेरे ही कार्यालय में रखा गया था । वे अंग्रेजी में बहुत बढ़िया लिखते थे और उनकी एक-दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं थी ।उस समय वह काम करने की स्थिति में नहीं थे ।कुछ दिनों बाद ही उनकी दुःखद मृत्यु की असह्य वेदना का सहभागी भी बना ।अरविंद जी ने बताया कि उनके दोनों लड़के इन्जीनियर के रूप में कार्यरत हैं और उनकी बेटी की शादी भी हो गयी है ।उसने उनकी पुस्तक भी प्रकाशित करायी है ।यहीं पर ईश्वर के प्रति आस्था बढ़ जाती है और मन में आता है कि आदमी नहीं ,समय बलवान होता है ।
मैं जहाँ भी रहा सौहार्दपूर्ण परिवेश बनाने का काम किया जिससे काम करने में सुविधा होती थी।इसलिएअधिकतर सहकर्मियों से जुड़ाव हो जाता था ।यहाँ के कुछ साथियों
से मैं प्रभावित हुआ था ।श्री अशोक कुमार चौधरी से परिचित तो पहले से ही था लेकिन उनके सकारात्मक सोच और सहयोग कीं तत्परता को करीब से अनुभव किया । वे जादूगर (Watch his Jadu Show below) भी हैं और अनेकों राजनैतिक व सामाजिक संगठनों से भी सक्रिय रूप से आज भी जुड़े हुए हैं । श्री इन्द्र कुमार झा का सरल,सहज व निश्चिन्त सा हॅसमुख व्यक्तित्व किसी को भी अपनत्व बोध कराता था ।झा जी किसी व्यवस्था की जवाबदेही का सफलता पूर्वक निर्वहन करते थे ।स्व संजीव कुमार सिन्हा का हॅसमुख, बिन्दास स्वभाव व मिलनसारिता भुलाई नहीं जा सकती ।आज भी यकीन नहीं होता है कि वे हमारे बीच नहीं हैं ।
श्री के के सिंह मिलनसार व्यक्ति थे । उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा क्योंकि 1-5-2008 को कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक में विलय हो गया और वे सम्भवत: जून के अन्तिम सप्ताह में ही प्रधान कार्यालय मुजफ्फरपुर महाप्रबंधक बन कर चले गये थे ।इस बीच उन्होंने मुझे,श्री बी एन झा,महाप्रबंधक व श्री दीनबन्धु मिश्रा को प्रधान कार्यालय भेजा था कोशी की स्थिति बताने व विलय प्रक्रिया समझने के लिए ।वहाँ बैंक के अध्यक्ष श्री ए बी जोग काफी प्रभावित हुए थे ।
कुछ दिनों बाद ही जोग साहब का फोन आया कि वे कटिहार आ रहें हैं और वहीं से चलकर पूर्णिया में दोनों जिलों की संयुक्त बैठक करेंगे । पूर्णिया जाकर सब व्यवस्था कराया ।निर्धारित तिथि पर कटिहार में उनकी अगवानी कर पूर्णिया होटल पहुँचे ।इसके पश्चात शाखा प्रबन्धकों की बैठक देर तक चली । दूसरे दिन वे लौट गये थे ।बैठक में और कार्यालय दोनों जगह पर वे मुझसे प्रभावित हुए थे ।
एक दिन उनका फोन आया कि उपाध्याय जी आप पूर्णिया क्षेत्र भी जाकर काम देखिये । मैं बोला कि बिना किसी पत्र के कैसे ? उन्होने कहा था कि आप जाओ पत्र जायेगा ।खैर मैं काम देखने लगा और बाद में पत्र भी आ गया ।
जोग साहब अब स्वर्गीय हो गये हैं ।इसी अक्टूबर माह में हृदय गति रूकने से उनकी मृत्यु हुई ।क्या संयोग है कि सितम्बर माह में ही एक मित्र से जोग साहब का फोन नम्बर मिला और मैंने उनसे बात किया । बहुत प्रसन्न हुये थे ।कुछ परिचीतों का हालचाल भी पूछा था ।मैं बनारस में रहता हूँ यह जानकर बहुत खुश हुए थे और बताने लगे कि वह बनारस में क्षेत्रीय प्रबन्धक थे इसलिए बलिया तक ,उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक के अध्यक्ष के नाते छपरा से बंगाल सीमा तक और कोलकाता के आंचलिक प्रबन्धक के रूप में पूरे बंगाल से परिचित थे । मैंने राजेश जी को इसके बारे मे बताया था ।उन्होंने भी उनसे बात किया था ।क्रूर नियति के सामने हम असहाय हैं ।एक भद्र व कुशल प्रशासक मनीषी की यादें ही अब शेष हैं।
अब मैं पूर्णिया कार्यालय में बैठने लगा।कुछ दिनों बाद ही कोशी के सात जिलों को तीन क्षेत्रीय कार्यालयों क्रमश पूर्णिया ,अररिया और सहरसा में समाहित किया गया ।
इस तरह मैं 4-9-2008 को पूर्णिया का पहला क्षेत्रीय प्रबन्धक (Regional Manager) बना।
शेष अन्तिम भाग में----------
Very nice, inspirational memoir sir, motivational for new generation like me.
