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कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक:भोगा यथार्थ 6

रमेश उपाध्याय

फरवरी 2001 में किशनगंज पहुँचा । छोटा शान्त व कमशाखाओं वाले जिला से मै पूरी तरह परिचित था । सभी सहकर्मियों से पहले से ही वाकिफ़ था । एक तरफ बंगालतो दूसरी तरफ बंगलादेश की सीमा से जुड़ा हुआ यहजिला बिहार के निर्धनतम जिलों में एक है । यातायात
के साधनों की थोड़ी असुविधा थी . किशनगंज शाखा सह क्षेत्रीय कार्यालय बाजार में ही स्थित था लेकिन मकान ठीक नहीं था । कालटेक्स चौकपर पुनर्स्थापित शाखा सह क्षेत्रीय कार्यालय का भवननिर्माणाधीन था । हमारे पूर्ववर्ती श्री आजाद प्रसाद ने भवन बनवाने का काम किया था लेकिन नये भवन मेंजाने का यशलाभ तो मुझे ही मिला । यहीं पर एक औरपुनर्स्थापित शाखा खगड़ा थी । एक छोटे शहर में हमारी ही तीन शाखायें थी।यह पुनर्स्थापन का कमाल था। आम जमा हो या सांस्थिक जमा व्यवसायिक बैंकों के साथ साथ अपनी शाखाओं में भी प्रतिस्पर्धा थी । सांस्थिकजमा के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा से जूझने का कभीऐसा अनुभव नहीं हुआ था । मैं हर जगह अपने कामव सम्बन्ध के बल पर जमा लेता था । जिस जिला पदाधिकारी का किसी खास व्यवसायिक बैंक से लगाव था उनका स्थानांतरण मेरे जाने के कुछ माह के भीतर ही ही हो गया । नये जिला पदाधिकारी श्री के सेन्थिल कुमार भा प्र से आये ।आते ही एक दो भेंट में ही हम एक दूसरे से प्रभावित हो गये।संयोग देखिये कि कुछ ही दिनों में जिला ग्रा वि अभि के प्रबन्ध निदेशक के पद पर सहरसा में मेरे समय छातापुर बी डी ओ रहे पासवान साहब आ गये।वे बड़े सुलझे हुए कर्मठ अधिकारी थे।अब सांस्थिक जमा की स्पर्धा ही मेरे लिए खत्म हो गयी थी।
किशनगंज की विशेषता थी कि एक आवाज़ पर सभी एकजुट होकर किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में तन मन से लग जाते थे ।आपस में प्रतिस्पर्धा भी रहती थी ।इसी बीच कालटेक्स वाले नये भवन का उद्घाटन भी पाल साहब द्वारा किया गया । उस समय मेरे कार्यालय में स्व सुधांशु कुमार भौमिक व श्री साकेत कुमार सिन्हा अधिकारी के रूप में व श्री आशीष गुप्ता कार्यालय में पदस्थापित थे ।स्व भौमिक अत्यंत सरल,सौम्य व मित-भाषी व्यक्ति थे ।जितने मृदुभाषी थे उतने ही कर्तव्यनिष्ठभी। मेरे ही कार्यकाल में उनकी मृत्यु हुई थी जो उनके परिवार तथा बैंक के लिये अपूर्णीय क्षति थी । साकेत जी मेरे पूर्व परिचित थे । मैं उनकी कार्य क्षमता व निष्ठा सेअवगत था ।वे मेरी बात समझते व मानते भी थे इसलिए उनके व्यक्तिगत जीवन को भी मैंने व्यवस्थित करने में मार्गदर्शन किया । कई शाखाओं के लम्बित तुलन को अद्यतन करने में उन्होंने दिन रात मेहनत किया ।
