पृथ्वीराज चौहान का जन्म ज्येष्ठमास कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि सम्वत् 1220 यानी 1166 ई० में हुआ था.

जॉर्ज ऑरवेल ने अपने उपन्यास 1984 में लिखा है कि जिसका वर्तमान पर नियंत्रण होता है उसी का अतीत पर भी नियंत्रण होता है। भारत में लंबे समय तक औपनिवेशिक शासन एवं ततपश्चात वामपंथी इतिहासकारों का वर्चस्व रहने की वजह से हमारे इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया।

पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास का एक ऐसा चेहरा है जिसके साथ वामपंथी इतिहासकारों ने सबसे ज्यादा ज्यादती की है। पृथ्वीराज जैसे महान और निर्भीक योद्धा, स्वाभिमानी युगपुरुष, तत्कालीन भारतवर्ष के सबसे शक्तिशाली एवं प्रतापी राजा को इतिहासकारों ने इतिहास में बमुश्किल आधा पन्ना दिया है और उसमे भी मोहम्मद गौरी के हाथों हुई उसकी हार को ज्यादा प्रमुखता दी गयी है। विसंगतियों से भरे पडे भारतीय इतिहास में विदेशी आततायी अकबर महान हो गया और प्रताप एवं पृथ्वीराज गौण हो गए।

यह बात दीगर है कि पृथ्वीराज चौहान उस समय के सबसे शक्तिशाली एवं महत्वकांक्षी राजा थे । जिस तेजी से वो सबको कुचलते हुये हराते हुये अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे वो तत्कालीन भारतवर्ष के प्रत्येक राजवंश के लिये खतरे की घंण्टी थी । पृथ्वीराज तत्कालीन उत्तर और पश्चिम भारत के सभी छोटे बड़े राजाओं को हरा चुके थे, इनमे सबसे प्रमुख गुजरात के भीमदेव सोलंकी, उज्जैन के परमार तथा उत्त्तर प्रदेश के महोबा के चंदेल थे । ये पृथ्वीराज चौहान ही थे जिनके घोषित राज्य से बड़ा उसका अघोषित राज्य था । जिसका प्रभाव आधे से ज्यादा हिंदुस्तान में था और जिसकी धमक फारस की खाड़ी से लेकर ईरान तक थी । जो 12 शताब्दी के अंतिम पड़ाव के भारत वर्ष के सबसे शक्तिशाली सम्राट और प्रख्यात योद्धा थे, जो जम्मू और पंजाब को भी जीत चुके थे । यदि पृथ्वीराज चौहान को युगपुरुष कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।

पृथ्वीराज दो युगों के बीच का अहम केंद्र बिंदु है । हम इतिहास को दो भागों में बाँट सकते हैं एक पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु से पहले का, एक उसकी मृत्यु के बाद का। मात्र 11 वर्ष की आयु में पृथ्वीराज ने नागार्जुन, भंडानको तथा महोबा के चंदेलों को परास्त कर अपने राज्य का विस्तार कर लिया । 1178 से 1190 ईस्वी के मध्य पृथ्वीराज चौहान एवं शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी की सेना के मध्य 16 छोटी-बड़ी मुठभेड़ें हुई जिनमें सभी में पृथ्वीराज चौहान विजयी रहे । 1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान एवं मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें पृथ्वीराज चौहान विजय रहें । जिसमे पृथ्वीराज चौहान मुहम्मद गौरी द्वारा माफ़ी मांगने पर क्षमा करके उसे छोड़ देते हैं यह पृथ्वीराज की बड़ी भूल साबित होती है । किंतु 1192 ई. में तराईन के मैदान में पृथ्वीराज चौहान एवं मोहम्मद गौरी के मध्य दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की हार के फलस्वरूप दिल्ली पर गौरी का अधिकार हो जाता है ।

मिनहाज-उस-सिराज के अनुसार मोहम्मद गौरी की सेना संगठित थी एवं पृथ्वीराज चौहान की अव्यवस्थित सामंती सेना थी । सामंती सेना में केंद्रीय नेतृत्व का अभाव होना पराजय का सबसे बड़ा कारण था । राजपूत युद्ध में मरना तो जानता था लेकिन युद्ध में कूटनीतिक नहीं था । वहीं दूसरी ओर पृथ्वीराज चौहान की दिग्विजय नीति के परिणाम स्वरूप पड़ोसी राज्यों का भी असहयोग रहा । इसके अलावा मोहम्मद गौरी द्वारा रात में अचानक आक्रमण करना एवं पृथ्वीराज चौहान के कुछ सामंतों को अपनी ओर मिलाना उसकी विजय के प्रमुख कारण रहे।

चंद्रबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो में उल्लेखित है कि युद्ध उपरांत जब गौरी पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर साथ ले गया तो गौरी को पता चला कि पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चलने में पारंगत है । गौरी इसका परिक्षण लेना चाहता था तो उसने एक ऊँचे तख़्त पर बैठ पृथ्वीराज की इस कुशलता का परिक्षण लेना चाहा । मुहम्मद गौरी की दूरी और स्थिति बताने के लिए चंदरबरदाई ने एक दोहा कहा-

“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण
ता ऊपर सुलतान है, मत चुको चौहान”

पृथ्वीराज ने इस पर चंदबरदाई के कहे अनुसार शब्दभेदी बाण चलाया जिससे मुहम्मद गौरी की तत्क्षण ही मृत्यु हो गयी ।

तराइन का युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यह दो युगों के बीच की योजक कड़ी है जिसमें पृथ्वीराज की हार भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना का कारण बनी । इतिहासकार आर सी मजूमदार के अनुसार इस युद्ध से न केवल चौहानों की शक्ति का विनाश हुआ बल्कि देश में लूटपाट, तोड़फोड़, बलात धर्म परिवर्तन, मंदिर-मूर्तियों का विनाश आदि का घृणित प्रदर्शन हुआ जिससे हिंदू कला और स्थापत्य की जगह इस्लामिक शैली तथा संस्कृत की जगह फारसी भाषा ने ले ली।

पृथ्वीराज चौहान वीर साहसी होने के साथ ही विद्वान एवं कलाकारों के आश्रय दाता भी थे । जयानक, चंदरबरदाई, वागीश्वर, पृथ्वीभट्ट विश्वरूपा, जनार्दन, आशाधर विद्यापति गौड़ जैसे अनेक विद्वान कवि एवं साहित्यकार उनके दरबार में थे । पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में “सरस्वती कण्ठाभरण” नामक संस्कृत विद्यालय में 85 विषयों का अध्ययन होता था । वे एक महान विद्यानुरागी शासक थे । उन्होंने अजमेर के तारागढ़ दुर्ग को सुदृढ़ता प्रदान की तथा दिल्ली में “पिथौरागढ़” नाम से किला बनाकर दिल्ली की पूनः स्थापना की।

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