बैंक में वह दस दिन
नॉकरी के तलाश में तो मैं मेट्रिक पास होने के पहले से ही सोचना शुरू कर दिया था।इसका एक मात्र कारण था मेरे पिताजी का रिटायरमेंट।पिताजी रेलवे में मधेपुरा स्टेशन के स्टेशन मास्टर थे।1972 साल में वे सेवा निबृत हो गए।उस समय मैं 10th में पढ़ता था और अगले साल 1973 में बोर्ड परीक्षा देना था।हमलोग पांच बहन और दो भाई हैं।पिताजी के सेवा काल में एक भी बहन का शादी तक नहीं हुआ था।सब कोई पढाई या प्राइवेट ट्यूशन करते थे।ऐसी हाल में मुझे हमेशा यही बात सता रहा था कि कैसे परिवार चलेगा? इसलिए मुझे पढाई करने में मन नहीं लगता था।उस समय पिताजी को पेंशन बहुत ही कम 340 रुपैया महीना मिलता था। तीन बहन हमसे बड़ी और दो बहन एक भाई हमसे छोटा था।अच्छे रिजल्ट के लिए ट्यूशन पढ़ने का भी क्षमता नहीं था।हमलोग खुद या बड़ो का मदद लेकर ही पढाई करते थे।1973 में मैट्रिक पास करने के बाद लोकल कॉलेज T P College, Madhepura में Isc में दाखिला लिया और पढ़ाई के साथ साथ प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाना भी शुरू किया।1975 में इंटर पास कर ग्रेजुएशन के लिए पुनः T P College में ही दाखिला लिया और सुबह शाम ट्यूशन भी पढ़ाया करता था।जैसे ही मेरा उम्र18 वर्ष हुआ उसी दौड़ान 1977 में कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का लिपिक सह खजांची पद हेतु वेकेंसी निकला।मै प्रथम बार नॉकरी के लिए आवेदन दिया और लिखित परीक्षा में भी भाग लिया था।लेकिन मैं उसमे सफल नहीं हो सका था।इसके बाद तो नॉकरी के तलाश में जितने भी मेरे योग्यता के लायक वेकेंसी निकलता था उसमें आवेदन भेजता था,परीक्षा भी देता था लेकिन दुर्भाग्यवश सफल नहीं हो पाता था।उसी दौड़ान हमसे बड़ी बहन को बंगाल में दुर्गापुर स्टील प्लांट के ऑफिस में हिंदी विभाग के प्रभारी के रूप में नॉकरी मिला और तब आर्थिक रूप से हमलोगों को थोड़ा मदद मिला।
लेकिन दो बहन का शादी देते देते पिताजी का सब जमा पूंजी भी खत्म हो गया।खेती या दूसरा व्यवसाय नहीं रहने के कारण अब तो सिर्फ पिताजी का पेंशन,मेरे ट्यूशन और एक बड़ी बहन के नॉकरी पर ही परिवार चलने लगा।उस समय ट्यूशन से कम ही पैसा मिलता था।सुबह शाम ट्यूशन से मात्र 350 रुपैया ही प्राप्त होता था।इसी आमदनी पर सभी भाई बहन का पढ़ाई चल रहा था।दुर्गापुर स्टील प्लांट के हिंदी विभाग के स्टेनो टाइपिस्ट के लिए भी interview दिया था, selection list के पैनल के सीरियल एक में मेरा नाम भी था,लेकिन राजनितिक कारणों से पैनल को रद्द कर दिया गया।जिससे मेरा मन बहुत ही अशांत रहने लगा।डिप्रेशन के कगार पर आ गया था।ऐसी परिस्थिति में ही 1975-77 के बैच में मै ग्रेजुएशन किया ,लेकिन सेशन लेट रहने के कारण 1979 के अंत तक रिजल्ट दिया।ग्रेजुएशन के बाद तो नॉकरी के लिए और भी दौर धुप करने लगा।1980 के मई या जून में पुनः हमारे KKGB का लिपिक सह खजांची पद के लिए वेकेंसी निकला।जिसमे मै ने आवेदन दिया,लिखित और interview देकर सफलता प्राप्त किया।दुर्गापूजा के अष्टमी के दिन मुझे
