कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक: भोगा यथार्थ 5

 

             
जी हाँ, प्रधान कार्यालय से आठ वर्ष तीन माह बाद विरमित होकर अगस्त 1996 में क्षेत्रीय कार्यालय अररिया में क्षेत्रीय प्रबन्धक के रूप में कार्य प्रारम्भ किया ।ऐसे प्रधान कार्यालय में रहने के कारण बैंक के सातों जिलों के हालात व शाखाओं से परिचित था इसलिए अररिया में काम शुरू करने में मुझे असुविधा नहीं हुई । प्रशासन से समन्वय,शाखाओं का पुनर्स्थापन, जमा व वसूली को गति देना मेरी प्राथमिकतायें थीं ।अररिया जिला आर्थिक रूप से कमजोर होने के साथ ही क्षेत्रफल में भी बड़ा व बिखरा हुआ था ।उस समय तक जिला में  हमारी 29 शाखायें कार्यरत थी जो सभी बैंकों से अधिक थीं ।जिला से समन्वय  तो दो ही दिन में ठीक हो गया ।फलतः MPLAD का खाता खोलने हेतु  शाखा प्रबन्धक को जिला पदाधिकारी के निवास भेजने का मुझे फोन आया ।स्व शिव लाल प्रसाद शाखा प्रबन्धक थे जो बड़े ही सरल ,सहृदय व हँसमुख व्यक्ति थे ।लिखते समय उनकी याद आ गयी इसलिए इस प्रकरण को विशेष रूप से उद्धृत कर रहा हूँ । उन्हे बुला कर बताया तो वे  बहुत आश्चर्यचकित होने के साथ ही असमंजस में भी दिखे कि जिला पदाधिकारी के निवास पहली बार जाना था ।खैर, गये और खाता खोल कर एक चेक लेकर ऐसे आये जैसे कोई  भारी बोझ लेकर आये हों । मेरे सामने आकर बैठ गये । चेक की राशि मैं तो पहले से जानता था । जिस खुशी से उन्होंने पूरा विवरण बताया उसे लिख पाना संभव नहीं है । एक करोड़ रुपये का चेक उन्हे मिला था जो उस समय तक बैंक को प्राप्त सबसे बड़ी एक राशि थी। बैंक के अध्यक्ष गुप्ता जी को दूरभाष पर जानकारी दिया तो उन्हें यकीन नहीं हो पा रहा था कि कुछ दिनों में ही अररिया में  क्या हो गया । दूसरे दिन अररिया जाते समय रास्ते में उनसे भेंट हुई तो केवल इतना बोले कि आपने कुछ दिनों में ही माहौल बदल दिया । जिला स्तरीय बैठकों में प्रखण्ड के पदाधिकारियों ने जिला पदाधिकारी से हमारे संबंध को देखा और हमने सहयोग की बात किया  । दूसरी तरफ अपने शाखा प्रबन्धकों को भी प्रखण्ड से समन्वय बढ़ाने को कहा । फलस्वरूप  हमारे बैंक के लिए सकारात्मक वातावरण बनता गया । अररिया में फारबीसगंज ,रानीगंज,जीरो माइल अररिया आदि प्रमुख केन्द्रों पर हमारी शाखायें नहीं थीं । जिलापरामर्शदात्री  समिति से यह पारित नहीं हो सका था । हमने जिला पदाधिकारी को इस संबंध में बताया तो वे सहमत हुये । बैठक में उन्होंने प्रभावी ढंग से समर्थन किया फलतः तीनों स्थानों पर शाखा खोलना सम्भव हो सका । तत्कालीन जिला पदाधिकारी अररिया श्री मुकुंद देव मिश्रा जी के सहयोग से रानीगंज में मकान की समस्या का समाधान भी हो गया जब उन्होंने सरकारी डाक बंगला जिसका परिसर बहुत बड़ा था हमें उपलब्ध करा दिया । मैं क्या बैंक भी उनके सहयोग के लिए सदा आभारी रहेगा । रानीगंज  शाखा का उद्घाटन भी बड़े धूम धाम से से हुआ था । जिला पदाधिकारी ने ही उद्घाटन किया था । आरक्षी अधीक्षक श्री कमल नयन चौबे व बैंक के अध्यक्ष  मुख्यअतिथि थे । फारविसगंज शाखा का भी इसी तरह भव्य उद्घाटन इन्हीं  के द्वारा  किया गया । कुछ दिनों बाद ही जीरो माइल शाखा भी खुल गई । ये तीनों शाखायें सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत थीं जहाँ कारोबार था ही नहीं ।