नंदीग्राम से ही की थी ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक आदोलन की शुरूआत शुभेन्दु अधिकारी के बल पर , जीत किसकी होगी या हार किसकी होगी इससे पहले नंदीग्राम की राजनीतिक बिसात को समझना बहुत जरुरी है।

आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कौन है शुभेंदु अधिकारी.

शुभेंदु अधिकारी ममता सरकार में परिवहन मंत्री थे। उन्होंने 27 नवंबर को मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देते हुए उन्होंने कहा था कि मेरी पहचान यह है कि मैं पश्चिम बंगाल और भारत का बेटा हूं। मैं हमेशा पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए लडूंगा। उन्होंने उसी दिन ऐलान कर दिया था कि टीएमसी में रहकर काम करना संभव नहीं है।
शुभेंदु अधिकारी ममता सरकार में परिवहन मंत्री थे। उन्होंने 27 नवंबर को मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देते हुए उन्होंने कहा था कि मेरी पहचान यह है कि मैं पश्चिम बंगाल और भारत का बेटा हूं। मैं हमेशा पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए लडूंगा। उन्होंने उसी दिन ऐलान कर दिया था कि टीएमसी में रहकर काम करना संभव नहीं है।

शुभेंदु अधिकारी को जनाधार वाले एक प्रभावशाली नेता के तौर पर माना जाता है। शुभेंदु अधिकारी ने कांथी पीके कॉलेज से स्नातक में ही राजनीतिक जीवन में कदम रखा था। वे 1989 में छात्र परिषद के प्रतिनिधि चुने गए। शुभेंदु 36 साल की उम्र में पहली बार 2006 में कांथी दक्षिण सीट से विधायक चुने गए।

इसके बाद वे इसी साल कांथी नगर पालिका के चेयरमैन भी बने। शुभेंदु 2009 और 2014 में तुमलुक लोकसभा सीट से जीतकर संसद पहुंचे। उन्होंने 2016 में नंदीग्राम विधानसभा सीट से जीत दर्ज की। उन्होंने ममता ने मंत्री भी बनाया।
इसके बाद वे इसी साल कांथी नगर पालिका के चेयरमैन भी बने। शुभेंदु 2009 और 2014 में तुमलुक लोकसभा सीट से जीतकर संसद पहुंचे। उन्होंने 2016 में नंदीग्राम विधानसभा सीट से जीत दर्ज की। उन्होंने ममता ने मंत्री भी बनाया।

शुभेंदु का राजनीतिक करियर भले ही 1990 के दशक में शुरू हुआ हो, लेकिन उनका सियासी कद 2007 में बढ़ा। उन्होंने पूर्वी मिदनापुर के वर्ष 2007 के नंदीग्राम आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन में शुभेंदु शिल्पी की भूमिका में रहे।
शुभेंदु का राजनीतिक करियर भले ही 1990 के दशक में शुरू हुआ हो, लेकिन उनका सियासी कद 2007 में बढ़ा। उन्होंने पूर्वी मिदनापुर के वर्ष 2007 के नंदीग्राम आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन में शुभेंदु शिल्पी की भूमिका में रहे।

इस आंदोलन में पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर की गई गोलीबारी में कई लोगों की मौत के बाद आंदोलन और उग्र हो गया। इसके बाद तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार को झुकना पड़ा। नंदीग्राम और हुगली के सिंगूर में हुए आंदोलन ने तृणमूल कांग्रेस को बंगाल में पकड़ और मजबूत करने का मौका दिया।
इस आंदोलन में पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर की गई गोलीबारी में कई लोगों की मौत के बाद आंदोलन और उग्र हो गया। इसके बाद तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार को झुकना पड़ा। नंदीग्राम और हुगली के सिंगूर में हुए आंदोलन ने तृणमूल कांग्रेस को बंगाल में पकड़ और मजबूत करने का मौका दिया।

शुभेंदु अधिकारी ममता सरकार में परिवहन, जल संसाधन और विकास विभाग तथा सिंचाई एवं जलमार्ग विभाग मंत्री भी रहे। शुभेंदु पूर्वी मिदनापुर जिले के प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं।
आइए अब जानते हैं नंदीग्राम के बारे में:

नंदीग्राम कोलकाता से सिर्फ 130 किलोमीटर दूर है। नंदीग्राम में चुनाव दूसरे फेज यानि 1 अप्रैल को होगा। 2019 के हिसाब से नंदीग्राम में कुल मतदाता 2 लाख 46 हजार 434 हैं। सुवेंदु अधिकारी 2016 के विधान सभा चुनाव में टीएमसी के टिकट पर चुनाव जीते थे और उन्हें 1 लाख 34 हजार 623 वोट मिले थे यानि 67 प्रतिशत वोट मिले थे।

