।।निवेदन–: जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है ,मैं बैक मे अपने यादगार विगत क्षणों का पुनरावलोकन करने काप्रयास कर रहा हूँ ।तथ्यों को संयमित कर बिना किसी को आहत किये मैं सहरसा मे बिताये सात वर्षों को एक बार फिर जीने का प्रयास कर रहा हूँ ।। कुमारखण्ड से सहरसा शाखा सह नियंत्रण कार्यालय मैं अप्रैल 1981मे आया ।सहरसा पहुँचने की भी एक कथा है जिसका उल्लेख करना उचित नहीं लगता । हाँ इतना बता देना आवश्यक है कि प्रबंधन पर कोर्ट में मुकदमा दायर करने के बाद मुझे नियंत्रण कार्यालय भेजा गया ।
उस समय सहरसा जिला अविभक्त था ।राजनैतिक रूप से बहुत ही प्रभावशाली जिला था ।मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्रा के अलावा जिला में चार प्रभावशाली मंत्री थे ।राजनैतिक रूप से सक्रिय माहौल में काम करने में बैंकर भी असहज महसूस कर रहे थे ।हालांकि उस समय के मंत्री, सांसद या विधायक, सबका वर्ताव आत्मीय व सहयोगपरक था ।इसे मैं आज भी सादर याद करता हूँ ।
अपने बैंक की छवि को जनता, जनप्रतिनिधियो व जिला प्रशासन के बीच वेहतर बनाने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ा।इसमें शाखाओं में काय॔रत साथियों ने भी बहुत सहयोग दिया था।यह बताने का मकसद है कि आजके साथी जान सकें कि कैसे हर जगह हमे व हमारे साथियों को पहचान बनाने के लिए सघष॔ करना पड़ा। सच कहूँ तो उस समय तक जिला स्तर पर कोई पहचान नहीं बन पायी थी ।सहरसा कमिश्नरी भी थी जिसमें आजकी पूर्णिया कमिश्नरी भी समाहित थी।दूसरे KADA(Kosi Area Development Agency)के कमिश्नर भी बहाँ रहते थे।काडा में विकास हेतु अपेक्षया अधिक राशि आती थी । जिला स्तर पर SFDA(Small Farmers Development Agency )का गठन किया गया था ।बाद में S F D A के बदले DRDA बना ।मुझे बताया गया था कि काडा के सचिव हमारे बैंक को बैंक समझ ही नहीं रहे थे ।
ऐसे तो कुमारखंड में रहते हुए भी बैंक के तरफ सेजिला स्तरीय बैठकों में जाया करता था, लेकिन सहरसा में योगदान के बाद पहली ही बैठक में एक माननीय विधायक ने हमारी एक दूरस्थ शाखा के बारे में शिकायत किया ।बैंक की प्रतिष्ठा पर मुझे प्रहार लगा और आक्रोश में मैने विरोध किया ।बीस सूत्री के प्रभारी मंत्री श्री शंकर दयाल सिंह ने मेरा नाम व गाँव पूछ कर बोले कि’ ई पानी के असर बा ‘ । विधायक जी को बोले कि वो जानकारी दें समाधान हो जायेगा ।परिचय के बाद माननीय विधायक जी शांत हो गये थे ।मीटिंग के बाद बाहर वे मिले तो बोले कि आपको जानता था लेकिन यह पता नहीं था कि आप यहाँ आ गये हैं ।मै भी उन्हें नाम से जानता था लेकिन देखा नहीं था ।वे बुजुर्ग थे इसलिए मैंने सम्मान पूर्वक उन्हें सहयोग का वचन दिया था ।उस दिन की बैठक से बैंक के लिए बडा सकारत्मक माहौल बना ।मुझे फिर परिचय देने की आवश्यकता नहीं पड़ी।हाँ बता दूँ कि कुमारखंड के प्रखंड प्रमुख जो जिला परिषद के अध्यक्ष बने थे व हमारे बैंक के शुभचिंतक थे द्वारा हमारे बारे मे पहले ही सकारात्मक चर्चा विधायक जी से की गयी थी ।
