मन चमड़ी का दास है
चिपट चिपट चिपटाए
जयों सुअर संग सुअरी
कीच कलोल को जाए ।
तुम , कौन सा आनंद पाना चाहते हो , वह आनंद जो सुअर को कीचड़ में कलोल करने से मिलता है या वह आनंद जो मेघों के घिर आने पर , मोर को नर्तन से मिलता है , जो चातक को ओस की पहली बूँद के चखने पर मिलता है ।
जीवन भर , डूबे रहते हो , शरीर की वासनाओं में , जिह्वा के स्वाद में ।
क्षणिक आनंद मिला और समाप्त , आनंद को पाने की इच्छा का तो अंत नहीं होता लेकिन सामर्थ्य , क्षीण होता जाता है , चेतना नीचे की ओर जाते हुए , मनुष्य को रसातल में ले जाती है ।
मैं , आज तुम को , ऐसे आनंद के बारे में बताता हूँ , जिस में परम आनंद होता है , जिस से परमानंद की प्राप्ति होती है , जिस आनंद को पाने में , सामर्थ्य कम नहीं होता , बल्कि अनंत हो जाता है , जिस आनंद को पाने में , चेतना की गिरावट नीचे की ओर नहीं होती , बल्कि चेतना का ऊर्ध्व गमन होता है ।
वह , परम आनंद , हमारे अंदर की चेतना , जो मलिन हो चुकी होती है , जो क्षीण हो चुकी होती है , जिस में विकार आ चुके होते हैं , के , सर्व व्यापक ईश्वरीय चेतना के मिलन से होता है
राजीव जायसवाल, सी.ए. दिल्ली
