तालिबान क्या है, कहां से करता है कमाई ? अफगानिस्तान के वर्तमान और इतिहास के बारे में जानिए –
अशोक कुमार चौधरी
करीब 20 साल पहले, अमेरिका के नेतृत्व में दावा हुआ कि अफगानिस्तान से तालिबानी शासन का अंत हो गया है। अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है और हालात यह हैं कि अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी विदेश भाग चुके हैं, काबुल में तालिबान की एंट्री हो चुकी है। एक डर जो मन में कहीं छिपा बैठा था कि तालिबान के वापस आते ही दमन और अत्याचारों का दौर शुरू होगा, वह अब सच साबित होने लगा है। मगर ऐसा भी न समझें कि पिछले 20 साल बड़े शांति से गुजरे। अमेरिका और उसकी साथी सेनाओं का अफगानिस्तान पर पूरा नियंत्रण कभी था ही नहीं। हिंसा लगातार जारी रही… नतीजा आज हम सबके सामने है।
अफगानिस्तान में इस समय जैसे हालात हैं, 1996 में काफी कुछ ऐसी ही स्थिति थी। तब तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था, आज फिर काबुल ढहने को है।क्या है तालिबान ?
पश्तून में तालिबान का मतलब ‘छात्र’ होता है, एक तरह से यह उनकी शुरुआत (मदरसों) को जाहिर करता है। उत्तरी पाकिस्तान में सुन्नी इस्लाम का कट्टरपंथी रूप सिखाने वाले एक मदरसे में तालिबान का जन्म हुआ। सोवियत काल के बाद जो गृहयुद्ध छिड़ा, 1990s के उन शुरुआती सालों में तालिबान मजबूत हुआ। शुरुआत में लोग उन्हें बाकी मुजाहिदीनों के मुकाबले इसलिए ज्यादा पसंद करते थे क्योंकि तालिबान का वादा था कि भ्रष्टाचार और अराजकता खत्म कर देंगे। मगर तालिबान के हिंसक रवैये और इस्लामिक कानून वाली क्रूर सजाओं ने जनता में आतंक फैला दिया।
संगीत, टीवी और सिनेमा पर रोक लगा दी गई। मर्दों को दाढ़ी रखना जरूरी हो गया था, महिलाएं बिना सिर से पैर तक खुद को ढके बाहर नहीं निकल सकती थीं। तालिबान ने 1995 में हेरात और 1996 में काबुल पर कब्जा कर लिया था। 1998 आते-आते लगभग पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान की हुकूमत हो चुकी थी।
तालिबान की कमाई कहां से होती है?
तालिबान को पैसों की कोई कमी नहीं। हर साल एक बिलियन डॉलर से ज्यादा की कमाई होती है। एक अनुमान के मुताबिक, उन्होंने 2019-20 में 1.6 बिलियन डॉलर कमाए। तालिबान की इनकम के मुख्य जरिए इस प्रकार हैं:
ड्रग्स: हर साल 416 मिलियन डॉलर
खनन: पिछले साल 464 मिलियन डॉलर
रंगदारी: 160 मिलियन डॉलर
चंदा: 2020 में 240 मिलियन डॉलर
निर्यात: हर साल 240 मिलियन डॉलर
रियल एस्टेट: हर साल 80 मिलियन डॉलर
दोस्तों से मदद: रूस, ईरान, पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे देशों से 100 मिलियन डॉलर से 500 मिलियन डॉलर के बीच सहायता
तालिबान को कौन चलाता है? दुनिया में आतंक कब-कब फैलाया?
तालिबान का नेतृत्व क्वेटा शूरा नाम की काउंसिल करती है। यह काउंसिल क्वेटा से काम करती है। 2013 में तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की मौत हुई और उसके उत्तराधिकारी मुल्ला अख्तर मंसूर को 2016 की ड्रोन स्ट्राइक में मार गिराया गया। तबसे मावलावी हैबतुल्ला अखुंदजादा तालिबान का कमांडर है। उमर का बेटा मुल्ला मोहम्मद याकूब भी हैबतुल्ला के साथ है। इसके अलावा तालिबान का सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और हक्कानी नेटवर्क का मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी भी तालिबान का हिस्सा है।
तालिबान ने साल 2001 में बामियान में स्थित महात्मा बुद्ध की दो मूर्तियों को बम से उड़ा दिया था।
2012 में तालिबान ने एक स्कूली छात्रा मलाला युसूफजई को निशाना बनाया। मलाला को बाद में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इतनी तेजी से कब्जा कैसे कर रहा तालिबान ?