उस समय बैंक वाले बैठकों में मूक दर्शक बने बैठे रहते थे ।मुझे पता था कि व्यावसायिक बैंकों की जड़ें कितनी गहरी थीं और बच्चे की तरह रोने व माँगने से न सरकारी जमा प्राप्त होगा न पहचान मिलेगी ।इसलिए मैंने बैठकों में सक्रियता व स्पष्टता बनाये रखी। साथ ही सरकारी योजनाओं का वित्तायन कैम्पों में जिला पदाधिकारी, उप विकास आयुक्त व आयुक्त की उपस्थिति में कराना शुरु किया ।इसका बडा सकारात्मक लाभ मिला ।हमारी शाखायें भी अधिक थी, सरकारी लक्ष्य भी बीस सूत्री कार्यक्रम का अधिकारियों को प्राप्त करने का दवाब था और हम सक्रिय बैंकर मिल गये ।अब हमारे बैंक के पक्ष में माहौल बन गया ।हमें सरकारी गाड़ी उपलब्ध होने लगी,सरकारी उच्चाधिकारी साथ भ्रमण करने लगे ।सहरसा जिला में अलग ही हवा चलने लगी ।अब जमा देने के लिए भी हमें बुलाया जाने लगा ।व्यावसायिक बैंकों के लिए यह कडी चुनौती बन गयी ।
एक और महत्वपूर्ण सन्दर्भ बताना आवश्यक है ।सहरसा कमिश्नरी में एक बैठक में कई जिला पदाधिकारी, उप विकास आयुक्त व सभी बैंकों के उच्चाधिकारी उपस्थित थे ।राज्य स्तर से विकास आयुक्त व सांस्थिक वित्त विभाग से श्री बी के ठाकुर आये हुए थे। जिला पदाधिकारी सहरसा भी एक दो दिन पहले ही योगदान दिये थे ।समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम की समीक्षा के क्रम में मेरे लम्बे संबोधन से सभी बहुत प्रभावित हुए थे ।यहाँ तक कि सर्किट हाऊस में भोजन के समय नये जिला पदाधिकारी ने स्वयं आकर परिचय दिया था ।ठाकुर साहब से भी वही परिचय हुआ था । मेरी पहचान बैंक से ही थी इसका मुझे एहसास हमेशा रहा लेकिन जो मेरा दायित्व था उसका प्रभावी ढंग से निर्भीक निर्वहन करने से ही बैंक को सहरसा में एक अलग पहचान मिली ।
पहले बैंक की बैठकें कभी-कभी होती थी ।अक्तूबर 1982 में श्री डी वी के शर्मा के अध्यक्ष बनने के कुछ समय बाद शाखा प्रबन्धकों की त्रैमासिक बैठकों का नियमित सिलसिला शुरू हुआ। इसमें अध्यक्ष विशेष परिस्थिति को छोड़ अवश्य आते थे । कभी किसी विशेष बैठक में भाग भी लेते थे या कभी- प्रतिनिधि भी आते थे ।मेरे आने के बाद न जिला प्रशासन को कुछ कमी लगती थी न प्रधान कार्यालय को।दोनों का लक्ष्य पूरा होता था ।जिला प्रशासन से बेहतर सम्बन्ध के कारण शाखाओं को प्रखण्ड से सांस्थिक जमा भी मिलता था ।लक्ष्य से पीछे रहने पर जिला स्तर से मुझे सहायता करानी पडती थी ।न कोई शिकवा न कोई शिकायत । मैं बैंक के साथियों से सहरसा आने से पहले से ही यूनियन के माध्यम से सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ था ।इसका भी लाभ मुझे सभी शाखाओं को एक सूत्र में बांध कर काम करने में मिला ।मैं प्रभारी नियंत्रण कार्यालय के साथ साथ अरेबिया का अखिल भारतीय उपाध्यक्ष व बिहार का भी उपाध्यक्ष था। संगठन के सम्बन्ध में कभी अलग से चर्चा करेगें ।
सहरसा कार्यालय पहले स्व नित्यानंद सिंह (बैंक के एक साथी श्री अखिलानन्द सिंह के पिता) के मकान में धा । वे सेवानिवृत्त उप समाहर्ता थे । बहुत ही भद्र व मृदु भाषी थे । मैं सहरसा आने पर कुछ दिनों तक अकेले बैंक के ही एक कमरे में रहा ।लेकिन मुझे एक दिन भी नही लगा कि मैं अपने परिवार में नहीँ हूँ ।अखिल बाबू के यहाँ जो आत्मीयता मिली वो दुर्लभ है । अखिल बाबू अपने पिता के व्यवहार के सच्चे प्रतिनिधि हैं ।अब वैसे लोग कहाँ मिलते हैं ।कुछ दिनों के बाद श्री ललित कुमार सिंह के सहयोग से गंगजला चौक के निकट एक मकान में रहने चला गया। फिर प्रो जवाहर झा के मकान में चला गया,
