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कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक:भोगा यथार्थ 8

रमेश उपाध्याय
                                

अब ‘ कोशी ‘ का प्रधान कार्यालय का भवन ही क्षेत्रीय कार्यालय पूर्णिया बन गया ।सबसे बड़ा काम था merger की प्रक्रिया को पूरा कराना ।इसके लिए प्रधान कार्यालय से कुछ न कुछ प्रतिवेदन या पुराना संदर्भ रोज मांगा जाता था ।उस समय श्री दीनबन्धु मिश्रा योजना व विकास विभाग देख रहे थे । कार्मिक विभाग श्री राजेश कुमार और लेखा विभाग श्री के के मिश्रा के जिम्मे था । इन्होंने इस काम में बहुत सहयोग किया था । श्री सुनील कुमार सिन्हा व श्री राम कुमार दुबे क्रमशः ॠण और अंकेक्षण विभाग देख रहे थे।सभी के सहयोग से समेकन का काम पूरा हो सका । मेरी सबसे बड़ी समस्या थी कि कोशी के तीनों क्षेत्रों के साप्ताहिक जी एल बी को संकलित कर हर सप्ताह प्र का को भेजना पड़ता था। वार्षिक लेखा बन्दी के प्रतिवेदनों
को भी यहीं संकलित करना पड़ा । मैं तो श्री के के मिश्रा वरीय प्रबन्धक लेखा विभाग के धैर्य और प्रतिबद्धता का कायल हूँ कि उन्होंने सहयोगियों के साथ मिलकर इन कार्यो का सामयिक निष्पादन किया । इसी बीच दिसंबर 2008 में ही श्री राजेश कुमार का स्थानांतरण प्रधान कार्यालय हो गया वरीय प्रबन्धक कार्मिक के पद पर ।
वार्षिक बन्दी के बाद एक बैठक में अध्यक्ष के सम्मुख मैंने कहा कि अब बन्दी और जी एल बी को संकलित करने का काम सम्बंधित क्षेत्र में ही होना चाहिए । यह स्वीकार कर लिया गया ।
मेरे लिये सबसे बड़ी चुनौती थी पूर्णिया में प्रशासन से समन्वय स्थापित करना और सांस्थिक जमा प्राप्त करना । यद्यपि पूर्णिया में पहले प्रधान कार्यालय और क्षेत्रीय कार्यालय दोनों होने के बावजूद जिला से अपेक्षित जमा नहीं प्राप्त होता था ।भा स्टेट बैंक सदा ही प्रभावी रहा ।
जिला पदाधिकारी युवा व सख्त थे। कुछ दिनों में ऐसा हुआ कि योजनाओं की समीक्षा हमसे शुरू और हम पर ही खत्म वाली बात हो गयी । अन्य बैंकों से प्रशासन को काफी नाराजगी थी। डी डी सी भी कटिहार के एक शाखा प्रबन्धक श्री रामाधीन मंडल के भाई ही थे । एम डी ,डी आर डी ए भद्र व्यक्ति थे । सब मिलाकर सौहार्दपूर्ण परिवेश बन गया और अब सीधे बिल भी हमें मिलने लगा ।इसका प्रभाव प्रखण्डों पर भी पड़ा । जमा की स्थिति सुखद हो गयी थी।कभी समीक्षा बैठक में जमा के लिये कुछ सुनना नहीं पड़ा ।
दूसरी चुनौती थी पूर्णिया जिला में शाखाओं के खातों कातुलन ।कटिहार की स्थिति बहुत बढ़िया थी।अध्यक्ष जोग साहब एक वरिष्ठ अधिकारी से पूर्णिया तुलन के बारे में पूछ बैठे कि ऐसी स्थिति क्यो है ? खैर मैंने इस मामले में मित्रों के साथ थोड़ी सख्ती जरूर बरती थी लेकिन इससे तुलन में बहुत सुधार हुआ था । श्री दीनबन्धु मिश्रा वरीय प्रबन्धक ने भी शाखाओं का बहुत अनुवर्तन किया था ।
