कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक:भोगा यथार्थ 1 A



गतांक में आगे——-
              कुमारखंड की चर्चा के कुछ महत्वपूर्ण सन्दर्भ   छूट गए थे ।उस समय के  cash remittance की व्यवस्था जानें ।राशि  की जरूरत पडने पर सेन्ट्रल बैंक मुरलीगंज से प्रधान कार्यालय खाता से मात्र पाँच हजार नगदी प्राप्त होती थी ।कभी-कभी अधिक राशि के लिए मैं  प्रधान कार्यालय जाता था ।उस समय तक श्री बी के सिंह के बैच के साथी  आ चुके थे ।बी के बाबू  ,कामता बाबू से मित्रता हो चुकी थी ।पूर्णिया से कुमारखंड के लिए एक बस चलती थी ।सवेरे एक ट्रेन भी थी इसलिए   पूर्णिया शाखा से राशि लेकर बी के बाबू के यहाँ ठहर  जाता था ।तभी से पूर्णिया जाने पर सेवा निवृत्ति तक अधिकतर उनके यहाँ ठहरने का  सिलसिला चलता रहा ।आज भी वही मित्रता निभ रही है ।जो उनका व उनके परिवार का सम्मान पूर्वक आतिथ्य मिलता रहा उसे याद कर आज आंखें भर आयीं हैं ।         
कुमारखंड शाखा में श्री साकेत कुमार सिन्हा पहले अस्थायी रूप में कार्य करने के लिए रखे गये थे ।फिर बाद में नियमित लिपिक  हुये थे ।कई  साथी नियुक्ति के बाद बेसिक प्रशिक्षण के लिए यहाँ  भेजे जाते थे ।मेरे साथ लिपिक सह खजांची के रूप में सर्वश्री  साकेत कुमार सिन्हा, ओम् प्रकाश सिन्हा व गंगेश झा काम किये थे ।अधिकारी में  श्री केहरि गुप्ता व श्री शारदानन्द सिंह रहे ।बडे पारिवारिक माहौल में काम करने में बहुत आनंद आया था ।आज भी सभी जुड़े हुए हैं ।                 
शुक्ला साहब के पंद्रह  माह के कार्यकाल के बाद श्री डी सी वर्मा (अब स्वर्गीय) 1-4-1978  से 30-6-79 तक अध्यक्ष रहे । इनके ही समय में जदिया शाखा खोलने का प्रयास हुआ ।कोई मकान उपलब्ध था ही नहीं ।बी के बाबू शाखा विस्तार का काम देख रहे थे ।एक कूट पर प्रस्तावित  शाखाओं के छपे नाम को साट कर बी के बाबू रखे रहते थे ।उसी को लेकर क्षेत्र में मकान खोजते थे ।हम लोग कहते थे कि यही इनकी संचिका है ।  जदियाहाट में कोई भवन था ही नहीं ।वहाँ के पेट्रोल पंप के मालिक श्री महावीर अग्रवाल से मैंने सम्पर्क किया ।मैंने कहा कि रू  250/  भाड़ा पर एक नया भवन पंप के बगल में बना दें ।शर्त भी कि एक हाल, स्ट्रोंग रूम व एक चैम्बर चाहिए ।सब तरह से वे जोड़ते, घाटा हो रहा था ।मेरे समझाने पर कि पैसा में तौलने पर तो घाटा ही नजर आयेगा।प्रतिष्ठा से जोड़ कर सोचिए, दूर दूर तक सब जानेगे कि आपके घर में बैंक है ।इसी भाड़ा पर प्रस्ताव के अनुसार मकान बना ।कैसे लोगों को तैयार कर मकान बनवा कर शाखायें खोली गयीं यह एक उदाहरण है ।छातापुर में कोई मकान न मिलने पर प्रखण्ड भवन के एक कमरे में उस समय शाखा खोलीगयी ।फिर बाद में सहरसा पदस्थापन के बाद मैंने प्रयास कर IRDP Infrastructure fund के तहत सरकार से भवन बनवाया था ।                 
   खैर, 29-9-1978 को जदिया हाट शाखा का उद्घघाटन हुआ ।श्री बी पी राय शाखा प्रबन्धक बने।ये तिथि मुझे सदा याद रहती है क्योंकि इसी दिन मेरे बड़े पुत्र श्रीश (मुन्ना ) का जन्म हुआ था ।राय जी को मैं कहता भी था कि एक दिन की मेरी दो उपलब्धियों में एक  से आप आते ही जुड़ गए ।राय जी की समस्यायें बहुत  थीं ।इनकी सूची बना कर कुमारखंड आते थे ,समाधान लेकर जाते थे ।फिर दूसरे दिन मुझे  ले जाते थे ।शाखा जाते ही श्री यू एस एल दास, लिपिक को कहते कि सब ठीक से  समझ लें ,और अपने आतिथ्य की व्यवस्था में लग जाते थे ।राय जी बड़े सरल स्वभाव के हंसमुख व्यक्ति हैं ।   1-7-1979 को श्री राजेश्वर प्रसाद बैंक के अध्यक्ष का प्रभार ले चुके थे ।मैं उस समय तक यूनियन में काफी सक्रीय हो गया था ।कुछ समय बाद यूनियन का महासचिव भी बन गया ।बैंक में बहुत लचर व्यवस्था थी ।कई विषय अपरिभाषित व अस्पष्ट  थे ।मैं, बी के बाबू, स्व आर के बाबू, श्री राम बाबू महथा के साथ बैठ कर समस्याओं का समाधान खोजते थे।स्व सुभास चन्द्र सिन्हा के सक्रिय सहयोग को मेरे लिए भूल पाना असम्भव है ।कोई समस्या पूर्णिया में हो,तूफान की तरह वे कुमारखंड पहुँच जाते थे और बिना मुझे साथ लिए लौटते नहीं थे ।सिन्हा जी को जो व्यवस्था की जवाबदेही दी जाती थी वे बेझिझक  कर देते थे ।श्री राम बाबू महथा सेन्ट्रल बैंक के AIBEA के बहुत सशक्त नेता थे ।उसके बावजूद एक अलग झंडा के तले हमारे यूनियन के अध्यक्ष लम्बे समय तक रहे  और अनेकानेक माँगें मनवाने में सदा नेतॄत्व किये । भले हमारे साथी उन्हे भूल गए हों मैं उनके सहयोग को ससम्मान याद करता हूँ ।               हमारे बैंक में कोई प्रोन्नति की प्रक्रिया देश स्तर पर नहीं बनी थी ।उस समय बैंक में कुछ ऐसी परिस्थिति बनी कि हमें अपने लिपिक साथियों के लिए बैंक में प्रबन्धन पर दबाव बनाना पड़ा  ।निदेशक मंडल से बात कर सभी पुराने लिपिक साथियों को अधिकारी वर्ग में प्रोन्नति दिलवाई गयी ।राष्ट्रीय स्तर पर यह अद्भुत सफलता के रूप में रेखांकित हुई ।राष्ट्रीय स्तर की बैठकों में भाषण देने के लिए खडा  होने पर पाँच मिनट तक कोशी के लिए तालियाँ बजती थीं ।साथियों के सहयोग से कई उपलब्धियां  प्राप्त हुयीं थीं जो क्रमशः आयेंगी ।
                                                  क्रमशः —–