किशनगंज में योगदान के कुछ दिनों बाद ही किसान क्रेडिट कार्ड योजना लागू हुई थी । ऊपर का दबाव था कि अधिकाधिक किसानों को लाभान्वित किया जाय किसानों में न तो जागरूकता थी न स्वीकार्यता । गांव गांव में बैठकों के माध्यम से जागरूकता पैदा करने में सभी ने अथक प्रयास किया । मैं आज सोचता हूं कि शाखाओं का पुनर्स्थापन न हुआ होता जैसा अन्य बैंकों में हुआ था तो आज किशनगंज जिला की स्थिति क्या होती ।किशनगंज जिला मुख्यालय में तीन शाखाओं को लाने के प्रभाव को आप स्वयं अनुभव करें । हरवनडांगा,गड़वनडांगा व बोआलदह जैसी सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में कम कारोबार वाली शाखाओं को शहर में लाने से जो कारोबार बढ़ा और सहकर्मियों को जो सुबिधा हुई वह जग-जाहिर है ।इसी प्रकार भट्टाबाड़ी जैसी शाखा को बहादुरगंज में लाया गया । गड़वनडांगा शाखा किशनगंज में आ तो गयी थी लेकिन कुछ सामान बहाँ से बिरोध के कारण नहीं आ पाया था । प्रशासन की मदद से मैने उसे मंगवाया ।
2002 में मैं कोलेस्ट्राल के चलते अस्वस्थ हो गया था । कोलकाता जा कर इलाज कराना पड़ा था । कुछ दिनों तक मैं थोड़ा कम भ्रमण कर सका। खैर संयुक्त प्रयास के कारण मार्च 2003 में हमारा क्षेत्र समग्र कारोबार में बैंक में प्रथम स्थान पर रहा । इसी बीच पाल साहब कास्थानांतरण हो गया और 1-5-2003 को वे बिदा हो गये ।पाल साहब एक कुशल प्रशासक व प्रेरक व्यक्ति केरूप में याद रहेंगे ।
2-5-2003 को श्री प्रकाश चन्द्र श्रीवास्तव ने अध्यक्ष का प्रभार लिया । हमेशा ही नये अध्यक्ष से मेरी भेंट क्षेत्र में आने पर या बैठकों में ही होती थी । श्रीवास्तव जी अपनेक्षेत्र की बैठकों की शुरुआत हमारे किशनगंज क्षेत्र से ही किये ।बैठक में उन्होंने कहा कि पहली बैठक वो एक नम्बर के क्षेत्र से ही करना चाहते थे ।बैठक में ही उन्होंने उत्साहवर्धक माहौल बना दिया। वे मुझे बहुत भद्र ,हँसमुख व मिलनसार लगे।अन्त तक उनके बारे मे यही धारणा बनी रही ।मुझसे हमेशा मर्यादित सम्बन्ध रहा।
जिला स्तर पर बैंकों से प्रतिस्पर्धा के बावजूद सबसे मेरा अच्छा सम्बन्ध रहता था ।किशनगंज में अग्रणी बैंक भा0 स्टेट बैंक था ।मेरे जाने के कुछ दिनों बाद ही श्री प्रेम चन्द्र सिंह मुख्य प्रबन्धक, अग्रणी बैंक बन कर आये । वहाँ नवार्ड के डी डी एम का भी पद था । श्री शकील अहमद जो किशनगंज जिला के निवासी थे वे इस पद पर आये । दोनों ही व्यक्ति भद्र,मिलनसार तथा सहयोगी
स्वभाव के थे।कुछ दिनों में ऐसा सम्बन्ध बन गया कि क्षेत्र में हम तीनों एक साथ ही निकलते थे । शकील साहब से तो सम्पर्क नहीं है लेकिन सिंह साहब आज भी जुड़े हुए हैं ।अब कारोबार से लेकर समन्वय तक सब ठीक से चल रहा था ।इसी बीच जिला पदाधिकारी ने समेकित की एक Infrastructure विकास समिति बनाई जिसमें मुझे सदस्य बनाया ।इसी निधि से हमारी पोठिया शाखा के क्षेत्र में एक बड़े चाय प्रशोधन उद्योग की स्थापना की गयी । बड़ी बड़ी मशीनें भी लगीं ।दो बार मैं भी जिला पदाधिकारी के साथ देखने गया था ।बाद की स्थिति की जानकारी नहीं है ।
इस बींच बड़े बड़े ॠण वितरण शिविरों का आयोजन होता रहा जिसमें जिला पदाधिकारी से लेकर बैंक के बोर्ड के निदेशक गण भाग लेते थे । जिला में इससे बैंक का बहुत सम्मान बढ़ा ।लोहागड़ा शाखा में स्टाफ को काम करने में कुछ समस्या