याद आया कि श्री मनोज कृष्ण सिंह मेरे योगदान के समय वरीय प्रबन्धक आई टी सेल थे। हमारा कार्यालय पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत था । इसलिए आंकड़ों के संकलन, संप्रेषण व पत्राचार में सुविधा होती थी ।कम्प्यूटरीकरण में मनोज बाबू के नेतृत्व की जितनी प्रशंसा की जाये कम है । जब मैं किशनगंज क्षेत्र गया था अध्यक्ष पाल साहब के कार्यकाल में तभी से मनोज बाबू को शाखा दर शाखा बेचैन भटकते देखा था ।उनके अनुसार 2008 तक कोशी की लगभग 60 शाखायें कम्प्यूटरीकृत हो चुकी थीं । दिसम्बर ’08 में वे भी प्रधान कार्यालय आई टी सेल
के वरीय प्रबन्धक बन कर चले गये थे। लेकिन जब तक मेरे साथ रहे शाखाओं को सहयोग देते रहे । मुजफ्फरपुर में भी जाकर मनोज बाबू ने कम्प्यूटर सेल की स्थापना कर कम्प्यूटरीकरण का मार्ग प्रशस्त किया ।इसी का प्रतिफल है कि आज शाखायें निर्बाध रूप से काम कर रही हैं । अभी भी वे सेवा निवृत्त साथियों के लिए पेंशन की लड़ाई मे अग्रणी भूमिका निभा रहें हैं ।
पूर्णिया के मेरे अन्तिम अठारह माह के कार्यकाल में वसूली और वित्तायन दोनों मेंअच्छी उपलब्धि हुई जिससे क्षेत्र की लाभप्रदता बढ़ी।  सुखद स्थिति यह थी कि सभी ने एकजुट होकर हर लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास किया । बैंक के अध्यक्ष डॉ संगापुरे के समय में पूर्णिया के कला भवन में मेरा अन्तिम ॠण वितरण शिविर हुआ था जो ऐतिहासिक था। कला भवन का हाल लोगों से और उतना बड़ा मैदान ट्रैक्टर ,वाहन ,जे बी सी, रिक्शा,मधुमक्खी पालकों के उत्पाद आदि से भरा पड़ा था । अन्य बैंकों केमित्रों ,नवार्ड और अध्यक्ष के लिए भी यह दुर्लभआयोजन था।सभी ने इसकी तारीफ़ किया था।कटिहार एवं पूर्णिया की हमारी सभी 59 शाखाओं ने अथक प्रयास कर इस आयोजन को सफल बनाया था । एक अप्रिय घटना एक मित्र के साथ घटित हुई थी । श्री श्यामानन्द सिंह कटिहार बाजार शाखा में वरीय प्रबन्धक थे।एक दिन उनका फोन आया कि वे थोड़ा पहले जाना चाहते हैं ,बनमंखी में बड़ी बेटी की शादी तय करने । जो व्यक्ति निष्ठापूर्वक सदा बैंक का काम किया हो उसे इस शुभ कार्य के लिए ना कैसे कह सकता था । ये सहरसा से ही जुड़े हुए थे ।दूसरे दिन समाचार आया कि बनमंखी से निकलते समय वे किसी बांस लदी बैलगाड़ी के संतुलन बिगड़ने के चपेट में पड़कर मोटर साईकिल से गिर गये । चोट स्पाइनल कार्ड में लगी थी ।बहुत ईलाज के बाद भी वे खड़ा नहीं हो पाये तथा व्हील चेयर का सहारा लेकर शेष सेवा भी उसी निष्ठा से पूरा किये । एक लम्बे चौड़े हॅसमुख व्यक्ति को इस स्थिति में देखकर बड़ी वेदना हुई थी ।अभी उनके बच्चे अच्छी सेवा मे हैं और वे खुश हैं यही हमारे लिये सुखद संतोष है ।
पूर्णिया जिला में आदिवासियों की अच्छी आबादी है ।इसी अवधि में यहाँ मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए हमारे बैंक द्वारा सजग प्रयास किया गया ।श्री अरविंद उपाध्याय की शाखा गढ़बनैली व स्व प्रमोद कुमार झा की बनमंखी शाखा ने इसमे अग्रणी भूमिका निभाई थीं । अरविंद जी ने बताया कि गढ़बनैली में एक मधु प्रोसेसिंग केन्द्र भी खुला था जो अब योजना के
अनुवर्तन व मार्केटिंग के अभाव में बन्द हो गया है । यही अच्छी योजनाओं के साथ दुर्भाग्य रहा है । मैंने कटिहार जिला में भी एक केन्द्र पर प्रशिक्षण की व्यवस्था कराया था लेकिन मेरे आने के बाद कुछ काम नहीं हो पाया । मधु का उत्पादन इतना होता था कि कोलकाता प्रोसेसिंग एवं पैकिंग के लिए जाता था । फिर यहाँ आकर बिक्री होती थी ।हर पैक पर बैंक व समूह का नाम छपा होता था ।मैं बनारस भी दो पैक जार लाया था ।अब तो बस यादें शेष हैं ।