इसी क्रम में अररिया शाखा सह क्षेत्रीय कार्यालय का भवन भी बदल कर एक बड़े भवन में लाया गया । बैंक के  लिए हमेशा मैंने  अच्छे भवन का ध्यान रखा । इसलिए जहाँ भी गया कार्यालयों को अच्छे भवन में ले जाने कीव्यवस्था करता रहा। शायद यह मेरे ही भाग्य में होता था । वसूली की स्थिति काफी दयनीय हो गयी थी । इसके लिए योजनाबद्ध प्रयास कीं जरूरत थी ।हमने अपने सम्बन्धों का लाभ उठाते हुए जिला पदाधिकारी व आरक्षी अधीक्षक से इसपर चर्चा किया । निर्णय के अनुसार हमने शाखाओं से चूककर्ताओं को नोटिस भेजवा कर इसकी  सूची दो प्रति में मंगा ली । ये  सूची मैंने आरक्षी अधीक्षक को हस्तगत कराया । उन्होंने एक प्रति थाना को भेजते हुए निर्देश दिया कि सूची के आधार पर सम्पर्क व वसूली में सहयोग करें । वायरलेस से इसका अनुवर्तन भी हुआ । फलतः अप्रत्याशित वसूली हुई । थाना वाले  बोलते थे कि कौन बैंक का हाकिम आया है कि परेशान करके रखा है । अपने पूरे सेवा काल में मैंने यही अनुभव किया कि आप आगे बढ़ कर संस्था  के लिए  सहयोग मांगेगे और आपका  समन्वय अच्छा है तो हर तरह का सहयोग भी आपको मिलेगा । अररिया क्षेत्रीय कार्यालय में मेरे योगदान के समय तीन अधिकारी कार्य कर रहे थे सर्वश्री ओम प्रकाश प्रसाद,धर्मेन्द्र कुमार ओझा व अहमद इमाम मल्लिक । कुछ दिनों बाद ओझा जी का स्थानांतरण हो गया और श्री पी आर घोष आये । सभी ने दिन रात मेहनत कर जिला से लेकर प्रखण्ड तक समन्वय बनाने से लेकर वसूली तक में मुझे पूर्ण सहयोग दिया था । मल्लिक जी कहते थे कि भले ही काम अधिक करना पड़ रहा है लेकिन अच्छे माहौल तथा उत्साहवर्धक परिणाम के कारण काम करने में आनन्द मिलता है । इनके सहयोग एवं सम्मान को भूल नहीं सकता ।ओम प्रकाश जी ने साथ रहकर मेरा एक अनुज की तरह ध्यान रखा वह भी अद्वितीय है । यह स्नेहिल संबंध आज भी बना हुआ है । स्व शिव लाल जी का आत्मीय व हँसमुख व्यवहार आज भी गुदगुदा जाता है । स्व मानिक चन्द विश्वास भी आज याद आ गये। वो भूलने योग्य थे हीनहीं । रक्तिम ऑखे ,मदमस्त चाल व सदा हंसता हुआ बेफिक्र चेहरा शायद ही कोई भूल पायेगा । कोई भी काम होया कोई लक्ष्य हो बिश्वास जी एक ही जबाब देते थे–हो जायेगा सर । कभी उन्हें हार मानते नहीं देखा था ।भोगा यथार्थ के अन्तिम भाग में मै  निश्चित रूप से उन सहकर्मियों को याद करूगा जिन्होंने मेरे सेवा काल में मुझे हर तरंह से साथ दिया है ।अररिया में अब सबकुछ सामान्य गति से चल रहा था ।हमारे बैंक में कोई राजनैतिक या प्रशासनिक दखल नहीं था ।