नंदीग्राम के पिछले 14 विधान सभा चुनावों का नतीजा एक रोचल चित्र दिखाता है। सीपीआई नंदीग्राम से 1967 , 1969 , 1971 , 1972 , 1982 , 1987 , 1991 और 2006 विधान सभा चुनाव जीता है। वहीं जनता पार्टी ने 1977 , कांग्रेस 1996 और सीपीआईएम 2001 में नंदीग्राम से चुनाव जीता। और उसके बाद नंदीग्राम में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी का खेल शुरू होता है यानि टीएमसी 2009 ( उप चुनाव ), 2011 और 2016 का विधान सभा चुनाव जीतती रही। शुभेन्दु अधिकारी 2016 में टीएमसी से विधान सभा चुनाव जीते थे। कुल 14 विधान सभा चुनावी आकड़ों के मुताबिक सीपीआई 8 , जनता पार्टी 1 , सीपीआईएम 1 , कांग्रेस 1 और टीएमसी 3 बार नंदीग्राम से चुनाव जीत चुकी है।

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अब शुभेंदु अधिकारी के राजनीतिक यात्रा को समझना भी आवश्यक है।शुभेंदु अधिकारी ने अपनी राजनीतिक यात्रा कांग्रेस से शुरू करते हुए 1995 में कांथी म्युनिसिपल काउंसलर चुनाव से शुरू की। पहली बार 2006 में कांथी से बंगाल विधान सभा के लिए चुनाव जीते और उसी साल कांथी म्युनिसिपल कारपोरेशन के चेयरमैन भी बन गए। लेकिन असली राजनीतिक यात्रा शुभेेंदु ने शुरू की 2007 में जब उन्होंने नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जंग शुरू करते हुए भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी का नेतृत्व किया और उसी नंदीग्राम आंदोलन ने शुुुभेेेंंदु को बंगाल का एक युवा जुझारू नेता बना दिया और उसी आंदोलन ने लेफ्ट फ्रंट की 34 साल पुरानी सरकार और सत्ता को बंगाल के खाड़ी में उखाड़ फेंका।

ममता के करीबी:-

राज्य स्तर पर ममता बनर्जी उस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं और उसी दौर में ममता की नजर शुभेंदु पर जा टिकी। उसके बाद शुभेंदु ममता के काफी करीबी बन गए और 2011 में उसी आंदोलन ने लेफ्ट फ्रंट को सत्ता से बाहर करते हुए ममता बनर्जी की टीएमसी को सत्तासीन कर दिया। उसके बाद शुभेंदु 2009 और 2014 लोक सभा चुनाव भी टीएमसी से जीते। लेकिन ममता को शुभेंदु की जरुरत दिल्ली में नहीं बल्कि बंगाल में थी इसीलिए ममता ने शुभेंदु को 2016 में विधान सभा चुनाव लड़ा कर अपने बंगाल मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। हुआ ये कि टीएमसी में ममता के बाद दूसरे नंबर पर पार्टी के कद्दावर नेता बन गए और शुभेंदु नंदीग्राम ही नहीं बल्कि पूरे बंगाल के बड़े नेता बन गए। लेकिन एक कहावत है कि अति मीठे संबंध को संभालना बड़ा मुश्किल होता है और वही हुआ ममता और शुभेंदु के बीच। कहा जाता है कि दोनों के खटास के कारण बने ममता के भतीजे अभिषेक और तथाकथित रणनीतिकार प्रशांत किशोर, और इसी खटास ने शुभेंदु को  टीएमसी छोड़ने पर मजबूर कर दिया और अंततः शुभेंदु बीजेपी में शामिल हो गए। आज शुभेंदु बीजेपी में कद्दावर नेता बन चुके हैं.

नंदीग्राम का बेटा:

पूर्वी मिदनापुर अधिकारी परिवार का जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों रहा है बल्कि दोनों एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। भारत की आज़ादी की लड़ाई के समय से ही अधिकारी परिवार पूर्वी मिदनापुर का एक स्थापित राजनीतिक हस्ती वाला परिवार रहा है। शुभेंदु के दादा केनाराम अधिकारी स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ पूर्वी मिदनापुर के अग्रणी नेता थे और उसी का परिणाम था कि अंग्रेजों ने तीन तीन बार उनके घर को जला दिया था। उसके बाद सुवेंदु के पिता शिशिर कुमार अधिकारी ने परिवार के राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए कांथी म्युनिसिपल कारपोरेशन के 33 साल तक चेयरमैन रहे। साथ ही बंगाल विधान सभा और भारतीय संसद के लोक सभा के कई बार सदस्य रहे हैं और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री भी रहे बल्कि अभी भी लोक सभा सदस्य हैं। फिलहाल शुभेंदु के एक छोटे भाई लोक सभा सदस्य और दूसरे भाई कांथी म्युनिसिपल कारपोरेशन के चेयरमैन हैं।इसलिए कहा जाता है कि शुभेंदु नंदीग्राम का बेटा है।

