butterfly, insect, thistle

मन मेरा न हो सका
संग मेरे दिन रैन
तेरा कैसे हो गया
ये सोचूँ बेचैन ।
मन कया है । कहाँ रहता है । कैसा होता है ।
यह प्रश्न मैंने कई बार अपने से किया । सब बोलते हैं मन के बारे में । मन ख़ुश है , मन दुखी है , मन बेचैन है , मन प्रेम मय है । मन की अलग अलग अवस्थाएँ ।
मेरी कविताओं में भी मेरा पसंदीदा विषय मन ही रहा है ।
प्रेम का पौधा
उगा है मेरे मन में
कया वही पौधा
उगा है तेरे मन में ।
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एक अन्य कविता में –
तेरा मन मेरा मन
इस का मन उसे का मन
जाने किस किस का मन ।
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कभी अपने ही मन को सलाह देते हुए —-
मन मेरे मन मेरे
अब रह संग मेरे
जिन जिन के तू मारे फेरे
न तू उन का न वो तेरे ।
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कभी मन को मैंने बंधन भी लिखा था —
मन तो बंधन है
अंतर का द्वंद्व
छंद जीवन का ।
अंग मुक्ति का साधन है
मन तो बंधन है ।
——
कभी ख़ुद से ही मन के बारे में सवाल जवाब किए –
सोवत जागत, ऊठत बैठत
आवत जावत , खावत पीवत
शोर मचाता —
कौन है रे , ये कौन है रे ।
और फिर ख़ुद ही जवाब दिया —
मन है रे , ये मन है रे ।
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कभी मन को राम और रावण मान लिया —
मन मेरा राजा राम है
मन मेरा लक्ष्मण भाई
मन ही दशानन रावण
मन ही सीता माई ।
——
कभी मन के न जागने का दुख –
पल पल जीवन भाग रहा
मन न लेकिन जाग रहा
कभी मोहिनी संग विराजे
कभी लक्ष्मी पीछे भागे ।


—-
जाग रे मनवा
भोर हुई अब
बहुत सो लिया
जागेगा कब ।
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मन राजीव कयों सो रहा
दिवस रैन कर लेट
एक दिवस यों होएगा
सोएगा हो प्रेत ।
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कभी मन को बस में न कर पाने का दुख —
मेरो मन
मोहे बहुरि सतावे
मेरो मन
मोरे बस न आवे ।


कभी यह अहसास कि मन तो कहीं एक जगह ही खड़ा है —
मन वहीं खड़ा रहा
उम्र आगे बढ गई
तन तो ख़ाक हो गया
हसरतें निखर गईं ।
कभी मन को परमात्मा की याद दिलाते हुए—
मन गोबिंद गोबिंद जपो
बिन गोबिंद न कोए
जा ह्रदय गोबिंद बसे
ता सा संत न होए ।


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कभी मन को वासनामय होने पर लताड़ता हुआ —
मन चमड़ी का दास है
लिपट लिपट लिपटाए
जयों सुअर संग सुअरी
कीच कलोल को जाए।


———
और कभी कबीर होता मन राजीव —
मन राजीव कबीर हो गया
गौतम बन नानक बन झूमा
मन राजीव महावीर हो गया ।


राजीव जायसवाल, CA, दिल्ली

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