2014 से ही अमेरिका यहां पर सैनिकों की संख्या में कटौती कर रहा है। तालिबान इस बीच अपनी पकड़ मजबूत करता रहा। इस साल जब अमेरिका ने वापसी में जल्दबाजी दिखाई तो तालिबान को मौका मिल गया। आज और कुछ हफ्ते पहले के वक्त में सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि अफगानिस्तान में अमेरिका का एक भी लड़ाकू विमान नहीं है। वहां के लिए खाड़ी और एयरक्राफ्ट कैरियर्स से विमान उड़ान भरते हैं। जिन मैकेनिक्स ने अफगान एयरफोर्स के विमान ठीक किए थे, वे भी चले गए हैं। दूसरी तरफ, तालिबान के पास करीब 85,000 लड़ाके हैं और वे पिछले 20 सालों की सबसे ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं।
सिर्फ 10 दिन में 20 साल की कोशिशें बेकार
अप्रैल में अमेरिका ने कहा था कि वह अफगानिस्तान से सेना हटाएगा। उसके बाद से तालिबान ने उन-उन इलाकों पर कब्जा कर लिया है, जहां सालों से उसकी हुकूमत नहीं थी। लगभग हर राज्य की राजधानी पर तालिबान का शासन हो गया है। ऊपर के ग्रैफिक्स में आप देख सकते हैं कि पिछले 10 दिनों में तालिबान ने कहां-कहां कब्जा किया है।
अफगानिस्तान में अस्थिरता का आलम दो-तीन नहीं, पांच दशक से भी पुराना है।
1933 में जाहिर शाह को गद्दी मिली। इसके बाद चार दशक तक शांति रही।
1950 के दशक में प्रधानमंत्री मोहम्मद दाऊद ने सोवियत संघ से नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी।
तख्तापलट के बाद 1973 में दाऊद ने सत्ता हासिल की। अफगानिस्तान एक गणतंत्र घोषित हुआ।
1979 में सोनियत आर्मी ने हमला बोल दिया। दाऊद की हत्या के बाद एक कम्युनिस्ट सरकार का गठन किया गया।
मुजाहिदीन लगातार विदेशी ताकतों का विरोध करते रहे। 1985 में उन्होंने एक गठबंधन बना लिया।
1989 में सोवियत ने पूरी तरह अफगानिस्तान खाली कर दिया, लेकिन शांति के बजाय हिंसा शुरू हो गई। मुजाहिदीन तत्कालीन सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते थे।
1996 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया। नजीबुल्लाह को पकड़ने के बाद बर्बरता से मार दिया गया। पाकिस्तान और सऊदी अरब ने तालिबानी सरकार को मान्यता दी।
9/11 हमलों के बाद अफगानिस्तान ने तालिबान के खिलाफ तेजी से ऐक्शन लिया। तालिबान ने ओसामा बिन लादेन को हैंडओवर करने से मना कर दिया था।
2002 में NATO ने अफगानिस्तान की सुरक्षा अपने हाथ में ले ली। हामिद करजई को पहला राष्ट्रपति चुना गया।
2004 में अफगानिस्तान का नया संविधान बना। करजई पहले राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।
2009 में अमेरिका ने कहा कि वह 1,40,000 सैनिक और भेजेगा।
2011 में अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में मार गिराया।
2013 में तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की कराची में मौत हुई।
2014 से अमेरिकी सैनिकों में कमी शुरू की गई। अफगान सुरक्षा बलों ने जिम्मा संभालना शुरू किया। उग्रवाद बढ़ने लगा।
2020 आते-आते तालिबान की पकड़ खासी मजबूत हो चुकी थी। अमेरिका ने 29 फरवरी को उनके साथ शांति समझौता किया कि 14 महीनों के भीतर देश छोड़ देंगे।
9 सितंबर 2021: वह आखिरी तारीख जिससे पहले अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देंगे।
छपते-छपते
तालिबान ने युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दिया है। बिना किसी खास विरोध के तालिबान के लड़ाके काबुल में प्रविष्ट हो गये और राष्ट्रपति सहित पूरा अफगान प्रशासन काबुल से भाग खड़ा हुआ। करीब 20 साल बाद अब काबुल पर तालिबान का दोबारा कब्जा हो गया है। लेकिन ये तालिबान हैं कौन? कहां से पैदा हुए? इनकी विचारधारा किस इस्लाम से प्रेरित है?