20.11.1980 को प्रधान कार्यालय ,पूर्णिया में योगदान करने हेतु call letter मिला ।शुभ दिन में शुभ खबर पाकर परिवार के सभी सदस्य बहुत खुश थे।सब भगवती माँ दुर्गा की कृपा का ही फल था।20.11.1980 का वह दिन हमारे जीवन का नया मोड़ था।सुबह जल्द उठकर तैयार होकर बस से पूर्णिया पहुँचकर NH 31 के बगल में स्थित फोर्ड कंपनी के बगल में कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के प्रधान कार्यालय पहुँच गया।फिर अपना सभी Original certificate दिखाकर अपना योगदान दिया।उस समय हमारे अध्यक्ष महोदय श्री आर0 प्रसाद थे।कोशी ग्रामीण बैंक में योगदान देने के बाद फिर मैं अन्य किसी जगह नॉकरी के लिए न तो आवेदन दिया और न ही कोशिश की।जीवन में पहली वार इसी बैंक में आवेदन दिया था और अंत में इसी बैंक ने मुझे रोजगार देकर मेरे परिवार को ही नहीं बचाया ,बल्कि हमलोगों को आगे बढ़ने का रास्ता भी खोल दिया।इसके लिए मैं KKGB का सदा आभारी हूँ।
प्रधान कार्यालय 20.11.1980 को योगदान करने के वाद मुझे मधेपुरा जिला के कुमारखंड प्रखंड में प्रस्तावित रहटा शाखा के लिए पदस्थापित किया गया,जहाँ मुझे ही शाखा प्रभारी के रूप में कार्य करना था।प्रस्तावित रहटा शाखा का उद्घाटन दिनांक 22.11.1980 को होना था।मुझे अविलंब रहटा के लिए प्रस्थान करना था।प्र0 का0 से यह भी कहा गया कि आप पहले कुमारखंड शाखा में चले जाइयेगा, वहा शाखा प्रवन्धक श्री रमेश उपाध्याय जी हैं,वे ही आपको सब ब्यवस्था कर देंगे।मै उसी समय अपना सामान लेके बस से मीरगंज होते हुए शाम को कुमारखंड पहुँच गया।कुमारखंड से रहटा की दुरी लगभग 10km है।रास्ता लगभग ठीक ही था और रिक्सा सवारी मिल जाती थी।रहटा में उस समय तक फर्नीचर भी नहीं पंहुचा था।इसलिए उपाध्याय बाबु रात में कुमारखंड में ही रहने के लिए बोले।मैं भी उन्ही के यहा खाना खाकर रात में वही रह गया।दूसरे दिन 21.11.1980 को पता चला की प्र0 का0 से फर्नीचर रहटा पहुँच रहा है।इसलिए जल्द से जल्द रहटा पहुँच गया और फर्नीचर को जगह पर लगाने के लिए कहा।प्र0 का0 से ही दैनिक मजदूरी पर एक MSW जिसका नाम शिव कुमार पटेल था,रहटा के लिए भेजा गया था।हमलोग दोनों मिलकर लोगों की सहायता से सभी फर्नीचर को जगह पर लगा दिया।शाखा परिसर में एक बड़ा बारमदा, एक बड़ा हॉल और दो छोटा कमरा था।बरामदा और एक कमरे में ही सारे फर्नीचर को adjust कर दिया गया और दो कमरे को हमलोगों के निवास के लिए रखा गया।बरामदा में ग्रिल लगा हुआ था।बैंक में कैसे काम करना है?कैसे बैंक चलाना है?इसका कोई प्रशिक्षण मुझे नहीं दिया गया था।जानकारी मिला था कि उद्घाटन के दिन कोई staff दिया जायेगा,वही सब समझा देगा। दूसरे दिन दिनांक 22.11.1980 को रहटा शाखा के उद्घाटन के दिन श्री बी0 के0 सिंह अपने साथ कई अधिकारियों को लेकर उद्घाटन समारोह के बैनर,मिठाई का पैकेट,खाता खोलने का फार्म,रजिस्टर इत्यादि लेकर बिरजू ड्राइवर के साथ जीप से प्र0 का0 ,पूर्णिया से रहटा पहुँच गए।
उधर कुमारखंड से श्री उपाध्याय जी भी श्री केहरी गुप्ता जी ,जो कुमारखंड शाखा के क्षेत्रीय पर्यवेक्षक थे को अपने साथ रहटा पहुँच गए।श्री गुप्ता जी को सात दिनके लिए रहटा शाखा के लिए प्रतिनियुक्त किया गया था।ताकि सात दिन हमारे साथ रहकर हमें बैंक संचालन संबंधी सभी जानकारी दे सकें।