हो रही थी ।यह बात जिला में रहने वाले भी जानते थे और ऊपर वाले भी । लेकिन वहाँ से हटाने में बड़े बिरोध की आशंका थी ।जिला पदाधिकारी से बात कर जिला परामर्शदात्री समिति से प्रस्ताव पारित हुआ कि इसे एल आर पी चौक बहादुरगंज पुनर्स्थापित किया जाय । 22-6-2003 को इसे स्थानान्तरित करने का निर्णय अध्यक्ष ने लिया था । इधर घर से समाचार आया कि इसी तिथि पर
दूसरी बेटी की शादी तय हुई है । जिला पदाधिकारी और एल डी एम साहब ने कहा कि आप बेफिक्र होकर जाएं हम देख लेंगे ।अध्यक्ष श्रीवास्तव साहब ने प्रधान कार्यालय से निर्भीक स्वभाव के श्री मनोज कृष्ण सिंह को व्यवस्था के लिए भेजा था क्योंकि वे क्षेत्र से परिचित होने के साथ साथ अपने डी एस पी रहे पिता के कारण पुलिस विभाग से परिचित भी थे । इधर व्यवहार कुशल अहमद इमाम मलिक जो बहादुरगंज में शाखा प्रबन्धक थे को मैं इस काम की जबाबदेही दे गया था । शाखा स्थानांतरण के लिए जिला पदाधिकारी ने अनुमंडल पदाधिकारी को मजिस्ट्रेट बना कर चार थानों
से हथियार के साथ फोर्स तैनात किया था । जिला पदाधिकारी उस दिन स्वयं बहादुरगंज क्षेत्र में ही रहे व शाखा स्थानांतरण के बाद जानकारी लेते हुए मुख्यालय लौटे थे ।इसे कहते हैं सम्बन्ध और समन्वय ।मनोज बाबू से अपने गाँव से दूरभाष पर जानकारी लेते रहा था ।यह दिन बैंक,प्रशासन ,श्री एम के सिंह , श्री ए आई मलिक व शाखा के कर्मियों के लिए तनावपूर्ण रहा था।दूर रहकर भी मैंने इसे महसूस किया था। श्री विवेकानंद सहाय उस समय लिपिक व श्री कमरूजमां शाखा प्रबन्धक थे । इनकी व्यथा-कथा से कोई भी मर्माहत हो सकता था ।यही मुख्य वजह बना पुनर्स्थापन का ।
अध्यक्ष श्रीवास्तव जी की आदत थी कि किसी एक क्षेत्र की उपलब्धि को उत्साह से बताकर दूसरे क्षेत्र को बेहतर परिणाम के लिए उत्साहित करते थे । एक शाम को मेरे घर पर उनका फोन आया कि यार गजब हो गया। सहरसा में लोक अदालत में बहुत अच्छी वसूली हुई है,रवि शंकर जी ने अच्छा काम किया है । राशि मुझे याद नहीं है । मैं समझ गया था उनका संदेश ।
मन ही मन सोच रहा था कि यह जिला छोटा व गरीब होने के साथ साथ शाखायें भी कम हैं ,कैसे काम किया जाय कि लोक अदालत में वसूली का कीर्तिमान स्थापित हो । इसपर जिला पदाधिकारी से विमर्श के बाद अग्रणी बैंक के मुख्य प्रबन्धक सिंह साहब के साथ प्रभारी जिला न्यायाधीश सिंह साहब से मिला । वे बड़े उत्साही प्रकृति के मिलनसार व्यक्ति थे ।उन लोगों के लिए भी लोक
अदालत का आयोजन बहुत महत्व रखता था । उन्होंने चाय पीते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJ M ) श्री वर्मा साहब को बुलाया व बड़े लोक अदालत के आयोजन पर चर्चा हुई । फिर माननीय न्यायाधीशों जिला पदाधिकारी व आरक्षी अधीक्षक के बीच समन्वय बना कर एक तिथि तय हुई । निर्णयानुसार CJ M के हस्ताक्षर से सभी ॠण चूक कर्ताओं को नोटिस जारी होनी थी । नोटिस तुरंत छपा कर 5000 नोटिसे दो प्रति में बनवा कर CJM साहब के हस्ताक्षर वाली मुहर लगा कर आरक्षी अधीक्षक के द्वारा सभी थाना को भेजना कितना कठिन काम था इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है ।इसके बाद शाखाओं द्वारा क्षेत्र में प्रचार कराना व सम्पर्क करना शुरू हुआ ।यकीन मानिये सभी 5000 नोटिसे थानों द्वारा प्राप्त कराकर एक प्रति आरक्षी अधीक्षक कार्यालय को वापस आयीं ।