तालिब का अर्थ होता है विद्यार्थी। तालिबान का अर्थ हुआ विद्यार्थियों का समूह। आज अफगानिस्तान में “विद्यार्थियों के जिस समूह” के कारण तालिबान चर्चा में हैं इनका जन्म पाकिस्तान के एक मदरसे दारुल उलूम हक्कानिया में हुआ था। पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा मुजाहिद (मजहबी योद्धा) तैयार करने का आदेश और डॉलर मिला था जिसे पूरा करने के लिए पाकिस्तानी फौज ने दारुल उलूम हक्कानिया को चुना। इसी मदरसे से एक तालिब पढकर निकला था जिसका नाम था मुल्ला उमर जो उस समय कराची में कुरान पढाता था।
दारुल उलूम हक्कानिया के उस समय प्रिंसिपिल थे मौलाना समी उल हक उर्फ मौलाना सैंडविच। मौलाना समी उल हक मुल्ला उमर से बहुत प्रभावित थे। उन्हें जब पाक फौज का आदेश मिला कि अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ जिहाद करना है तो उन्होंने कराची में रह रहे मुल्ला उमर से संपर्क किया। अफगानिस्तान में पैदा हुआ मुल्ला उमर अफगान लैंडलार्ड से छापामार लड़ाइयां लड़ता रहा था इसलिए यह मौका मिलते ही वह अफगानिस्तान में जिहाद के लिए तैयार हो गया और इस तरह तालिबान का जन्म हुआ।
दारुल उलूम हक्कानिया देओबंदी इस्लाम की शिक्षा देने वाला मदरसा है इसलिए वहां से जो तालिबान निकले वो देओबंदी इस्लाम की शिक्षाओं को मानने वाले हैं। देओबंद भारत में सहारनपुर जिले का एक कस्बा है जहां हनफी इस्लाम पर आधारित एक मदरसा संचालित होता है जिसका नाम है दारुल उलूम। दारुल उलूम देओबंद दुनिया की सबसे कट्टर इस्लामिक विचारधाराओं में से एक है। इसकी कट्टरता के कारण ही इस मदरसे की तुलना मिस्र की अल अजहर युनिवर्सिटी से की जाती है जिसने अल कायदा को जन्म दिया।
दारुल उलूम देओबंद को माननेवाले देओबंदी मुसलमान कहे जाते हैं। ये देओबंदी मुसलमान अपनी मान्यताओं को लेकर बहुत कट्टर होते हैं और अपने नबी की सुन्नत को बहुत कड़ाई से पालन करते हैं। उनकी सबसे आसान पहचान ये होती है कि वो एक खास तरह का ड्रेस पहनते हैं जिसे सलवार कमीज कहा जाता है लेकिन उनका सलवार उनके टखने के ऊपर ही रहता है। इसके अलावा वो सिर पर पगड़ी बांधते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टर इस्लाम का सबसे बड़ा प्रचार दारुल उलूम देओबंद ही करता है। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में देओबंदी इस्लाम को मानने वाले कट्टर और आक्रामक माने जाते हैं। ऐसा अनुमान है कि भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 20 प्रतिशत मुसलमान इस समय देओबंदी इस्लाम को अनुसरण करते हैं।
दारुल उलूम देओबंद एक ऐसे इस्लामिक स्टेट का स्वप्न देखता है जिसमें शिर्क न हो। शिर्क का अर्थ हुआ जहां अल्लाह के अलावा और किसी को मानने और पूजनेनाले न रहते हों। इसके लिए उनके मदरसों से तालिबान तैयार किये जाते हैं जो ये मानते हैं कि शासन करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ देओबंदी मुसलमान के पास है। बाकी जो गैर मुस्लिम या फिर गैर देओबंदी मुस्लिम भी शासन कर रहे हैं उनको शासन से बाहर निकाल देना उनका इस्लामिक दायित्व है। इसलिए आज अफगानिस्तान में तालिबान इस्लामिक शासन के खिलाफ ही लड़ रहा है।
आपको यह जानकर थोड़ा आश्चर्य होगा लेकिन सत्य यही है। अफगानिस्तान में अफगान सेना और तालिबान के बीच जारी ताजा लड़ाई के लिए गोला बारुद और हथियार भले ही पाकिस्तान और चीन दे रहे हों लेकिन उसका वैचारिक आधार भारत ने दिया है। भारत के एक मदरसे ने दिया है जिसका नाम दारुल उलूम देओबंद है। पाकिस्तान का पूरा आतंकी नेटवर्क देओबंदी और जमाती विचारधारा ही चलाती है। अब इस उपलब्धि पर हम भारतीय चाहें तो शर्म कर सकते हैं या फिर चाहे तो गर्व। लेकिन जो आज अफगानिस्तान में हो रहा है, वह कल पाकिस्तान में होगाब और वही परसों हिन्दुस्तान में भी होगा। आज काबुल ढहा है। कल इस्लामाबाद ढहेगा। और हम नही जागे तो परसों नई दिल्ली भी जमींदोज हो जाएगा।