श्री बी0 के0 सिंह बाबु ने मेरा नियुक्ति पत्र देखना चाहा।।मै निकालकर दिया।नियुक्ति पत्र देखकर वे बहुत आश्चर्य हो गए।उसमें मेरा नाम पता,वेतन विवरण,पत्रांक,दिनांक अधिकारी का लघु हस्ताक्षर सब कुछ था,सिर्फ अध्यक्ष महोदय का ही हस्ताक्षर नहीं था।सब कोई समझ रहे थे कि यह भूलवश गलती से हो गया है फिर भी वीना हस्ताक्षर का उस कागज का कोई कीमत नहीं।इस नियुक्ति पत्र को हमारे परिवार के कई लोगों ने कई बार देखा -पढ़ा लेकिन काफी संघर्ष के वाद नियुक्ति पत्र पाने की ख़ुशी में अध्यक्ष महोदय का हस्ताक्षर है या नहीं ,इसपर किसी का नजर गया ही नहीं था।श्री बी0 के0 सिंह बाबु द्वारा उठाये गए सवाल पर मेरा भी मन पूरा उदास हो गया।मन ही मन सोचने लगा कि क्या भगवान अभी भी हमारे साथ कोई छल कर रहे हैं या धैर्य का परीक्षा ले रहे हैं। मै चुप चाप उन लोगों के सामने बेवश खड़ा था।लगता था कि अब मैं बेहोश होकर गिर जाऊंगा।माँ पिताजी को क्या जवाब दूंगा? कुछ देर में ही श्रीबी0 के0 बाबू,श्री उपाध्याय बाबु और लोगों ने बिचार विमर्श कर यह समाधान निकाला कि नियुक्ति-पत्र तो सही ही होगा,गलती से अध्यक्ष महोदय का हस्ताक्षर छूट गया है।इसलिए प्रशांत कुमार घोष को आज cash पर नहीं बैठाया जाय,बल्कि उनको बगल में बैठाकर फार्म आदि भरवाने, खाता खोलने में मदद लिया जाय और जबतक Chairman का नियुक्ति पत्र में हस्ताक्षर नहीं हो जाता तबतक cash का काम नहीं लिया जाय।श्री बी0के0 बाबू ने मेरा नियुक्ति पत्र अपने पास रख लिए तकि प्र0 का0 पहुँचकर अध्यक्ष महोदय से हस्ताक्षर करवाकर पुनः स्पेशल मेसेंजर के माध्यम से हमें जल्द भेजा जा सकें।मैं उन्हें अपना नियुक्ति पत्र दे दिया।उद्घाटन समारोह शुरू हुआ,सभी गण्य मान्य अतिथि का भाषण हुआ,खाता खोला गया और अंत में मिठाई का पैकेट बांटकर समारोह का समाप्ति किया गया।इतना अच्छा सामारोह में सब कार्य करते हुए भी मै उदास था।श्री केहरी गुप्ता ने खाता खोलने का सारा कार्य सफलता पूर्वक किया और हमें बगल में बैठाकर कैसे फार्म भरना है,कैसे लेजर में entry करना है,सब समझाते रहे। उदघाटन
समारोह समाप्ति पर प्रधान कार्यालय के सभी अधिकारी लोग चले गए।रात भर मुझे निंद नहीं आया न जाने क्या होगा? अध्यक्ष महोदय मेरे नियुक्ति पत्र में हस्ताक्षर करेंगे या नहीं?क्या मुझे पुनः ट्यूशन पढाके ही जीवन गुजरना पड़ेगा?यही सोचता रहा।एक दिन के बाद श्री बी0 के0 बाबू स्पेशल मेजेन्जर द्वारा Chairman साहब का हस्ताक्षर किया हुआ नियुक्ति पत्र भेजवा दिए। इसके लिए उनको बहुत बहुत धन्यवाद्।नियुक्ति पत्र पाकर जान में जान आया।तब मुझे मुझपर भरोसा हुआ कि अब मैं अपने परिवार का देखभाल कर सकता हूँ। अब मैं cashier का पद संभालना शुरू कर दिया। श्री केहरी गुप्ताजी ने सिर्फ सात दिन के deputation में ही आये हुए थे।उसके बाद मुझे ही अकेला शाखा को चलाना था।इसलिए जितना हो सके श्री केहरी गुप्ता बाबु से बैंक संचलन के संबंध में सिख रहा था।
गुप्ताजी सात दिन रोज कुमारखंड से रहटा आकर मेरे साथ रहकर जमा-निकाशी के साथ साथ मोटामोटी बैंक का सारा कार्य समझा दिए।श्री केहरी गुप्ताजी मेरे प्रथम गुरु थे ,जिसने मुझे बैंक का basic ज्ञान सिखाया।अपने कर्मक्षेत्र का प्रथम गुरु मै उन्ही को मानता हूँ।उन्हें मेरा प्रणाम।उस समय न्यूनतम 5/-पांच रुपैया से खाता खुल जाता था।उपाध्याय जी पहले से ही रहटा के लोगों के सम्पर्क में थे,इसलिए उदघाटन के दिन अधिक से अधिक खाता खुला और बड़े बड़े पार्टियों का deposit भी अच्छा हुआ था।