मुझे याद है कि सत्तर शाखा के उद्घाटन के अवसर पर जिला पदाधिकारी व उप विकास आयुक्त श्री राम सेवक शर्मा दोनों आये थे । बैंक भवनों की अनुपलब्धता व वर्तमान भवनों की जर्जर स्थिति की चर्चा तो पहले भी किया था ।लेकिन उस दिन क्षेत्र में होने के कारण इसे समझाने मे सुविधा हुई ।उस समारोह में भवन की समस्या झेल रहे थुम्हा के शाखा प्रबन्धक श्री रविशंकर सिंह भी थे।उन्होंने भी अपनी समस्या बताई ।
उसी समारोह में सहयोग करने की बात हो चुकी थी ।उस समय सरकार के पास भी सीमित निधि आती थी ।फिर मिला तो थुम्हा का भवन शायद SFDA की किसी योजना से निधि दे कर बनवाया गया। इसमें शाखा प्रबन्धक के रहने की व्यवस्था भी थी । SFDA के बोर्ड के सदस्य होने के नाते निर्णय कराने में सुबिधा होती थी ।
कुछेक महीने बाद SFDA के बदले जिला ग्रामीण विकास अभिकरण का गठन किया गया जिसकेबोर्ड में मुझे भी सदस्य बनाया गया वो भी नाम से ।मुझे जानकारी मिली कि IRDP में Infrastructure विकसित करने के लिए 25 लाख रुपये की राशि प्राप्त हुयी है ।निदेशों को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि बैंक के लिए भी मकान बनाया जा सकता है । उप विकास आयुक्त से इसपर चर्चा किया तो वे सहमत हुये ।पहले मैंने पाँच शाखाओं क्रमशः पीपरा,छातापुर, भीमनगर, महिषी व सौरबाजार के भवन का प्रस्ताव दिया जिससे जिला पदाधिकारी भी सहमत हुये ।अब बोर्ड से पारित कराने की बात थी ।बोर्ड में जिला के सांसद, विधायक याउनके नामित प्रतिनिधि के अलावा जिला के पदाधिकारी व दो या तीन बैंकर थे।मुख्यमंत्री के बड़े भाई श्री श्याम नारायण मिश्र भी सदस्य थें ।सभी परिचित थे और तब तक ग्रामीण बैंक के प्रशंसक बन चुके थे। मुझे विश्वास था कि कोई समस्या नहीं होगी ।खैर, बैठक में मैंने पांच भवनों का नाम सहित प्रस्ताव रखा ।जनप्रतिनिधियों ने एक स्वर में कहा कि हमारे प्रखण्ड में भी ग्रामीण बैंक के लिए मकान बनना चाहिए ।अन्त में सभी 16प्रखण्डों में एक एक भवन हमारी बर्तमान/प्रस्तावित शाखाओं के लिए बनाने का निर्णय लिया गया । उप विकास आयुक्त की हालत देखने लायक थी क्योकि वे अन्य प्रस्ताव भी ले कर आये थे । बाद में मैंने 16 स्थानों का नाम भेजा ।खैर, भवन का नक्शा मेरी सहमति से बना ।प्रस्तावित भवन में एक हाल,उसके आगे पीछे ग्रिल किया बरामदा ,एक कमरे व बाथ रूम की व्यवस्था रखी गई ।एकभवन के लिए उस समय 1.25 लाख राशि तय हुई थी ।इस प्रकार उपलब्ध 25 लाख की राशि में से 20लाख हमारे बैंक के लिए प्राप्त हुआ ।इसकी लिखित जानकारी मैंने प्रधान कार्यालय कोभेजी थी ।मेरी जानकारी में पूरे देश में बैंक के लिए मकान वह भी समेकित योजना की निधि से बनाने की यह पहली उपलब्धि थी ।
सहरसा में मेरे रहने तक पीपरा,छातापुर, भीमनगर, गम्हरिया व महिषी शाखाओं के लिए व प्रस्तावित सरडीहा व किशनपुर प्रखंड में एक स्थान पर भवन तैयार हो गये थे ।वर्तमान पाँचों शाखायें इन भवनों में ही कार्यरत हो गयीं ।इनका भाड़ा भी नहीं देना पड़ा ।कुछ जगहों पर जमीन विवाद के चलते मकान नहीं बना तो कहीं उदासीनता के कारण ।