सेवा के अन्तिम पहर में सोचा कि चलते चलते अल्प वेतन भोगी संबाद बाहकों का स्थानांतरण सुविधा जनक शाखाओं में कर दूॅ ।पूर्णिया जिला में तो बहुत आराम से
सबका पदस्थापन हो गया ।लेकिन कटिहार जिला की सूची जब देखा तो बड़ा अटपटा लगा । स्थानांतरण से अधिकतर लोग असुविधा में पड़ जाते । इस लिये यथावत छोड़ दिया ।हालांकि यह प्रशासक के लिए उचित नहीं होता है । किन्तु मेरी स्थिति अलग थी उस समय ।
अठारह माह का समय बड़ी त्वरित गति से बीत गया।अब तो बैंक सेवा से ही निवृत होने का समय आ गया ।ये शब्द लिखते समय आँखे भर आयीं हैं ,कुछ दिख नहीं रहा है।.
………क्यों न हो, कोशी के सात जिलों के बड़े आंगन में मैंने लगभग तैंतीस बर्ष 164 शाखाओं के साथियों से भरे बड़े परिवार में बिताया था,सुख-दुःख का सहभागी भी बना था । उनसे ही हमेशा-हमेशा के लिए अलग होना था । थोड़ी देर के लिए विषयान्तर कर रहा हूँ ।

अपने विगत में थोड़ी देर के लिए जा रहा हूँ ।वर्ष 1972 से 1975 इमरजेन्सी लगने तक मैं Gandhian Institute of Studies Varanasi में रिसर्च एसोसियेट था ।स्व जय प्रकाश नारायण जी इसके अध्यक्ष थे ।केन्द्रीय सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त होती थी जो इमरजेन्सी में बन्द हो गयी । उसी अवधि में ए एन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान , पटना के प्रोफेसर हरिशंकर प्रसाद जो अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष थे व एम ए में मुझे इकोनामेट्रीक्स पढाये थे से बात हुई और एक अध्ययन मे जुडने का अवसर मिला ।फिर विश्व बैंक के बाजार समितियों पर एक अध्ययन के क्रम में गुलाबबाग आया।वहाँ बाजार समिति के उपाध्यक्ष श्रद्धेय पं यादवचन्द्र झा जैसे सरल व भद्र बुजुर्ग से भेंट हुई ।उनके पितृवत व्यवहार से मैं बहुत प्रभावित हुआ था ।
यहीं से मैंने बैंक में आवेदन किया और योगदान दिया था।बहुत समय बाद पता चला कि श्री चन्द्रानन्द झा उनके पुत्र हैं ।फिर तो हम परिवार के सदस्य बन गये ।इनके बड़े भाई श्री कमल आनंद तथा अन्य भाई भी जुड़ गये ।स्व कमल आनंद तो मेरे बिदाई समारोह में भी आये थे । आज तक हम जुड़े हुए हैं ।
कुछ साथियों के प्रति आभार व्यक्त न करूँ तो अनर्थ होगा । स्व प्रमोद कुमार झा 1983 में सहरसा में मुझसे जुड़े और जीवन पर्यन्त एक भाई की तरह सम्बन्ध निभाये ।हम उनके परिवार से आज भी सम्पर्क में हैं । उनके पिता श्री नृपेन्द्र झा सेवा निवृत्त भा प्र से के अधिकारी हैं । उनका आशीर्वाद हमेशा मिलता रहा है । मुझपर इतना विश्वास था कि कटिहार में जिस मकान में रहता था उसके मालिक के पुत्र से झा जी एक पुत्री की शादी की चर्चा किया तो दोनों परिवार सहमत हुये एवं विवाह सम्पन्न हुआ ।मैं कैसे भूल सकता हूँ कि स्व झा जी और अरविंद जी मुझे बनारस तक छोड़ने आये थे उसी दिन मेरे छोटे भाई अक्षय का मेदान्ता में ओपन हार्ट सर्जरी हो रही थी।पटना से कुछ पहले पता चला कि सर्जरी सफलता पूर्वक हो गयी तब जान में जान आई। उस हालत में दोनों ने मुझे बहुत सहारा दिया था ।