इसी बीच नये डी डी सी श्री विजय कुमार आ गये ।  परिचय में वे पटना विश्वविद्यालय के एम ए के सहपाठी निकले ।उन्होंने भी आयोजन में सक्रिय सहयोग किया । एक रविवार को कोर्ट प्रांगण में सुबह से ही भीड़ लगनी शुरू हुई और 11 बजते-बजते बड़ा शामियाना भी भर गया ।मेला जैसा माहौल बन गया ।न्यायिक मजिस्ट्रेट गण के कई बेन्च में समझौता कार्य शुरू हुआ ।समारोह मे ए डी जे साहब , डी डी सी , सी जे एम साहब अग्रणी बैंक पदाधिकारी व नवार्ड के पदाधिकारी भाग लिए थे ।
समारोह में एक बृद्ध महिला भटकते हुए मेरे पास आयी और बोली कि उनका कोई नहीं है ,माँग कर खाती हैं ।मुझे बात सही लगी इसलिए उनके भाड़ा आदि की व्यवस्था कर उन्हें वापस भेजा ।उस दिन लोक अदालत में 32 लाख 50 हज़ार की वसूली लगभग 1400 चूक कर्ताओ से हुई जो बिहार की लोक अदालतों के लिए एक कीर्तिमान बना उस समय ।यह यादगार वसूली बेहतर समन्वय व शाखा प्रबन्धकों की मेहनत का परिणाम था ।दूसरी लोक अदालत में 19.50 लाख व तीसरी में 12.50 लाख वसूली हुई थी ।तीनों में राईट आफ में भी अच्छी वसूली हुई ।
अध्यक्ष श्रीवास्तव जी ने ‘चलो गाँव की ओर ‘ कार्यक्रम के तहत एक गाँव का चयन कर रात में वहीं ठहरने की व्यवस्था करने की चर्चा किया । वे इसकी शुरुआत भी किशनगंज क्षेत्र से करना चाहते थे । मैंने विमर्श के बाद तुलसिया शाखा का चयन किया क्योंकि यहाँ के शाखाप्रबन्धक श्री मो असलम बहुत उत्साही और मिलनसार व्यक्ति थे ।मैंने स्वयं वहाँ जाकर कार्यक्रम स्थल व कार्यक्रम की रूपरेखा तय किया ।वहाँ के मकान मालिक श्री बम बोल झा बड़े भद्र व मिलनसार व्यक्ति थे। इनके पिता जी स्व चन्द्र मोहन झा अविभक्त पूर्णिया जिला के जिला परिषद के अध्यक्ष थे । वे हमारे बैंक के बोर्ड के सम्माननीय निदेशक भी बहुत वर्षों तक रहे।इन्हीं के परिसर में बैंक भवन भी था ।इनके यहाँ रहने की व्यवस्था हुई ।बगल में विद्यालय के बड़े प्रांगण में आयोजन की व्यवस्था हुई ।बगल के शाखा प्रबन्धकों को सहयोग के लिए बोला गया ।
निर्धारित तिथि पर मैं 12 बजे के करीब पहुँच गया था । तीन बजे से आयोजन की शुरुआत होनी थी । अध्यक्ष श्रीवास्तव जी समय से पहुँचे ।गाड़ी से उतरने के साथ ही आदिवासी नृत्य के साथ उनकी अगवानी मंच तक की गयी ।अपार भीड़ व अभिवादन देखकर श्रीवास्तव जी भाव विभोर हो गये थे । लोगों ने इस अवसर का भरपूर आनंद लिया ।मेला का माहौल बन गया था । स्वागत,सम्बोधन व ग्रामीणों के सवाल-जवाब के बाद दिन का समारोह समाप्त हुआ था । समारोह के बाद भी कुछ प्रबुद्ध नागरिक बात करते रहे ।समारोह में डी डी एम नवार्ड शकील साहब,निकटस्थ शाखाओं के शाखा प्रबन्धक व अन्य सहकर्मियों ने भाग लिया ।