इसी बीच श्री गुप्ता जी अध्यक्ष का स्थानांतरण हो गया । श्री डी एल खनीजो ने 26-7-98 को पद  ग्रहण किया और  19-8-98 को प्रशासनिक कारण से उन्हें जाना पड़ा । 3-9-98 को श्री आर एन स्वामी ने अध्यक्ष का प्रभार लिया । स्वामी जी सुलझे हुए शांति प्रिय व्यक्ति थे। एक बार वे मधेपुरा गये और शहर में उन्हें कुछ समस्या झेलनी पड़ी । शाखा भवन ,वहाँ का काम व जिला से समन्वय अच्छा नहीं लगा । मेरे किसी शुभचिंतक ने जिसकी मैंने मदद भी की थी ने उन्हें सलाह दे दिया कि मैं ही सब व्यवस्थित कर सकता था । उन्हें सुझाव पसन्द आया और मेरा स्थानांतरण वरीय प्रबन्धक के रूप में मधेपुरा कर दिया ।1999 की फरवरी में मैं मधेपुरा गया था । उसी माह में 28 तारीख को मेरी बड़ी बेटी की बनारस में शादी  थी। स्थानांतरण आदेश के दो तीन दिन  बाद ही स्वामी जी ने मेरे निवास पर फोन कर पूछा कि आप नाराज हो, मैने तो बैंक का भला सोच कर अपने बैंक की तरह काम किया ।आप बेटी की शादी के बाद ही कार्य कर सकते हैं । शायद उन्हें शादी की जानकारी नहीं थी । ये उनका बड़प्पन था।मैंने कहा था कि आपने ठीक ही किया होगा । फिर एक सप्ताह बाद फोन आया कि अररिया से दो बन्दो का स्थानांतरण कर दिया गया है जिससे मेरी समस्या खत्म हो । उन्हें कुछ तो अनुभव हुआ होगा । मधेपुरा कार्यालय का भवन बहुत छोटा व अव्यवस्थितथा । इससे अधिक लिखना उचित नहीं । क्या पहले के लोग यथास्थिति में जीने के अभ्यस्त थे या यह सब काममेरी  निमित्त ही बना था? जाते ही मकान की तलाश शुरू हो गयी । पता चला कि एक व्यक्ति बीच बाजार में पहली मंजिल पर मकान बना कर देने को तैयार हैं । तुरंत बात कर प्रधान कार्यालय कोसूचित किया । मकान तय हो गया । शायद सात माह में बन भी गया । इधर जाते ही जिला से समन्वय अच्छा होगया । उप विकास आयुक्त को मैं तो नहीं पहचान पाया लेकिन उन्होंने पहचान कर बताया कि जब मैं कुमारखंड में शाखा प्रबन्धक था तो वे मुरलीगंज में प्रखण्ड विकास पदाधिकारी थे । बताये कि जिला की बैठकों में आप से भेंट होती थी ,आप अच्छे वक्ता थे इसलिए याद हैं । इसका  मुझे काफी लाभ मिला । वे  DRDA के  प्रभार मे भी थे इसलिए अच्छी जमा प्राप्त होने लगी । नये जिला पदाधिकारी भी आ गये जिनसे अच्छा संबंध बन गया । इसी बीच जुलाई 1999 में श्री डी के पाल ने अध्यक्ष केरूप में योगदान दिया । एक दिन स्वामी जी नये अध्यक्ष के साथ आये । परिचय कराते समय स्वामी जी बोल गए कि यहाँ की समस्या को देखते हुए इनको मैंने ही परेशानी मे डाला है ।17-7-99 को पाल साहब ने प्रभार लिया । कुछ महीनों  बाद भवन के उद्घाटन का समय आया । मैं शाखा कोआदर्श बनाना चाहता था इसलिए एक सोफा की मांग किया जिसकी अनुमति मिल गयी । इस भवन का उद्घाटन जिला पदाधिकारी द्वारा किया गया और अनुमंडल पदाधिकारी जो मेरे पुराने परिचित थे हमेशा साथ रहे । उद्घाटन के बाद भी दोनों अधिकारी,अध्यक्ष और मैं घंटों बैठकर बात करते रहे । यह आत्मीयता आज भी याद है ।
एक संदर्भ भूल गया था । मधेपुरा शाखा का कई खाताओंका तुलन बहुत महीनों  से लम्बित था । मैं तुलन कार्य देख रहा होता तो क्षेत्र से निधि व्यवस्था में आये साथियों को संकोच होता था और वे निधि व्यवस्था होने तक दो तीन घंटे बैठ कर तुलन कार्य मे सहयोग करते थे । इस प्रकार केवल बचत खाता ही बच गया था तुलन के लिए जो बाद में मानक अन्तर पर आ गया था । मैं उन साथियों के सहयोग एवं सम्मान को भूल नहीं सकता । यह संदर्भ इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि वहीं क्षेत्रीय प्रबन्धक बैठते थे तब भी ऐसी स्थिति लम्बे समय से क्यों चल रही थी । बड़ी बड़ी बाते करना,उपदेश देना बहुत आसान है । बहुत लोग यही करके जिन्दगी गुजार देते हैं । इधर कोलेस्ट्राल बढ़ने के कारण मुझे सादा भोजन एवं 
चिकित्सक से परामर्श की जरूरत पड़ी जो मधेपुरा में संभव नहीं था । मधेपुरा में मुझे जो कुछ करना था वो हो चुका था।अतः मेरे आग्रह पर मेरा स्थानांतरण किशनगंज में क्षेत्रीय प्रबन्धक के पद पर पाल साहब ने कर दिया । फरवरी 2001 में मैंने वहाँ योगदान दिया । हर जगह आप कुछ उपलब्धियों प्राप्त करते हैं तो कुछ सीखते भी हैं ।