श्री अरविंद उपाध्याय से सम्बन्ध को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं ।वे ही नही पूरा परिवार हर सुख-दुःख में मेरे साथ खड़ा रहा ।प्रकृति से ही जुझारू यह व्यक्ति किस के संकट में साथ खडा नहीं रहा ।अपने और अपने हितैषियों के सम्मान के लिए किसी से भी लड़ जाते थे ।
जब मैं योजना एवं विकास विभाग में था तो उस अवधि में श्री अहमद इमाम मलिक व श्री बीरेन्द्र कुमार मेरे साथ अधिकारी के रूप में कार्य किये ।ये दोनों ही पारिवारिक रूप से आज भी जुड़े हुए हैं ।मलिक जी की बात करता हूँ तो उनकी माँ और उनका ममत्व बहुत याद आता है ।
उनके हाथ का बना लजीज भोजन व बेटा कह कर खिलाना सदा याद रहेगा।
उस समय श्री सदानंद विश्वास व श्री विजय श्रीवास्तव भी साथ काम किये । मेरे विश्वास को कायम रखते हुए दोनों ने बड़ी निष्ठा से मेरा साथ दिया ।स्व विनोद कुमार सिन्हा की भी याद आती है ।उनके असामयिक निधन से बड़ा मर्माहत हुआ था ।रिश्ते तो अधिकांश मित्रों से अच्छे थे ।इसीलिए सबका आभारी हूँ । बैंक से बाहर के श्री सुबोध कुमार यादव जनता चौक पर निवास के दौरान ऐसे जुड़े जैसे कोई वर्षों पहले का रिश्ता रहा हो।वे सी पी एम के नेता थे।शादी ही नहीं करना चाहते थे।बहुत दबाव डाल कर शादी कराये थे।आज भी उनके बच्चों के बड़े पापा और बड़ी मम्मी हम बने हुए हैं। कटिहार में श्री सुबोध कुमार मेरे ही कार्यकाल में बैंक के अधिवक्ताओं की सूची में जुड़े थे।बैंक को तो उन्होंने हर तरह से साथ दिया ही मुझसे आज भी अनुज की तरह जुड़े हुए हैं ।
श्री ज्ञान शंकर झा आज भी हर अवसर पर पूर्ववत याद करते हैं और सम्बन्धों की मिठास को बनाये हुए हैं ।श्री पंकज मिश्रा को भी भूल पाना सम्भव नहीं है ।हर सुख दुःख में एक पैर पर खड़ा रहने वाले इस बिंदास व्यक्ति के बारे में क्या लिखूँ ? 2019 में पेंसन वाले काम से सेवा निवृत्ति के नौ वर्ष बाद पूर्णिया गया था ।पैर के अंगूठे में चोट के कारण चलने में दिक्कत थी ।पटना से पूर्णिया होटल तक सर्वश्री अरविंद उपाध्याय,अशोक झा और शम्भु दयाल साह के साथ पहुँच गया ।होटल में निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार बी के बाबू के साथ रूका ।होटल के मालिक श्री उमा चौधरी से पुराने सम्बन्ध के कारण विशेष ध्यान रखा गया ।लेकिन पंकज मिश्रा ने ले जाकर चिकित्सा करा कर न केवल देख रेख किया बल्कि अपनी गाड़ी से कटिहार में ट्रेन में बैठा कर बिदा किया ।पंकज जी ने एक भावुक बात कहा था जो सदा याद रहेगा—- चिंता मत कीजिए ,यहाँ आप बहुत बड़ा परिवार बना कर गये हैं जो कभी नहीं आपको भूल पायेगा ।इतने वर्षों बाद मुझसे किसी स्वार्थ का संबंध तो नहीं था ये । एक और रिश्ते को आज सलाम करना चाहता हूँ जो अरेबिया (AIRRBEA ) से था ।कोलकाता में पहली बार का डी के मुखर्जी से मिला तो उनके सादगीपूर्ण अपनत्व से बहुत प्रभावित हुआ था ।उसके बाद तो अनेको बार भेंट हुई और बहुत करीब हो गये थे । कोशी की उपलब्धियो –खास कर बिना निर्धारित नीति के पदोन्नति कराने पर राष्ट्रीय मंचों पर जब मैं संबोधन के लिए खड़ा होता था तो पहले कोशी के लिए तालियाँ बजती थीं पाँच मिनट के लिए ।कोशी के महासचिव के अलावा मैं दो बार का. असित सेन अध्यक्ष के साथ उपाध्यक्ष रहा ।