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” मौन “
मौन ही है साक्षी
प्रत्येक उस बूँद का ,
जो निशा के आवरण में चुपचाप बिखर गया ।
मौन पहचानता है
प्रत्येक उस स्वप्न को ,
जो यथार्थ के प्रहार से चुपचाप दरक गया ।
मौन ने ही तो…पिया था
विवशता में तिरिस्कार को ,
जिसके बाद आदमी स्वयं में ही मर गया
मौन हैं जो स्त्रियाँ
तो ही पुरुष बोलता
पर स्त्रियों के मौन से ही पुरुष है बंधा हुआ ।
मौन अदम्य शक्ति है
तो मौन अनन्य भक्ति भी
इस मृत्य लोक का है मौन अंतिम सारथी
मौन है अंत तो
मौन है आगाज भी
मौन में है शून्य तो मौन में आकाश भी
सुन सको तो सुन लो
मौन में है आवाज भी
जीवन का गीत और उसका सुरताल भी …

अर्पना मिश्रा
उन्नाव ( उत्तर प्रदेश )

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