एक दर्द मुझे हमेशा परेशान करता है किलोग आपसे लाभ भी लेते हैं और विश्वासघात भी करते हैं ।

दर्द बहुत दिया है अपनो ने,बतायेंगे कभी ।

जख्म बहुत गहरे हैं मेरे, दिखायेंगे  कभी   ।

ये न समझना कि वो माफ कर देगा सब ।

वक्त है,वक्त पर अपना रंग दिखायेगा रब ।    

                                         

रमेश उपाध्याय   

                क्रमश :———-

5 thoughts on “संस्मरण: रमेश उपाध्याय जी भाग 5”
  1. आदरणीय उपाध्याय सर जब अररिया क्षेत्रीय कार्यालय में कार्यरत थे। उस समय मेरी पोस्टिंग मदनपुर शाखा में थी। उस समय की एक घटना याद है
    मै शाम में चार बजे शाखा बन्द कर पूर्णिया लौटने के क्रम में अररिया जीरो माइल पर खड़ा था। चेयरमैन गुप्ता सर, उपाध्याय सर, दीनबंधु मिश्रा सर जीप को मेरे बगल में खड़ा कर दिए बीरेंद्र जी पूर्णिया चलना है। बैठिए, मै किमकर्तव्य होकर सोचने लगा। पुनः मिश्रा सर बोले जल्दी बैठिए मै जीप मे बैठ गया। पुनः आगे चलकर कसबा में नाश्ता, चाय हुई लेकिन मेरी शाखा की कोई चर्चा नहीं हुई। ऐसे बड़पन उपाध या सर एवम् मिश्रा सर के साथ मिला। दिल से आभार। पुरानी अनुभव ज्यादा मिठास देती है।