बिहार संगठन का भी दो बार उपाध्यक्ष रहने का सौभाग्य मिला । का. डी के आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उन्होंने अरेबिया को खड़ा करने से लेकर पल्लवित व पुष्पित कर एक वट वृक्ष बनाने के लिए जो त्याग व तपस्या किया है उससे वे अमर हो गए हैं ।मै उन्हें श्रद्धापूर्वक सदा याद करता हूँ । 28 – 2 -2010 मेरी सेवा निवृत्ति की तारीख थी लेकिन रविवार होने के कारण 27 फरवरी को ही विदाई होनी थी । रविवार को होली के धुरखेल का दिन था जिस दिन सड़क पर निकलना संभव नहीं होता है ।शनिवार को कार्यालय पहुँचा तो देखा कि कार्यालय के सामने पूरे परिसर में शामियाना लग रहा था,स्टेज बन रहा था ।
काम निपटाने के बाद मैं निवास चला गया । शाम सात बजे तक मैं भी पत्नी ललिता उपाध्याय व छोटे पुत्र अनन्तेश आनंद के साथ वहाँ पहुँच गया । मित्रों के साथ बात होती रही ।आर्केस्ट्रा कीं भी व्यवस्था थी।इतनी अच्छी व्यवस्था तो चालीस वर्ष पहले हमारी शादी में भी नहीं हुई थी ।सेवा निवृत्त साथी श्री बी के सिंह व श्री राज कुमार प्रसाद की उपस्थिति से बहुत खुशी हुई थी । मुझे पत्नि के साथ मंच पर बैठा कर समारोह आरम्भ हुआ । मित्रों ने अपनी भावनायें व्यक्त करना शुरू किया और हम दोनों के ऑंसू बहने लगे । ये तो कई बार फफक पड़ीं ।मेरे आग्रह पर संबोधन रोककर गाना बजाना शुरूहुआ । खैर, ये चलता रहा । इसी बीच मंच पर मुझे बैंक के तरफ से स्मृति चिन्ह व मित्रों की तरफ से मान- पत्र दिया गया । श्री अशोक चौधरी ने मुझ पर स्व- लिखित कविता भेंट किया था ।सबसे भावुक क्षण आया जब श्री पंकज मिश्रा ने अपने अभिकर्ता साथियों के साथ गणेश जी की धातु की बड़ी मूर्ति बड़ी भावना व्यक्त करते हुए भेंट किया ।ये सभी मेरे ड्राइंग रूम के शोकेस में आप सबकी यादों के रूप में सजे हुए हैं ।मेरे आभार व्यक्त करने के बाद आयोजन समाप्त हुआ ।स्वादिष्ट भोजनोपरान्त लगभग 11.30 बजे रात सभी अलग हुये । घर जाते समय दूर से एक बाइक मेरी गाड़ी के पीछे-पीछे मेरे घर तक आयी । देखा तो श्री सियाराम चौधरी सुपौल से भागे चले आये थे ।बोले कि कार्यक्रम में शामिल होने में बिलम्ब हो गया ।भोर में ही लौटना है ,केवल मिलने आये थे ।यें सम्बन्धों की मिठास अभी भी तरोताजा हैं ।

इतना भव्य व यादगार बिदाई समारोह मैंने तो नहीं देखा था । बाद में बताया गया था कि इसे सफल बनाने में सर्वश्री दीनबन्धु मिश्रा ,सी एन झा ,अरविंद उपाध्याय , ज्ञान शंकर झा , अशोक कुमार चौधरी, धर्मेन्द्र कुमार ओझा ,पी के श्रीवास्तव,ए आई मलिक,शम्भु दयाल साह, स्व संजीव कुमार सिन्हा सदानन्द विश्वास, पंकज मिश्रा, जे पी जयसवाल व क्षेत्रीय कार्यालय के अन्य मित्रों ने प्रयास किया था ।सभी के प्रति आज पुनः आभार ।
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कोसी क्षेत्र के पुराने जनप्रतिनिधियों व निवासियों के स्नेहपूर्ण सम्बन्धों को नमन करते हुए कोशी के मित्रों की अविस्मरणीय यादों के साथ यह भोगा यथार्थ यहीं समाप्त करता हूँ । कोसी क्षेत्र व कोशी बैंक दोनों मेरे जहन में हैं ।इनसे अलग होना सम्भव नहीं है । मैं किसी न किसी रूप में
दोनों से जुड़ा रहूँगा ।