मैं शर्मा साहब की बहुत ईज्जत आज भी करता हूँ ।संगठन में सक्रिय होने के कारण हमारे बीच मतभेद पैदा कर दिया गया था ।इसके बावजूद वो हमारी बात मानते भी थे और विश्वास भी करते थे ।मुझे याद है कि 1984 वर्ष में लिपिक वर्ग से क्षेत्रीय पर्यवेक्षक पद पर परप्रोन्नति हुई थी। अच्छे काम से सहरसा जिला में सबसे अधिक व सटीक प्रोन्नति हुई थी ।
कुछ लिपिक साथी स्नातक नहीं थे अतः प्रोन्नति के योग्य नहीं थे ।एक दूसरी समस्या यूनियन में आयी कि जीवन भर क्या ये इसी पद पर रहेंगे । रोज साथियों का फोन आवे कि कुछ करें ।मैं बाहर के बैकों के सम्पर्क में था ही ।भोजपुर ग्रामीण बैंक में कार्मिक प्रबन्धक मेरे मित्र थे ।उनसे जानकारी मिली कि उनके बैंक में यह हुआ था ।मैं घर गया तो आरा भी चला गया ।प्रोन्नति पालिसी लेकर अध्यक्ष शर्मा साहब से मिला , वे सहमत होने के साथ साथ खुश भी हुये ।बोर्ड से पास होने के बाद प्रोन्नति भी हो गयी । इसे भले पढ़ने में दस सेंकडं आपको लगा किन्तु इसे कराने में हुई परेशानी का अनुमान भी आप नहीं कर सकते हैं ।
मार्च 1985 में अध्यक्ष शर्मा साहब ने बताया कि मार्च महीने में ही 22 शाखायें खोलनी हैं वर्ना लाईसेंस समाप्त हो जायेगा ।एक तो मार्च का महीना दूसरे समयाभाव, बड़ी चुनौती थी । खैर प्रधान कार्यालय के सहयोग से मकान तय कर अन्य व्यवस्था तो कर ली गयी ।अब तिथि व उद्घाटन का निर्णय करन था । शर्मा साहब ने कहा कि यह आप ही से सम्भव है ।यह भी निर्णय हुआ कि एक ही तिथि पर एक ही स्थान से दीप जला कर 22 शाखाओं का उद्घाटन हो ।मैं आयुक्त सहरसा से मिलने गया ।श्री के के साहा आयुक्त थे व उनसे अच्छा सम्बन्ध था। 31 मार्च की तारीख तय हुई । उन्होंने स्थान का निर्णय मुझ पर छोड़ा इस शर्त के साथ कि स्थान बिलकुल ग्रामीण होना चाहिए ।यें कोई समस्या थी ही नहीं ।श्री शर्मा साहब को निर्णय से अवगत कराते हुए सोनामुखी स्थान तय हुआ । उस जमाने के साथी जानते हैं कि 31मार्च को जिला के सभी पदाधिकारी दिन रात बिल बना कर ट्रेजरी से पैसा निकालने व बिल पास करना/कराने में व्यस्त रहते थे वर्ना राशि वापस हो जाती थी ।जिला पदाधिकारी तो जिला के सर्वेसर्वा होते थे ।यह जानते हुए भी मैं जिला पदाधिकारी मधेपुरा श्री मिथिलेश कुमार से मिलने निवास स्थान पर गया ।उन्हें आयुक्त के यहाँ से जानकारी मिल गयी थी ।वे बहुत परेशान लगे ।वे बोले कि वे सब व्यवस्था करा देगें लेकिन सम्हालना मुझे होगा ।मैंने आश्वस्त कर दिया ।उन्होंने प्रखंड विकास पदाधिकारी से 30 तक ही शामियाना आदि की व्यवस्था करने का आदेश दे दिया था ।
31मार्च का दिन मेरे लिए बहुत तनावपूर्ण था। उदाकिशनगजं आई बी के डाक बंगला में सभी को आना था ।बैंक के अध्यक्ष व आयुक्त के साथ यहाँ से जीप से सोनामुखी की यात्रा कच्ची सडक से प्रारम्भहुई ।धूल-धुसरित हो हम पहुँचे। मुँह-हाँथ साफ कर शामियाना में लोगों के बीच गये ।भीड़ काफी थी,गांव वालों के लिए उत्सव जैसे था।आयुक्त भी भीड़ देखकर खुश थे । वहीं से 22 दीप जलाकर 22 शाखाओं का उद्घाटन आयुक्त द्वारा किया गया ।फिर उसी रास्ते लौटे धूल-धूसरित होकर ।आई वी में फ्रैश होने के बाद आयुक्त ने कहा कि उपाध्याय, मैंने interior गांव तो कहा था लेकिन इतना नहीं ।मैंने कहा कि उस क्षेत्र में कभी कमिश्नर नहीं गये थे और शायद ही कभी जांय ।इस बात से वे सुकून महसूस किये व उनकी थकान भी कम हो गयी ।मैं भी आयुक्त व अध्यक्ष को विदा कर राहत की सांस लेते हुए सहरसा लौट आया ।दूसरे दिन जिला पदाधिकारी, मधेपुरा को फोन पर व्यवस्था के लिए धन्यवाद देकर स्थिति बतायी तो वे भी आश्वस्त हुए ।