कुछ दिन तक रात में मैं counter पर ही सोया करता था और शिबकुमार मेझपर चटाई बिछाकर सोता था।खाना भी कुछ दिन तक मकान मालिक श्री सियाराम चौधरी के यहा से आया करता था।बाद में मेसेंजर ही बनाया करता था।कुछ दिन बाद मकान मालिक के यहाँ से दो चौकी भी सोने के लिए हम लोगों को दिया गया।सात दिन बाद श्री केहरी गुप्ताजी कुमारखंड वापस चले गए।
मै गौर किया कि बहुत से ग्राहक जमा से ज्यादा निकासी करने आते हैं। यानी उदघाटन के दिन जिन लोगों ने अधिक से अधिक जमा किये थे,उन्ही लोगों ने अधिक से अधिक निकासी भी करने आने लगे।अधिक निकासी के चलते हाथ नकदी घटने लगा।मै गुप्ताजी से पूछा था कि “सर लोग इतना निकासी करते हैं तो बैंक चलेगा कैसे? वे बोले बैंक ऐसे ही चलता है।अधिक लोग जमा करते हैं और कम लोग निकासी करते हैं।बैंक के सिद्धांत के अनुसार 40% निकासी होता है और 60%राशि बैंक में ही जमा रह जाता है।उस राशि को बैंक ब्यापारी को अधिक सूद पर ऋण देकर लाभ कमाती है।जो लोग हमारे पास राशि जमा रखते हैं उसमें कम सूद देते हैं।सूद कमाने और सूद देने में जो अंतर होता है,वही बैंक का कमाई है यानि लाभ है। इसी लाभ राशि से हमारा Salary,House rent,Electric bill का भुकतान किया जाता है।इतना सारा भुकतान करने के बाद भी अगर लाभ का राशि बचता है तो वही बैंक का साल भर का Profit होता है।इसी सिद्धान्त पर बैंक चलता है।मै भी यह बात कुछ कुछ जनता था लेकिन अब practical में देख रहा था।मकान मालिक ने बैंक परिसर का अधूरा कार्य पूरा करने हेतु 10000/-रु0 के लिए प्र0 का0 ऋण आवेदन भेजा था,जो स्वीकृत होकर आ चुका था,जिसे भुकतान भी करना था।माह पूरा होने पर वेतन का भी भुकतान करना था।मैं रात भर सोचने लगा कि सेफ में तो depositor का पैसा रखा है, जिसे वे लोग किसी भी दिन निकाल ले रहे थे।इसलिए उनलोगों के लिए तो हमेशा सेफ में नकद राशि रखना ही था।माकन मालिक को ऋण राशि का भुकतान और मेरा वेतन का भुकतान इत्यादि अगर depositor का सेफ में रखे नकद राशि से किया गया और depositor निकासी करने आ गया तो कहाँ से उन लोगों को पैसा देंगे? हमको तो सब depositor मिलकर मारने दौड़ेगा।यह दिमाग में आते ही मैं सोचने लगा कि मैं इस बैंक में आकर पूरी तरह फॅस गया ,अब मैं क्या करूँ?दिमाग में यह बात आने के बाद रात भर निंद नहीं आया।ऐसा नौकरी नहीं करना है। इस से अच्छा तो ट्यूशन करना ही था।कोई झंझट नहीं था।मैं अपनी बड़ी बहन जो दुर्गापुर स्टील प्लांट के हिंदी सेल के प्रभारी थी,उसे चिठ्ठी लिखा कि मैं यह नौकरी नहीं कर सकता।इसमें जान जाने का खतरा है,तुम मेरे लिए बंगाल में ही कोई दूसरा नौकरी का तलाश करो।दूसरे दिन कुमारखंड जाकर मै उपाध्याय जी से मेरे चिंता का कारण बताया और नौकरी छोड़ने का भी बात कहा।