श्री अशोक कुमार चौधरी,प्रधान संपादक,नमस्ते भारत इलेक्ट्रॉनिक पत्रिका के प्रयास के कारण ही मै आपसे पुनः एक बार जुड़ सका और अपनी यादों के साथ जी सका । मुझे लिखने के लिए भी उन्होंने ही प्रेरित किया और छोटे बेटा व बहू ने रास्ता दिखाया ।अब तो लिखने की आदत पड़ गयी है ।चौधरी जी को इसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद व बधाई ।
मैंने पहले भी सभी से आग्रह किया था कि इस उपलब्ध मंच का सकारात्मक उपयोग कर मित्रों को लाभान्वित करें । एक साथी के प्रयास को गतिमान बनायें ।

दीपावली व छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनायें 🙏।

2 thoughts on “संस्मरण : रमेश उपाध्याय भाग: 8”
  1. दीपावली की पूर्वसंध्या पर भोगा यथार्थ के अन्तिम भाग के प्रकाशन के लिए धन्यवाद ।आपने प्रारम्भ से ही संस्मरण के सम्पादन में बहुत परिश्रम किया है जिसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद व शुभकामनायें ।
    यह जानकर खुशी हुई और गर्व भी हुआ कि यह पत्रिका विदेशों में भी पढ़ी जाती है और पाठकों की संख्या दस हजार से अधिक हो गयी है ।इसके लिए सम्पादक मंडल के सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाईयाँ ।
    आप सभी को दीपावली व छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ।

  2. मेरा मोबाईल ख़राब तथा पूरा भर जाने(space नहीं रहने) के कारण मोबाईल खुल ही नहीं रहा था।जिस कारण बहुत दिनों से मै मोबाईल में कुछ नहीं देख पा रहा था। श्री उपाध्याय बाबु का भोगा यथार्थ-8 को आज ही देख पाया।समय पर श्री उपाध्याय बाबु के संस्करण का अंतिम भाग पर अपना मन्तव्य नहीं दे पाने के कारण बहुत लज्जित हूँ।
    श्री उपाध्यायजी के संस्मरण के अंतिम भाग पढ़ते पढ़ते मेरे भी आँखों से आँसू बहने लगे।लेख को कई वार पढ़ा।उपाध्याय बाबु का लेख इतना जीवंत लग रहा है,लगता है 10 वर्ष पहले उपाध्याय बाबु सेवा निबृत नहीं वल्कि आज सेवा निबृत हो रहे हैं।सभी सहकर्मियों के साथ ऐसा मधुर व्यवहार जिसे कोई भुला नहीं सकता है।कोई भी व्यक्ति आपके व्यवहार से रुष्ट हुआ होगा ऐसा मुझे जानकारी में नहीं है।सबको अपने उपकार ही किया है।विशेष कर कोसी अल्प वचत योजना के अभिकर्ताओं ने तो आपको भगवान का ही स्वरुप मानते हैं।आपने हमेशा बैंक को उच्चतर शिखर पर ले जाने के लिए नए नए योजनायों को लागू किया और खुद सहकर्मियों के सहयोग से उसे पूरा कर दिखाया।आपके साथ सहकर्मियों ने प्रफुल्लित मन से निडर होकर सहयोगात्मक दृष्टि से एक बड़े भाई के साथ काम किया,जिस कारण से ही आपने हर क्षेत्र में सम्मान पाया और आज भी आप हमलोगों के दिल में एक बड़े भाई की तरह ही हैं।आज भी हमलोग आपको उतना ही आदर और सम्मान देते हैं जितना 10 वर्ष पहले देते थे।आप अभी जयपुर में हैं लेकिन लगता है आप हमलोगों के वीच में ही हैं।आपके जैसा व्यवहार कुशल,मृदुभाषी, दूरदर्शी,कर्मवीर,योग्य प्रशासक के रूप में पाकर हमारा कोसी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक/उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक हमेशा आपका ऋणी रहेगा।

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