सहरसा की बहुत सी यादें हैं ।सबको लिखने पर बात बढ़ती जायेगी ।सहरसा में मैं प्रभारी, नियंत्रण कार्यालय, जिला प्रबन्धक, मंडलीय प्रबन्धक आदि पदों पर कार्य कर चुका था ।यूनियन के चलते शर्मा साहब से दूरी बढ़ती ही जा रही थी ।संगठन में भी दो भाग हो गया था । दुःखी होकर मैंने संगठन भी छोड़ दिया । शर्मा साहब के साथ सहरसा में घटी एक घटना को मुझसे जोड़ कर उन्हें समझाया गया कि सहरसा में उनके बिना ऐसा हो ही नहीं सकता ।वे भी इन्सान ही थे,विश्वास कर लिए ।कुछ दिनों बाद सहरसा कार्यालय का प्रभार दूसरे अधिकारी श्री पी के झा को देने का आदेश आया ।उसी दिन मैंने प्रभार दे दिया और अगले निदेश की प्रतीक्षा करने लगा ।लगभग एक सप्ताह बाद एक परिपत्र मिला जिसके अनुसार मुझे विशेष कार्य पदाधिकारी (O S D ) सहरसा व मधेपुरा जिलों का बना दिया गया और H Q सहरसा ही रखा गया । मुझे समेकित योजना के कार्यान्वयन के साथ साथ जमा व वसूली को गति देने कीजवाबदेही भी दी गयी थी ।मेरे स्थान पर श्री हराधन रजक को सहरसा नियुक्त किया गया था ।लगा कि सहरसा के अलावा कोई और जगह मेरे लिए बनी नहीं थी ।
खैर, ये उस समय के साथी जानते हैं कि यह पद भी उपलब्धियों के बल पर चर्चित बन गया था ।समेकित की उपलब्धियों के अलावा मैंने ॠणदस्तावेजों को कालतिरोहित होने से बचाने व वसूली को गति देने के लिए एक प्रस्ताव बैंक को भेजा था जिससे न केवल सहमति जताई गई बल्कि पूरे बैंक में लागू किया गया ।इस अवधि की उपलब्धियां भी यादगार थी ।कई हजार दस्तावेजों के नवीनीकरण के अलावा वसूली भी बहुत बढ़िया हुई थी ।
2-7-1986 को श्री आर एन बोधनकर ने अध्यक्ष का प्रभार लिया ।मैं घर गया था और जिस दिन शर्मा साहब की विदाई थीं, उसी दिन घर से सपरिवार लौटा ,सम्भव नहीं हुआ मिल पाना । बोधनकर साहब से सहरसा में ही भेंट हुई ।वे हालात को समझ गए थे ।सहरसा में मेरे समन्वय व काम से काफी प्रभावित थे । स्केल 2 में प्रोन्नति के कुछ दिनों बाद अप्रैल 1988 में यानि ठीक सात साल बाद सहरसा से मेरा स्थानांतरण प्रधान कार्यालय हुआ ।बोधनकर साहब के समय में ही सहरसा शाखा डी बी रोड में ले गया था ।
विशेष ध्यानाकर्षण : उस समय के मुख्यमंत्री श्री जगन्नाथ मिश्रा जी का घर बलुआ बाजार सहरसा है ।उनके बड़े भाई स्वर्गीय ललित नारायण मिश्रा जी के घर के परिसर में ही एक बड़ा गेस्ट हाउस था।शाखा खोलने के लिए यह भवन उपलब्ध हो गया था । 26-5-1981को मुख्यमंत्री श्री जगन्नाथ मिश्रा जी के द्वारा इसका उद्घाटन हुआ था ।श्री राजेश्वर प्रसाद , अध्यक्ष के कार्यकाल में ही यह शाखा खुली थी ।इस अवसर के कुछ यादगार फोटो नीचे दिए हैं जो बैंक के साथी श्री अरुण चन्द्र गुप्ता के सौजन्य से प्राप्त हुए हैं । सहरसा से मेरा विशेष लगाव था जो आज भी जीवन्त है ।सर्वश्री प्रेम चन्द्र सिंह, अखिलानन्द सिंह, शारदानन्द सिंह व राम चन्द्र सिंह अभी भी सम्पर्क में बने हुए हैं ।स्व प्रमोद कुमार झा यही पर मुझसे एक भाई की तरह जुड़े थे और जीवन पर्यन्त इसे संजीदगी से निभाये ।
चलिए, माँ तारा को प्रणाम करते हुए पूर्णियां चलते हैं ।