5 thoughts on “संस्मरण: रमेश उपाध्याय जी पार्ट 2”
  1. बहुत ही लम्बी लड़ाई लड़ी गई है, नई पीढ़ी को जानना आवश्यक है 👌

    1. धन्यवाद चौधरी जी । लेकिन आपने दुखती रगों पर हाँथ रख दिया ।हाँ, मुझे कईं बार विषैले बाणों से बेधा गया । ईश्वर की कृपा और आप जैसे शुभचिंतकों की दुआ थी कि में झेल गया ।

  2. लिपिक वर्गीय कर्मचारियों को सीधे अधिकारी में प्रोन्नति उस समय की एक अद्भुत घटना थी। संभवतः नाबार्ड से इसकी सम्पुष्टि की मांग की गई थी जिसे डी भी के शर्मा के कार्य काल में संपुष्ट माना गया था क्योंकि डी भी के शर्मा ने ही नाबार्ड को इस संबंध में स्मारित कर पंद्रह दिनों में संपुष्ट करने हेतु लिखा था और ज़बाब नहीं मिलने पर उसे संपुष्ट मान लिया जाएगा, ऐसा उस पत्र में लिखा गया था। डी भी के शर्मा साहब ऐसा कभी बताया था। मुझे कुछ कुछ याद आ रहा है। और इस प्रकार उस प्रोन्नति को संपुष्ट मान लिया गया था।
    इस उम्र में भी उपाध्याय जी सर की याददाश्त और लेखन में भाषा और तथ्य प्रवाह अद्भुत है।

  3. श्री उपाध्याय जी के अतीत का ऐसा वर्णन लगता है आज के समय का है ।उनका स्मरण शक्ति का दाद देना होगा।सभी घटनाओं का तारीख,नाम सहीत वर्णन करना सही में तारीफ के काविल है।बहुत कुछ घटना अभी भी यादकर सुखद अनुभव कर रहा हूँ। श्री चौधरीजी द्वारा *भीष्मपितामह* उपाधि देना सार्थक है।क्योंकि श्री उपाध्याय बाबु ही एक ऐसा व्यक्ति हैं जिन्होंने शाखा खोलने के कठिनायों को झेला,शाखा प्रबंधक के रूप में कार्य किया,नियंत्रण कार्यालय ,सहरसा के नियंत्रण पदाधिकारी रहे,यूनियन में सक्रिय भूमिका पर रहे और प्रधान कार्यालय से भी गहरा नाता रहा।इसलिए हमारे कोशी ग्रामीण बैंक के निर्माता,पालन कर्ता और संरक्षण का भी कार्य उन्होंने बखूबी निभाया।इसलिए उन्हें *पितामह* का दर्जा देना उचित सम्मान ही है।

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