Memoir Publication of RRBians is very good effort of Mr Ashok Kumar Choudhary. I have been fan of Mr Choudhary since long, I was aware of his creativity now I have become his admirer. Thanks Choudhary sir.
चौधरी जी जादूगर भी हैंं मुझे आज पता चला आजतक मैं इन्हें बैंकर के साथ साथ ट्रैड यूनियन लीडर लेखक ज्योतिष एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ के रूप में जानता था. मुझे चौधरी का मित्र होने पर गर्व है. अब तो रिटायर हो गये हो इन्दौर आने का प्रोग्राम बनाओ।
माननीय उपाध्याय जी ने ऋण वसूली की चर्चा किया है, उस अवधि में.मैं गुरूबाजार शाखा में शाखा प्रबंधक था. एकदिवसीय वसूली अभियान में गुरूबाजार शाखा में 402 ऋणियों से रू० 27.21 लाख की वसूली हुई थी जो कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के लिए ऐतिहासिक तथा बैंक के इतिहास में माईलस्टोन था. जहाँ तक मुझे ज्ञात है एकदिवसीय ऋण वसूली कैंप में अभी तक का यह सर्वाधिक उपलब्धि है. उस एक दिवसीय वसूली शिविर को सफल बनाने में शाखा के कार्यालय अनुसेवक श्री देवनाथ पाठक का अभूतपूर्व सहयोग था, पाठकजी स्थानीय निवासी थे तथा उस क्षेत्र में उनकी अच्छी प्रतिष्ठा के साथ ऋणियों के बीच भी उनकी पैठ बहुत गहरी थी. इसी क्रम में स्थापना दिवस की चर्चा भी युक्तिसंगत प्रतीत होता है. वर्ष 2006 में मैं रौतारा शाखा में पदस्थापित था. शाखा में पदस्थापित कार्यालय सहायक श्री चन्द्रशेखर सिंह व दैनिक जमा अभिकर्ता श्री पंकज मिश्रा ने मुझे प्रेरित करते हुए कहा कि 23 दिसंबर बैंक स्थापना दिवस परम्परा से हटकर मनाया जाय, उनके विचार से प्रभावित होकर मैनें किसान क्लब के कार्यकर्ताओं की बैठक आयोजित किया. किसान क्लब के कार्यकर्ता तथा अन्य प्रतिष्ठित ग्रामीणों के सहयोग से कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति का गठन हुआ तथा सभी ने कार्यक्रम की सफलता के लिए भरपूर सहयोग किया. कार्यक्रम में कटिहार तथा पूर्णिया के 23 विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञ महिला तथा पुरूष चिकित्सक अपनी टीम जांच विशैषज्ञों के साथ 2500 से अधिक मरीजों का जांच तथा नि:शुल्क औषधि प्रदान किया. इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के कृषि उपकरण की प्रदर्शनी, कृषि वैज्ञानिकों का परामर्श स्टॉल, विभिन्न कृषि खाद,बीज, कीटाणुनाशक उत्पाद के विक्रेताओं ने भी अपना-अपना स्टॉल लगाकर कृष्कों को अवगत कराया. इन सबके अतिरिक्त गीत, संगीत का भी कार्यक्रम दिन भर चलता रहा. आदिवासी नृत्य इतना आकर्षक था कि बैंक अध्यक्ष माननीय बसब मंडल भी झूम उठे थे. इस मेला में दस हजार से भी अधिक ग्रामीण उपस्थित हुए थे. इस अभूतपूर्व कार्यक्रम को देखकर अध्यक्ष महोदय ने कहा कि ग्रामीण बैंक के किसी एक शाखा द्वारा इतना विशाल आयोजन अविश्वसनीय लगता है. इतने विशाल कार्यक्रम का संचालन मेरे मित्र श्री प्रफुल्ल श्रीवास्तव ने सफलता पूर्वक संचालित किया था. कार्यक्रम की सफलता में शाखाकर्मी श्री चन्द्रशेखर सिंह, श्री पंकज मिश्रा, रामरूप यादव तथा मेरे मित्र श्री अरविंद उपाध्याय के अतिरिक्त अवधेश कुमार राय, शम्भू कुमार चौबे, राजीव रंजन राय, जनार्दन मंडल, मनोज चौहान तथा राजवाड़ा पंचायत के ग्रामीणों का आर्थिक एवं सभी प्रकार का सहयोग प्राप्त हुआ था.