बहुत सुंदर वर्णन। घटना का प्रवाह बड़ा प्रभावी है।सर तो कलम के जादूगर हैं। बैंक को उन्होंने जो दिया है वह बैंक के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो चुका है और इसके गवाहों के रुप में खुद को पाकर स्वयं भी आनंदित महसूस कर रहा हूं।
श्री रमेश उपाध्याय बाबु का संस्मरण भाग-3 पढ़कर हमलोगों को बैंक के पुराने स्थिति फिर से याद आ गया।जिस समय सरकार के वरिष्ठ मुलाजिमों ने हमारे ग्रामीण बैंक को चिटफंड की तरह समझते थे,और इसे बैंक का दर्जा भी नहीं देते थे।उस समय श्री उपाध्याय जी जैसे बैंक के धैर्यशील,कर्मशील योद्धाओं की ही वजह से सभी सरकारी प्रतिष्ठानो को यह महसूस करने पर वेवस कर दिया था कि हमारे ग्रामीण बैंक भी अन्य व्यबसायिक बैंको की तरह ही कार्य करता है।सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों से सिर्फ और सिर्फ हमारा बैंक ही सम्पर्क रख उन लोगों के विकास में हर तरह का मदद कर सकता है।ऐसा विस्वास सरकारी मुलाजिमों को दिलाने में श्री उपाध्याय जी का बैंक के प्रति जो योगदान रहा उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।जिस कारण आज ग्रामीण बैंक विकास कार्य में सरकार के नजर में सबसे आगे है।
प्रशांत कुमार घोष,मधेपुरा।
Delivering comment to such a captivating chronological memoirs gone by none else than our revered writer at this age having very little records in hand presently – is not my forte. The delivery is scintillating & very vivid & affectionate.
Akhil
अग्रज का संस्मरण एक बारगी अतीत के गह्वर में लेकर चला गया।आज के नये लोग उस संघर्ष की कल्पना नहीं कर सकते।यदि उस समय के कर्मी इस प्रकार संघर्ष न किये होते तो ग्रामीण बैंकों का वर्त्तमान स्वरूप शायद कुछ और ही होता। सम्पादक जी को बहुत -बहुत धन्यवाद।
श्री उपाध्याय जी के साथ कार्य करने का मुझे भी सौभाग्य प्राप्त हुआ ।मै दिनांक 10- 01-1984को सहरसा शाखा में क्षेत्रीय पर्यवेक्षक के पद पर योगदान दिया ।उस समय श्री उपाध्याय जी प्रमंडलीय प्रबंधक सह शाखा प्रबंधक के पद पर कार्यरत थे ।उनमें प्रशासन के साथ एंव स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ तारतम्य बैठाने की अद्भुत क्षमता थी ।वे हमेशा अपने सहकर्मियों के साथ अपनत्व का व्यवहार रखते थे । हमेशा उनके सुख दुःख का ख्याल रखते हैं, यही कारण है कि हमलोग आज भी उनसे जुड़े हुए हैं ।अपने ब्यक्तित्व से हमेशा बैंक का मान बढाते रहे । अपने संस्मरण से K K G Bका इतिहास को जीवंत कथा मे प्रस्तुत कर रहे हैं ।इसके लिए उन्हें कोटि कोटि धन्यवाद ।
श्री रमेश उपाध्याय बाबु का संस्मरण भाग-3 पढ़कर हमलोगों को बैंक के पुराने स्थिति फिर से याद आ गया।जिस समय सरकार के वरिष्ठ मुलाजिमों ने हमारे ग्रामीण बैंक को चिटफंड की तरह समझते थे,और इसे बैंक का दर्जा भी नहीं देते थे।उस समय श्री उपाध्याय जी जैसे बैंक के धैर्यशील,कर्मशील योद्धाओं की ही वजह से सभी सरकारी प्रतिष्ठानो को यह महसूस करने पर वेवस कर दिया था कि हमारे ग्रामीण बैंक भी अन्य व्यबसायिक बैंको की तरह ही कार्य करता है।सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों से सिर्फ और सिर्फ हमारा बैंक ही सम्पर्क रख उन लोगों के विकास में हर तरह का मदद कर सकता है।ऐसा विस्वास सरकारी मुलाजिमों को दिलाने में श्री उपाध्याय जी का बैंक के प्रति जो योगदान रहा उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।जिस कारण आज ग्रामीण बैंक विकास कार्य में सरकार के नजर में सबसे आगे है।