शाम को सात बजे से कविता व गायनआदि की व्यवस्था थी ।बड़े परिसर में दो चौकियों पर गद्दा व मसलन्द लगा , अन्य कुर्सियां लगाई गईं । कुछ स्थानीय जनप्रतिनिधि व ग्रामीणों के साथ बैंक के अनेक सहकर्मियों ने इसमें भाग लिए ।चाँदनी रात की खुशनुमा शाम तब महकने लगी जब शेरो-शायरी व कविता का दौर शुरू हुआ। लखनवी तहजीब वाले अपने अध्यक्ष इसमें गहरे डूबते उतराते रहे। उन्होंने भी कुछ सुनाया था ।किसने क्या सुनाया यह तो याद नहीं लेकिन अपने अरूप विश्वास (बीसू ) के यादगार गायन से सब मंत्रमुग्ध हो गये थे ।झा जी केरात के स्वादिष्ट भोजन व आतिथ्य की महक आज भीमिथिला संस्कृति की याद दिलाती है ।असलम साहब के सहयोग,व्यवस्था एवं व्यवहार की जितनी प्रशंसा की जाये वह बहुत कम है । दूसरे दिन लौटते समय सोन्था शाखा के प्रस्तावित भवन को तय करते हुए हम अलग हुये। इस शाखा की समस्या भी काफी पुरानी थी ।इसका समाधान भी मेरे समय में ही हो सका । इसके बाद स्केल 3 में मेरी पदोन्नति हो गयी ।उधर मेरे मित्र श्री विजय कुमार जो डी डी सी थें किशनगंज में जिला पदाधिकारी बन गये ।मेरा स्थानांतरण भी कटिहार हो गया लेकिन चुनाव के कारण नवम्बर 2005 में ही कटिहार जा सका । तीन वर्षों से छठ पूजा में खरना का प्रसाद खाने का सौभाग्य श्री विजय कुमार के निवास पर
प्राप्त होता रहा । स्थानांतरण के बाद उन्होंने बताया था कि जाइये कटिहार में डी डी सी सहपाठी ही हैं ।
किशनगंज में मैं श्री यमुना प्रसाद पोद्दार के मकान में ही रहा।सहरसा में भी वे मेरे साथ काम कर चुके थे । सर्वश्री साकेत कुमार सिन्हा,विजय कुमार सिन्हा,महमूद आलम भानू घोष,पोद्दार जी व अरूप विश्वास पारिवारिक तौर पर जुड़ गये थे । ऐसे आत्मीयता तो सभी सहकर्मियों से थी ही । किशनगंज के जन प्रतिनिधियों के व्यवहार की जितनी प्रशंसा की जाये वह कम है । कोचाधामन प्रखण्ड के तत्कालीन युवा प्रखण्ड प्रमुख मो सादिक आलम की तहजीब व मिलनसार स्वभाव के हम आज भी कायल हैं । एक वाकया याद आ गया । इसी जिला के हमारी छतरगछ शाखा का मकान उसी जनाब मोहम्मद हुसैन आजाद साहब का था जिन्होने बैंक के स्थापना तिथि 23-12-1977 को प्रधान कार्यालय का उद्घाटन किया था । 1991-92 की बात है । वे पूर्णिया आये हुए थे, हमारे कार्यालय आ गये ।उस दिन अध्यक्ष मोइत्रा साहब कहीँ बाहर गये थे । किसी ने मेरे वेश्म में भेज दिया ।उनके साथ एक पूर्व विधायक थे।परिचय के बाद चाय-पान के क्रम में वे पूछ बैठे कि आप कहाँ के रहने वाले हैं । मेंरे यू पी बताते ही बोले कि वे मेरी तहजीब व भाषा से समझ
गये थे कि मैं बाहर का हूँ । जाते जाते बोल गये कि आप जैसे लोग आजकल मिलते कहाँ हैं ,हम आये तो थे भाड़ा की बात करने पर एक अच्छे इन्सान से मिलकर जा रहें
हैं । उनको बिदा करने के बाद बहुत देर तक सोचता रहा उन दोनो बुजुर्गो की शराफत और दुआओं के बारे में । लम्बी बातचीत में एक बार भी उन्होंने भाड़ा का जिक्र तक नहीं किया ।अब ऐसे इन्सान मिलते हैं क्या ?