श्री उपाध्याय बाबु ने मेरी सारी समस्या और चिंताओं को सुनकर वे समझाए कि पैसा का चिंता नहीं करना है,जितना पैसा का जरुरत होगा एक letter pad में लिखकर देना और यहॉ से ले जाना। HO A/C के through रुपैया दे दिया जायेगा।बैंक में हमलोग इसी तरह एक दूसरे शाखा को मदद कर सकते हैं।उपाध्याय बाबु का बात सुनकर ऐसा लगा जैसे कोई देवता मुझे वरदान दे रहे हैं और मेरा समस्या एक क्षण में दूर कर दिए।बैंक में यह ब्यवस्था जानकर मन में बहुत ख़ुशी हुआ कि जरुरत पड़ने पर कभी भी रुपैया मिल सकता है।यह बात श्री केहरी बाबु मुझे नहीं बताये थे।अब मुझे नौकरी छोड़ने का चिंता हमेशा के लिए ख़त्म हो गया और मन लगाकर बैंक के हित में सारा उर्या लगा दिया। 20 नवम्बर से 30 नवम्बर यह 10 दिन हमारे मन में जिस तरह का तूफान उठ रहा था, मन को विचलित कर रहा था वह अब पुर्ण शांत हो चूका था।
चार माह मैंने अकेले ही बैंक चलाया।चार माह बाद श्री बीरेंद्र प्रसाद चौधरी,लिपिक सह खजांची ,जिनका घर पूर्णिया जिले केचंपानगर है,हमारे रहटा शाखा में योगदान दिया।तब से हम दोनों मिलकर खूब मजे से विना टेंसन के बैंक चलाया।
चंपानगर है,हमारे रहटा शाखा में योगदान दिया।तब से हम दोनों मिलकर खूब मजे से विना टेंसन के बैंक चलाया।
प्रशांत कुमार घोष,मधेपुरा।
घोष जी ,पिता के सेवा निवृत्ति के बाद की पारिवारिक स्थिति तथा अपने संघष॔ व मनःस्थिति का जो सहज मार्मिक वर्णन किया है उससे आंखें भर आयीं ।
बैंक की उस समय की स्थिति को भी आपने जीवन्त कर दिया है ।मेरी यही मनसा है संस्मरण लिखने की कि आज के साथी जान सकें कि कैसे नींव डाली गयी है ।बहुत अच्छी हिन्दी आप लिखते हैं ।
घोष जी का संसमरण,मात्र संसमरण नहीं है बैक को किस प्रकार इसके कार्मिकों ने सींचा है, इस क्रम में क्या क्या बलिदान देना पड़ा है इसका सटीक और मार्मिक चित्रण है। घोष जी को 🙏🏼
प्रशान्त जी का प्रारम्भिक संघर्षगाथा मर्माहत कर गया। खैर उसके बाद अच्छे दिन आये। उस समय कर्मियों में ऐसी एकात्मता थी कि सब सब की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे और दूरस्थ शाखाओं से भी आकर मदद करते थे या फिर उस शाखा में जाकर भी मदद/मार्गदर्शन मिल जाता था।ऐसा अन्य संस्थानों में विरले ही मिलते हैं। एक बात उस समय केहरी गुप्ताजी के पद का नाम क्षेत्र अधिकारी/लेखापाल था। इसके लिए लिखित परीक्षा हुई थी ।और प्रथम बैच के शाखा प्रबन्धकों के तत्कालबाद ही नियुक्ति हुई थी । शाखा प्रबन्धक एवं क्षेत्र अधिकारी के पद का 1मई 1980 को नये संवर्ग अधिकारी में विलय हो गया था।
घोषजी को अपने संस्मरण को लेख बद्ध करने के लिए साधुवाद।
Seems that my effort is in positive direction.
प्रशांत जी का यह संस्मरण बहुत ही सरल भाषा मे इसका वण॔न यादगार बना दिया।मिठाई शाखा मे कार्यरत होने और मधेपुरा मे निवास के कारण इनके सम्पर्क मे रहा।ये स्वभाव से भी सरल व्यक्ति हैं
Although I have worked with Ghosh sir for more then 2 yrs n was aware of few stories mentioned here but to read them in detail n chronologically was an altogether different experience. I was fortunate to work under him at Lohiya Nagar, Supaul br n has learned a lot form him. In UBGB, he is my real Guru n his dedication n commitment towards assigned duty was something to learn from. A very humble & man of few words who sets example for others by doing is his specialty. Thank u SIR. Would definitely like to read the remaining part of the story.