प्रशांत कुमार घोष,मधेपुरा।
कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के निर्माण में प्रथम पंक्तियों में सात सितारों का नाम किसी कर्मी को स्मरण न हो ऐसा मुझे विश्वास नहीं। इनमें सबसे चमकते सितारों में श्री रमेश उपाध्याय जी ही रहे। इनके साथ काम करने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ। प्रधान कार्यालय और कटिहार के क्षेत्रीय कार्यालय में इनके पदास्थाना के कारण मैं इनके संपर्क में आया और इनकी कार्यशैली से भी परिचित हुआ। अरेबिया से भी मैं जुड़ा था। सभी स्थानों में इन्होंने अपना लोहा मनवाया।
अभी भी इनके साथ मेरा सुमधुर संबंध बना हुआ है। इनके संस्मरणात्मक लेख कई नये पहलुओं को प्रकाशित करता है जो बहुत से अनभिज्ञ जनों को आह्लादित करता होगा। उत्तर प्रदेश के अन्तयवासी होने के कारण भाषा पर और संस्मरणों पर भी इनकी अच्छी पकड़ की मैं प्रशंसा करता हूँ।
आप सब को संस्मरण अच्छा लगा इससे मुझे बहुत आत्मसंतोष हुआ ।मेंरी इच्छा है कि हमारे लेखन प्रतिभा के धनी मित्र विभिन्न प्रकार के लेख, कविताथें–हिंदी या अंग्रेजी में लिखकर भेजा करें ।अखिल बाबू शशि बाबू,
मनोज बाबू ,सी एन झा जी सभी में लेखन व सृजन की
प्रखर क्षमता है ।मुझे खुशी होगी यदि आप आग्रह स्वीकार करेंगे ।
कई रोचक जानकारी मिली।इस यायावरी का आनंद ही कुछ और है।आपके OSD कार्यकाल मे मै मिठाई शाखा मे कार्यरत था और आपके सानिध्य का अवसर भी मिला।
बहुत सुंदर वर्णन। घटना का प्रवाह बड़ा प्रभावी है।सर तो कलम के जादूगर हैं। बैंक को उन्होंने जो दिया है वह बैंक के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो चुका है और इसके गवाहों के रुप में खुद को पाकर स्वयं भी आनंदित महसूस कर रहा हूं।
श्री रमेश उपाध्याय बाबु का संस्मरण भाग-3 पढ़कर हमलोगों को बैंक के पुराने स्थिति फिर से याद आ गया।जिस समय सरकार के वरिष्ठ मुलाजिमों ने हमारे ग्रामीण बैंक को चिटफंड की तरह समझते थे,और इसे बैंक का दर्जा भी नहीं देते थे।उस समय श्री उपाध्याय जी जैसे बैंक के धैर्यशील,कर्मशील योद्धाओं की ही वजह से सभी सरकारी प्रतिष्ठानो को यह महसूस करने पर वेवस कर दिया था कि हमारे ग्रामीण बैंक भी अन्य व्यबसायिक बैंको की तरह ही कार्य करता है।सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों से सिर्फ और सिर्फ हमारा बैंक ही सम्पर्क रख उन लोगों के विकास में हर तरह का मदद कर सकता है।ऐसा विस्वास सरकारी मुलाजिमों को दिलाने में श्री उपाध्याय जी का बैंक के प्रति जो योगदान रहा उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।जिस कारण आज ग्रामीण बैंक विकास कार्य में सरकार के नजर में सबसे आगे है।
प्रशांत कुमार घोष,मधेपुरा।
Delivering comment to such a captivating chronological memoirs gone by none else than our revered writer at this age having very little records in hand presently – is not my forte. The delivery is scintillating & very vivid & affectionate.