इन्हीं खुशनुमा यादों के साथ नवम्बर 2005 में अपने सातवें पड़ाव कटिहार के लिए निकल पड़ा ।

मैं भटकता रहा दर- ब -दर आवारा बादलों की तरह,
मेरे नसीब में था बेफिक्र भटकना बनजारो की तरह ।

                                          क्रमश:------------

(मैं आठ महीने से बनारस से बाहर जयपुर में होने के कारण आयोजनों की तिथि और इनके फोटो नहीं दे
पा रहा हूँ ।इसका मुझे खेद है ।कभी न कभी पुरानी यादों को ताज़ा करने का प्रयास करूँगा ।)

4 thoughts on “संस्मरण: रमेश उपाध्याय भाग ६”
  1. आदरणीय उपाध्याय जी का किशनगंज संस्मरण मुझे पुराने दिनो की याद ताजा कर गई। अपने 36 वर्षो के सेवाकाल मे मैने इससे कठिन समय कभी महसूस नही किया।शाखा कर्मी कभी सही ढंग से कार्य नही कर पाते थे अपना दुखडा आदरणीय उपाध्याय जी जो हमारे area manager थे को कहने के अलावा कोई विकल्प नही था।उपाध्याय जी ने स्थिति को समझा और बैक तथाकर्मी के परेशानी को समझकर branch shifting का निर्णय लेने हेतु आवश्यक कदम उठाया।स्थिति की भयावहता इस से ही लगाया जा सकता है कि branch shifting हेतु चार थाने के पुलिसकर्मी को ड्यूटी पर लगाया गया था।और मुझे शाखा के सभी सामान के साथ खुद भी सुरक्षित आना था।आदरणीय मल्लिक जी और मनोज बाबू के कुशल नेतृत्व मे यह कार्य सम्पन्न हुआ। Branch shifting के लिए आदरणीय उपाध्याय जी ने जो मेहनत किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम होगी।ऐसे कर्मठ और सहकर्मी के दुख दर्द को समझने वाले श्री उपाध्याय जी के प्रति आभार।

  2. माननीय उपाध्यायजी के बैंक के प्रति समर्पण भाव के बारे में जितना जान पा रहा हूँ उतना ही गर्व से सीना चौड़ा हो रहा है।एक ही व्यक्ति में इतना सारा गुण कैसे संभव? यह भगवान का ही आशिर्वाद है।शाखा प्रबंधक से लेकर क्षेत्रीय प्रबंधक का कार्य,प्रखंड से लेकर जिला स्तर का समन्वय,जमा संग्रहण,ऋण वसूली,Branch shifting,शाखा कर्मियों के समस्या को सुनकर उसका निदान निकलना जैसे हर क्षेत्र में कुशलता पूर्वक अपना दक्षता का प्रमाण दिया।इसके लिए उपाध्याय बाबु को जितना भी धन्यवाद् दिया जाये कम है।

  3. Sir,Aap ki yaddasht lajwab hai, Kishanganj ki yad taza ho gai, yeh mera saubhag tha aur hai ke Aap jaisey talented Authority ke under main kam karney ka manuka mila. Aap ke kushal netritiv me ham sab garv aur nirbhai karj karna Sikha. Barh kar Utah le jam Mina Usi ka hai.Dhanywad sir.

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