  2. R UPADHYA SIR KO PRANAM :: SIR EK R.M KE SATH FAMILY ABHIBHAWAK THE EK UMBRELLA KE NICHE SABHI KO RAKHNA JANTE THE MAI EK BAR SERIOUS BIMAR THA TO CHAIRMAN GUPTA JI AAYE DEKHNE TURAT APNNI GARI SE PATNA ELAJ KE LIYE BHEJE DURGA PUJA THA TINO AREA OFFICER KO EK- EK PACKET DIYA JISME READY MADE KAPRE THE YE HAI SIR KA ABHIBHAWAK KA LOVE AAJ BHI SIR PHONE KER HALCHAL PUCHHTE HAI HIMAT BADTI HAI JINDAGI JINE KE LIYE THANKS SIR

  3. श्री उपाध्याय जी जिस समय मधेपुरा के वरीय प्रबधक थे उस समय मैं सिंघेश्वर शाखा में शाखा प्रबंधक थे।मेरा घर मधेपुरा था।इसलिए शाखा में किसी भी तरह का समस्या होने पर मैं शाम को उनके निवास पहुँच जाता था।वे भी समस्या का समाधान निकाल देते थे और हर तरह का मदद करते थे।एक दिन उपाध्याय जी बोले घोषजी आप मेरे साथ मधेपुरा में काम करना चाहते है तो मैं मधेपुरा transfer करवा दूंगा।मेरे लिए तो यह बहुत ही खुशि की बात थी कि घर पर posting हो जाता।मै उपाध्याय बाबु को बताया कि मेरा बचपन से लेकर कॉलेज तक का पढ़ाई यही मधेपुरा में हुआ।मेरा अधिकतर साथी मधेपुरा में विभिन्न क्षेत्र में कार्यरत हैं और बैंक से सबका नाता है।इसलिए मुझे यहाँ काम करने में कठिनाई होगा।मेरा समस्या को समझ कर उपाध्यायजी बोले ठीक है घोषजी कोई जबरदस्ती नहीं हैं,मै तो सोचा था कि आपके घर पर posting होता तो शायद आपको अच्छा होता।ऐसा दिलदार व्यक्ति थे उपाध्यायजी।

  4. ओम प्रकाश जी,बीरेन्द्र जी और प्रशान्त घोष जी ने अपना अनुभव लिख कर मेरी भी यादें ताज़ा कर दिया
    है ।ओम प्रकाश जी तो मेरे साथ मधेपुरा में भी रहे ।मेरे साथ तो बहुत लोग विभिन्न स्थानों पर जुड़े रहे लेकिन
    उनकी प्रतिक्रिया नहीं आ रही है ।या तो वे पढ़ते नहीं
    हैं या कुछ लिखना उचित नहीं समझते ।खैर,मैं तो अपना
    भोगा यथार्थ लिख रहा हूँ ।लिखने की आजादी सभी के लिए है ।

  5. सही कहा आपने, अधिकांश लोग तो पढ़ते ही नहीं हैं या पढ़ना जानते ही नहीं हैं, हां वॉट्सऐप पर ईधर का मैसेज ऊधर और ऊधर का मैसेज ईधर करने में ही अपनी विद्वता समझते हैं, ऐसा नहीं है कि वे कुछ लिख नहीं सकते, लिख सकते हैं परन्तु उन्हें अपने पर ही विश्वास नहीं है. कुछ ऐसे भी लोग हैं पढ़ते तो हैं अपना विचार भी लिख सकते हैं परन्तु कुछ लिखना अपने शान के विरुद्ध समझते हैं.
    सेवानिवृत्ति के इतने अन्तराल के बाद भी आपकी स्मृति और शब्दों को सूत्रबद्ध करना अन्य के लिए अनुकरणीय है. आपकी लेखनी मेरे लिए प्ररेणा श्रोत है तथा मेरे अन्दर नवउर्जा का संचार करता है. आपके उत्साहवर्धन के कारण नमस्ते भारत पत्रिका में नित नया प्रयोग करता हूँ फलस्वरूप देश के अनेक क्षेत्रों से मुझे सहयोग प्राप्त हो रहा है. सादर !

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