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मौन तुम्हारा

मौन तुम्हारा इतना मादक,
जब बोलोगे तब क्या होगा ?

नयन तुम्हारे इतने भावुक,
जब देखोगे तब क्या होगा ?
जब से तेरा नाम लिया है,.

वाणी मेरी ऋचा बन गयी.

जब से सुन ली कथा तुम्हारी,
वंशी मेरी व्यथा बन गयी.
चित्र तुम्हारा इतना मोहक,

जब आजोगे तब क्या होगा ?
मौन तुम्हारा इतना मादक,

जब बोलोगे तब क्या होगा ?
मिला संदेश जब तुम आओगे,

घर आंगन का शाप मिट गया.

सूनी गलियों इठलाती हैं,
रोम-रोम का ताप मिट गया.

याद तुम्हारी इतनी चंचल,
जब मिलोगे तब क्या होगा ?

मौन तुम्हारा इतना मादक,.

जब बोलोगे तब क्या होगा ?

जब भी द्वारे सांकल बजती,

धुंधरू सा मन लगा थिरकने.

जब भी पुरवा खुशबू लाती,
तन चंदन सा लगा महकने.

गंध तुम्हारी इतनी मनहर,

जब छू लोगे तब क्या होगा ?

मौन तुम्हारा इतना मादक.

जब बोलोगे तब क्या होगा ?

“प्रतीक्षा” दिसंबर 2004 अंक

में प्रकाशित का पुनः प्रकाशन

 

4 thoughts on “मौन तुम्हारा इतना मादक”
  1. ‘मौन तुम्हारा’ बहुत अच्छी कविता. आपकी लेखनी में तो जादू है मैडम.

  2. ‘मौन तुम्हारा’ बहुत अच्छी कविता. आपकी लेखनी में तो जादू है मैडम.

  3. मौन तुम्हारा इतना मादक वास्तव में बहुत ही मादक है.

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