इन सीटों पर शुभेंदु का प्रभाव:
पूर्वी मिदनापुर के अंतर्गत 16 विधानसीटें आती हैं। इसके अलावा पश्चिमी मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया जिलों की करीब 5 दर्जन सीटों पर अधिकारी परिवार का प्रभाव माना जाता है। इतना ही नहीं नंदीग्राम आंदोलन में शुभेंदु के कौशल को देखते हुए ममता बनर्जी ने मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया में तृणमूल के विस्तार का काम सौंपा था। शुभेंदु ने इन जगहों पर पार्टी को मजबूत किया। इसके अलावा मुर्शिदाबाद और मालदा में भी शुभेंदु की अच्छी पकड़ बताई जाती है।

लौटकर नंदीग्राम आई दीदी:

अबकी बार ममता बनर्जी सिर्फ नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। ऐसा क्यों ? अपने दक्षिण कोलकाता के भवानीपुर सीट को क्यों त्याग दिया ? लाख टके का सवाल है। टीएमसी सुप्रीमो और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने पुराने विधान सभा सीट भवानीपुर को छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं । इसके तीन कारण हैं। पहला , 2011 में ममता को भवानीपुर विधान सभा उप चुनाव में 77. 46 फीसदी वोट मिले थे जबकि 2016 के चुनाव में वोटों का प्रतिशत घटकर 47. 67 फीसदी रह गया और तो और 2019 के लोक सभा चुनाव में भवानीपुर असेंबली सीट पर बीजेपी को लीड मिल गई और यही दर्द ममता को सताए जा रहा थी। विकल्प की तलाश जारी थी और वही विकल्प बना नंदीग्राम। दूसरा , 2011 में ममता बनर्जी ने नंदीग्राम आंदोलन की वजह से ही 34 साल पुरानी लेफ्ट फ्रंट सरकार को उखाड़ फेंका था। इसीलिए ममता फिर से अपने को नंदीग्राम से जोड़कर साबित करना चाहती हैं कि ममता अभी भी वही ममता हैं। तीसरा , ममता शुभेंदु को भी सबक सिखाना चाहती हैं कि नंदीग्राम का हीरो ममता हैं ना कि शुभेंदु.  नंदीग्राम विधान सभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 27 फीसदी से भी ऊपर है जो ममता बनर्जी का मानना है ये मुस्लिम वोट सिर्फ ममता को ही मिलेगा ना कि शुभेंदु को। यही कारण है कि ममता बनर्जी ने नंदीग्राम को चुना है ना कि भवानीपुर।

नंदीग्राम बना चुनावी हेडक्वार्टर:

नंदीग्राम विस्फोटक के मुहाने पर बैठा है और इसके लिए सिर्फ टीएमसी की तुष्टिकरण की राजनीति जिम्मेदार है। अगर आप बहुसंख्य समुदाय को उसके अधिकार देने से इनकार कर देंगे तो आपको परिणाम भुगतने होंगे। नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में करीब 70 फीसदी हिंदू और 30 फीसदी मुसलमान मतदाता हैं। जिसपर फुरफुरा शरीफ और ओवैसी दोनों की नजर है. विगत चुनाव में फुरफुरा शरीफ का समर्थन ममता बनर्जी को प्राप्त था जबकि इसबार फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी आई एस एफ (इंडियन सेकुलर फ्रंट) नामक खुद की पार्टी बनाकर कांग्रेस और वामदलों के साथ गठबंधन किया है. फुरफुरा शरीफ का बंगाल के चुनाव में क्या भूमिका है किसी से छिपा नहीं है. उधर ओवैसी भी बंगाल चुनाव में ताल ठोक रहा है. ओवैसी फैक्टर कितना असरकारक है लोग बिहार चुनाव में देख चुके हैं. एक तो करेला ऊपर से नीम.

आखिर और अंत में : नंदीग्राम की लड़ाई अब बंगाल की बेटी और नंदीग्राम के बेटा के बीच होगा। नंदीग्राम का बेटा शुभेंदु ने कहा है कि नंदीग्राम आउटसाइडर ममता को नहीं चुनेगी बल्कि अपने बेटा को ही चुनेगी। बल्कि शुभेेंदु ने तो दावा किया है कि ममता को कम से कम 50,000 वोट से हराएंगे।

शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी {तृणमूल सांसद} ने भी कहा है कि जीत शुभेंदु की होगी और ममता ने गलत निर्णय लिया है। कांग्रेस के नेता प्रदीप भट्टाचार्य का भी यही कहना है कि ममता के लिए शुभेंदु को हराना आसान नहीं होगा. । सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में एडवांटेज किसका: बेटा का या बेटी का। इंतज़ार करना होगा 2 मई का। इस बार के बंगाल चुनाव का हेडक्वार्टर कोलकाता नहीं नंदीग्राम है.

 

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