Akhil
अग्रज का संस्मरण एक बारगी अतीत के गह्वर में लेकर चला गया।आज के नये लोग उस संघर्ष की कल्पना नहीं कर सकते।यदि उस समय के कर्मी इस प्रकार संघर्ष न किये होते तो ग्रामीण बैंकों का वर्त्तमान स्वरूप शायद कुछ और ही होता। सम्पादक जी को बहुत -बहुत धन्यवाद।
श्री उपाध्याय जी के साथ कार्य करने का मुझे भी सौभाग्य प्राप्त हुआ ।मै दिनांक 10- 01-1984को सहरसा शाखा में क्षेत्रीय पर्यवेक्षक के पद पर योगदान दिया ।उस समय श्री उपाध्याय जी प्रमंडलीय प्रबंधक सह शाखा प्रबंधक के पद पर कार्यरत थे ।उनमें प्रशासन के साथ एंव स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ तारतम्य बैठाने की अद्भुत क्षमता थी ।वे हमेशा अपने सहकर्मियों के साथ अपनत्व का व्यवहार रखते थे । हमेशा उनके सुख दुःख का ख्याल रखते हैं, यही कारण है कि हमलोग आज भी उनसे जुड़े हुए हैं ।अपने ब्यक्तित्व से हमेशा बैंक का मान बढाते रहे । अपने संस्मरण से K K G Bका इतिहास को जीवंत कथा मे प्रस्तुत कर रहे हैं ।इसके लिए उन्हें कोटि कोटि धन्यवाद ।
श्री रमेश उपाध्याय बाबु का संस्मरण भाग-3 पढ़कर हमलोगों को बैंक के पुराने स्थिति फिर से याद आ गया।जिस समय सरकार के वरिष्ठ मुलाजिमों ने हमारे ग्रामीण बैंक को चिटफंड की तरह समझते थे,और इसे बैंक का दर्जा भी नहीं देते थे।उस समय श्री उपाध्याय जी जैसे बैंक के धैर्यशील,कर्मशील योद्धाओं की ही वजह से सभी सरकारी प्रतिष्ठानो को यह महसूस करने पर वेवस कर दिया था कि हमारे ग्रामीण बैंक भी अन्य व्यबसायिक बैंको की तरह ही कार्य करता है।सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों से सिर्फ और सिर्फ हमारा बैंक ही सम्पर्क रख उन लोगों के विकास में हर तरह का मदद कर सकता है।ऐसा विस्वास सरकारी मुलाजिमों को दिलाने में श्री उपाध्याय जी का बैंक के प्रति जो योगदान रहा उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।जिस कारण आज ग्रामीण बैंक विकास कार्य में सरकार के नजर में सबसे आगे है।
प्रशांत कुमार घोष,मधेपुरा।
कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के निर्माण में प्रथम पंक्तियों में सात सितारों का नाम किसी कर्मी को स्मरण न हो ऐसा मुझे विश्वास नहीं। इनमें सबसे चमकते सितारों में श्री रमेश उपाध्याय जी ही रहे। इनके साथ काम करने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ। प्रधान कार्यालय और कटिहार के क्षेत्रीय कार्यालय में इनके पदास्थाना के कारण मैं इनके संपर्क में आया और इनकी कार्यशैली से भी परिचित हुआ। अरेबिया से भी मैं जुड़ा था। सभी स्थानों में इन्होंने अपना लोहा मनवाया।
अभी भी इनके साथ मेरा सुमधुर संबंध बना हुआ है। इनके संस्मरणात्मक लेख कई नये पहलुओं को प्रकाशित करता है जो बहुत से अनभिज्ञ जनों को आह्लादित करता होगा। उत्तर प्रदेश के अन्तयवासी होने के कारण भाषा पर और संस्मरणों पर भी इनकी अच्छी पकड़ की मैं प्रशंसा करता हूँ।
आप सब को संस्मरण अच्छा लगा इससे मुझे बहुत आत्मसंतोष हुआ ।मेंरी इच्छा है कि हमारे लेखन प्रतिभा के धनी मित्र विभिन्न प्रकार के लेख, कविताथें–हिंदी या अंग्रेजी में लिखकर भेजा करें ।अखिल बाबू शशि बाबू,
मनोज बाबू ,सी एन झा जी सभी में लेखन व सृजन की
प्रखर क्षमता है ।मुझे खुशी होगी यदि आप आग्रह स्वीकार करेंगे ।
मुझे बहुत प्रसन्नता होगी यदि हमारे बैंक के सहकर्मियों द्वार स्वरचित रचना प्रकाशन हेतु समर्पित किया जाता है.