रमेश उपाध्याय वाराणसी

हरियाली वही, मौसम वही, 

आसमां वही, दरिया भी वही ।

इस बार भी  सावन  आया ,

पर न हरी चूडियां खनकी, 

न झूले पड़े ,न कजरी सुनी,

न पपिहा बोला, न पिया आया ।

विरहणी तो बहुत  विरही,

पर विरह गीत न  सुना ।

सभी नि:शब्द, डरे-सहमे, 

घरों में  दुबके बैठे  हैं  ।

करौना का इतना कहर है, 

आज जीना कितना दुष्कर है ।

                 रमेश उपाध्याय 

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