बहुत अच्छा लगा कि चौधरी जी ने इस संस्मरण में अपनी उपलब्धियों को जोड़ कर इसे यादगार बनाया है । याद है
कि मैंऔर तत्कालीन अध्यक्ष श्री बी मंडल भी इस बड़े आयोजन में शामिल हुए थे ।वसूली का भी कीर्तिमान
बना था यह सही है ।
एक व्यक्ति के लिए सब कुछ याद करके लिख पाना संभव नहीं है ।इसलिए ही मैंने पहले आग्रह किया था कि सभी मित्र अपना अनुभव जोड़ कर इसे और रोचक बनावें ।
धन्यवाद चौधरी जी ।
श्रीमान उपाध्याय जी का लेखन से मैं अति आनंदित हुआ, श्रीमान चौधरी जी ने मेरी उपलब्धि बताई मैं बैंक ने हित काम किया ना कि अपना मान बढ़ाने के लिए यह मेरा कर्तव्य था
बहुत बढ़िया श्री देव नाथ पाठक ।मुझे खुशी हुई कि
आपने अपना विचार रखा ।बहुत साथी तो कुछ लिख
नहीं पा रहें हैं ।सबको कुछ न कुछ अच्छा विचार
जोड़ना चाहिए ।धन्यवाद ।
देवनाथ पाठक का विचार सकारात्मक व प्रशंसनीय है संस्था कर्मियों का सोंच इसी प्रकार होना चाहिये.
बहुत खूबसूरत 👌👌कटिहार की यादें ताज़ा हो गयीं ।
बैंक के सभी अंकल लोग एक परिवार की तरह थे। सभी को मेरा सादर प्रणाम 🙏🙏😊
कोसी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक जन्म से लेकर कैसे धीरे धीरे सारे समस्या को झेलते हुए किशोरावस्था को प्राप्त किया,उसका सारा इतिहास श्री रमेश उपाध्याय जी के संस्मरण भाग 1 से लेकर 7 तक को पढने से सभी KKGBians के पुराने तथा नए सदस्यों को समझ में आ गया होगा हमारे कोसी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के वैसे वैसे चमकते सितारे थे जिनके बल पर हमारा बैंक निरंतर आगे बढ़ता गया और अन्य गामीण बैंक के प्रतिस्पर्धा में हमेशा अच्छा स्थान पर रहा।चाहे पब्लिक जमा हो या सांस्थिक जमा,गुणवत्ता के आधार पर ऋण वितरण हो या ऋण वसूली,दस्तावेज नवीकरण हो या NPA reduction हर क्षेत्र में हमारे अधिकारी,कर्मचारी,यहाँ तक क़ि संदेशवाहक भी बैंक के प्रतिष्ठा को ही सर्वपरि मानकर काम किया।जिनका उल्लेख श्री उपाध्यायजी के संस्मरण से साफ झलकता है।श्रो उपाध्यायजी एवं हमारे अन्य अग्रजों के दिशा निर्देशों के कारण ही हमारा ग्रामीण बैंक आज अन्य व्यबसायिक बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा मे पिछे नहीं है।सभी अग्रजों तथा सहकर्मियों से सादर निवेदन है कि वे भी अपना संस्मरण लिखे ताकि ग्रामीण बैंक के इतिहास से और भी लोग अवगत हो सकें।
नमस्ते भारत के संपादक श्री अशोक कुमार चौधरी(प्रियदर्शी) से 1987 से 1990 में जब मैं मधेपुरा जिला के खुरहान शाखा में था और श्री चौधरीजी कुजौरि शाखा में थे,तब कभी कभार उनसे मुलाकात हो जाती थी।उस समय उनमे छिपे हुए विशेष प्रतिभा के बारे में जानकारी नहीं था।इसके बाद उनका कटिहार जिले में transfer हो गया और मै मधेपुरा,सुपौल और सहरसा जिले के कई शाखाओं में घूमता रहा।चौधरीजी से कभी कभार किसी मीटिंग में मुलाकात हो जाती थी,या “प्रतीक्षा”पत्रिका में उनका लेख पढने को मिल जाता था।श्री उपाध्यायजी के संस्मरण और नमस्ते भारत के संपादकीय लेख से चौधरीजी में छिपे बहुत सारे प्रतिभा के बारे में पता चला।एक ही व्यक्ति में इतने सारे प्रतिभा लेखक,ज्योतिषि,एक्यूप्रेशर और प्राणायाम के विशेसज्ञ ,जादूगरी इत्यादि कल्पनातीत है।जादूगरी का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा।जादूगरी कहाँ और कब सीखा है जानने का बहुत उत्सुक हूँ।और क्या क्या प्रतिभा अबतक छिपाके रखा है कृपया उजागर करें।
धन्यवाद प्रशांत जी, आपने मुझे कजौरी पदस्थापन अवधि की याद दिलाई, वहाँ पर कई मित्रों से प्रायः मुलाकात होती रहती थी. आपकी शाखा: खुरहान भी जाने का अवसर मिला जहाँ खान साहब आपके साध कार्यरत थे, खान साहब आजकल कटिहार जिला के डंडखोरा शाखा में.पदस्थापित हैं. मेरा निवास आलमनगर में.था जहाँ प्रायः दिनेश केसरी, बिनय कुमार जैसे मित्रों से मुलाकात होते रहती थी. आर.आर.राजीव तो बहुत दिनों तक मेरे साथ ही रहते थे. बहुत आनंद भरा काल था.