अफगानिस्तान कभी हिन्दू राष्ट्र था :
प्राचीन संस्कृत साहित्य में कंबोज देश मिलता। कंबोज देश का विस्तार कश्मीर से हिंदूकुश तक था। वंश ब्राह्मण में कंबोज औपमन्यव नामक आचार्य का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में कंबोज आर्य-संस्कृति का केंद्र था जैसा कि वंश-ब्राह्मण के उल्लेख से मिलता है, किंतु कालांतर में जब आर्यसभ्यता पूर्व की ओर बढ़ती गई तो कंबोज आर्य-संस्कृति से बाहर समझा जाने लगा।
महाभारत में अफगानिस्तान का उल्लेख : गांधार और कंबोज…
महाभारत में कंबोज और गांधार के कई राजाओं का उल्लेख मिलता है। जिनमें कंबोज के सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।
गांधार : गांधारी गांधार देश के ‘सुबल’ नामक राजा की कन्या थीं। क्योंकि वह गांधार की राजकुमारी थीं, इसीलिए उनका नाम गांधारी पड़ा। यह हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन आदि कौरवों की माता थीं। गांधार प्रदेश भारत के पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। इस महाजनपद के प्रमुख नगर थे- पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहाँ बौद्ध धर्म बहुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया।
ऋग्वेद में गंधार के निवासियों को गंधारी कहा गया है तथा उनकी भेड़ो के ऊन को सराहा गया है और अथर्ववेद में गंधारियों का मूजवतों के साथ उल्लेख है।
कंबोज : ‘कांबोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै:। वाल्मीकि-रामायण में कंबोज, वाल्हीक और वनायु देशों के श्रेष्ठ घोड़ों का अयोध्या में होना वर्णित है।
‘गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन: दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:’
महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था।
‘कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया’।
महाभारत और राजतरंगिणी में कंबोज की स्थिति उत्तरापथ में बताई गई है। महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है।
बौध काल में अफगानिस्तान :
ईसा सन् 7वीं सदी तक गांधार के अनेक भागों में बौद्ध धर्म काफी उन्नत था। 7वीं सदी के बाद यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरु किए और 870 ई. में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया। इसके बाद यहां के हिन्दू और बौद्धों का जबरन धर्मांतरण अभियान शुरू हुआ। सैंकड़ों सालों तक लड़ाइयां चली और अंत में काफिरिस्तान को छोड़कर सारे अफगानी लोग मुसलमान बन गए।
कौटिल्य अर्थशास्त्र में कंबोज के ‘वार्ताशस्त्रोपजीवी’ (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व यहां गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।
अंगुत्तरनिकाय और अशोक के पांचवें शिलालेख में कंबोज का गंधार के साथ उल्लेख मिलता है। इसका मतलब यह कि गांधार कंबोज का हिस्सा था या यह दो अलग अलग राज्य थे। कर्निघम के अनुसार राजपुर कश्मीर में स्थित राजौरी है। चीनी यात्री युवानच्वांग ने भी राजपुर का उल्लेख किया है। कंबोज के राजपुर, नंदिनगर और राइसडेवीज के अनुसार द्वारका नामक नगरों का उल्लेख साहित्य में मिलता है।
कालिदास ने रघुवंश में रघु के द्वारा कांबोजों की पराजय का उल्लेख किया है:- ‘काम्बोजा: समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान् परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता:’
संदर्भ : वृहत्तर भारत (रामशरण उपाध्याय) और पत्रकार वेदप्रताप वैदिक के अफगान पर लिखे लेख।
संकलन : अशोक कुमार चौधरी
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