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बाल की खाल

दिनांक 14/11/1986 को बाल दिवस के दिन मैने आबादपुर शाखा मे शाखा प्रबंधक के पद पर अपना योगदान दिया।श्री ओम प्रकाश सिन्हा जी से मैने प्रभार लिया था।एक दिन एक ग्रामीण आये तो बडी आत्मीयता से मिले और बातचीत के दौरान मुझे आश्वस्त किया कि आपको यहां कोई परेशानी नही होगी क्योंकि आबादपुर मे एक प्राइमरी स्कूल के साथ-साथ एक हाईस्कूल भी है ,जहां अपने बच्चो को शिक्षा दिला सकते हैं।उनके जाने के बाद मैं मंद मंद मुस्कुरा रहा था तो मेरे सहकर्मी लिपिक सह खजांची श्री पी .एन.दास और मैसेंजर पुरण चंद्र साहा जो मेरी वायोग्राफी से परिचित नही थे,मुस्कुराने का कारण पुछा।कारण जानते ही एक ठहाका गुंजायमान हुआ।बाल दिवस के दिन भी योगदान देना काम न आया क्योंकि मेरे सर पर बाल नही थे और मै एक बुजुर्ग शाखा प्रबंधक के रूप मे पहचाना गया।शायद पूर्ववर्ती सिन्हा जी के क्रम से जोड़ा गया।लेकिन कुछ ही दिनो में मेरा भेद खुल गया कि मै कुंवारा हुं।अच्छा हुआ था कि जुलाई 1983 मे मै सबसे पहले मिठाई शाखा मे अपना योगदान दिया और ललित बाबु से प्रभार लिया था जिनके व्यक्तित्व का,वहां की संस्कृति का और परदा सिस्टम का प्रभाव से मै तपा तपाया था जबकि आबादपुर मे वंगला और सुरजापुरी भाषा का इस्तेमाल और प.बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र के कारण उन्मुक्त वातावरण जहां जात-पात और धर्म भी कोई मायने नही रखती थी,मुझ पर ज्यादा असर नही पड़ा फिर भी सतक॔ रहने लगा।मेरी परेशानी और बढ़ती या शायद मेरी तपस्या भंग हो जाती लेकिन 1990में मेरी शादी हो गई और मैं बाल बाल बच गया।फिर अगस्त 1990मेरा तबादला प्रधान कार्यालय हो गया और बच्चो को आबादपुर स्कूल मे पढाने का सपना अधूरा रह गया

रवि कुमार घोष

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