ज्योतिष शास्त्र प्रथम अध्याय

ज्योतिष से जीवन के रहस्य खोलने के लिए जन्म समय के अनुसार कुण्डली बनाना जरूरी होता है,अक्सर कुंडली बनाने के बाद उसके अन्दर भावों के अनुसार ग्रहों का विवेचन कैसे किया जाता है इस बात पर लोग अपने अपने ज्ञान के अनुसार कथन करते है, कई बार तो मैंने देखा है की कुंडली देखते ही कहना शुरू कर देते है कि यह बात है, इस बात का होना यह बात हुयी है, लेकिन जो कुंडली को पूंछने के लिए आया है वह अपनी बात को कह ही नहीं पाया और तब तक दूसरे का नंबर आ गया, अपनी कुंडली को अपने आप जब तक पढ़ना नहीं आयेगा तब तक जीवन के भेद आप अपने लिए नहीं खोल पायेंगे, हर व्यक्ति के लिए तीन बातें जरूरी है कि वह अपने समय को पहचानना सीखे उसके बाद अपनी बात को दूसरे को समझना सीखे और तीसरी बात है कि जब दुःख या कष्ट का समय है बीमारी है तो उसका अपने आप ही इलाज करना सीखे. समय को सीखना ज्योतिष कहलाता है और अपनी बात को समझाने की कला को मास्टर के रूप में जाना जाता है तीसरी बात जीवन के अन्दर आने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए वैद्य का होना भी जरूरी है, बाकी के काम जो जीवन में अपने लिए जरूरी है वे केवल कमाने खाने के लिए और लोगो के साथ रहने तथा आगे की संतति को चलाने से ही जुड़े होते है. ज्योतिष के अनुसार जब भेद खोले जा सकते है तो क्यों न भेद को खोल कर अपने हित के लिए देखा जाए और जो दिक्कत आने वाली है उसका निराकारण खुद के द्वारा ही कर लिया जाए तो कितना अच्छा होगा. आज कल कुंडली बनाने के लिए ख़ास मेहनत नहीं करनी पड़ती है कुंडली को बनाने के लिए बहुत से सोफ्ट वेयर आ गए हैं, उनके द्वारा अपनी जन्म तारीख और समय तथा स्थान के नाम से आप अपनी कुंडली को आसानी से बना सकते है.

उपरोक्त कुंडली में नंबर लिखे हुए और भावो के नाम लिखे है तथा ग्रहों के नाम लिखे हुए है. नंबर राशि से सम्बंधित है जैसे लगन जिस समय जातक का जन्म हुआ था उस समय तीन नंबर की राशि आसमान में स्थान ग्रहण किये हुए थी, एक नंबर पर मेष दूसरे नंबर की वृष तीसरे नंबर की मिथुन चौथे पर कर्क पांचवे पर सिंह छठे नंबर की कन्या सातवे नंबर की तुला आठवे की वृश्चिक नवें की धनु दसवे की मकर ग्यारहवे की कुम्भ और बारहवे नंबर की राशि मीन होती है. इसी प्रकार से लगन जो पहले नंबर का भाव होता है उसके अन्दर जो राशि स्थापित होती है वह लगन की राशि कहलाती है जैसे उपरोक्त कुंडली में तीन नंबर की मिथुन राशि स्थापित है. इससे बाएं तरफ देखते है चार नंबर लिखा है, इसी क्रम से भावों का रूप बना हुया होता है. पहले भाव को शरीर से दुसरे को धन से तीसरे को हिम्मत और छोटे भाई बहिनों से चौथे नंबर को माता, मन मकान और सुख से पांचवे को संतान शिक्षा और परिवार से छठे भाव को दुश्मनी कर्जा बीमारी से सातवे नंबर के भाव को जीवन साथी पति या पत्नी के लिए आठवें भाव को अपमान मृत्यु जान जोखिम नवें को भाग्य और धर्म न्याय विदेश दसवें को कर्म और धन के लिए किये जाने वाले प्रयास ग्यारहवें को लाभ और बड़े भाई बहिन दोस्त के लिए बारहवें को खर्च और आराम करने वाले स्थान के नाम से जाना जाता है.
अशोक कुमार चौधरी “ज्योतिर्विद” संपर्क सूत्र 9431229143

*⚜️🌹क्या हैं ज्योतिष ?*

ज्योतिष एक ऐसा महा विज्ञान है जिसने अपने आप में ही एक अदभुत रहस्य को अपने में समाये रखा है। प्राचीनकाल से ही हमारे ऋषिमुनि ज्योतिष विधियों के द्वारा भूत, भविष्य के बारे में आसानी से बता सकते थे। ज्योतिष विधियाँ पूरी तरह से गृह नक्षत्रो पर आधारित एक गणितीय विधियाँ हैं जो ग्रहों की चाल तथा स्थिति के द्वारा भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में बताया जा सकता है, ज्योतिष 9 ग्रहों पर आधारित एक गणितीय विधि है ये 9 गृह अलग-अलग फल देते है तथा इस के आधार पर ही भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में जाना जा सकता है और व्यक्ति के जीवन पर इन ग्रहों का काफी प्रभाव पडता है।

*⚜️🌹ये ग्रह निम्न प्रकार के होते है-*

१ . सूर्य

२ . चन्द्र

३ . मंगल

४ . बुध

५ . बृहस्पति

६ . शुक्र

७ . शनि

८ . राहू

९ . केतु

*🚩🌹१. सूर्य ग्रह :-

सूर्य गृह को आत्मा का कारक माना गया है सूर्य गृह सिंह राशि का स्वामी होता है सूर्य पिता का प्रतिनिधित्व भी करता है तांबा,घास,शेर,हिरन सोने के आभूषणआदि का भी कारक होता है सूर्य का निवास स्थान जंगल किला मंदिर एवं नदी है सूर्य सरीर में हर्दय आँख पेट और चहरे का प्रतिनिधित्व करता है और इस गृह से रक्तचाप गंजापन आँख सिर एवं बुखार संबंधित बीमारीयां होती है सूर्य क्षेत्रीय जाती का है इसका रंग केशरिया माना जाता है सूर्य एक पुरुष गृह है इसमें आयु की गरणा ५० साल की मानी जाती है सूर्य की दिशा पूर्व है जिस व्यक्ति के सूर्य उच्च का होने पर राजा का कारक होता है सूर्य गृह के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु को माना जाता है तथा इस गृह के शत्रु शुक्र और शनि है सूर्य गृह अपना असर गेंहू धी पत्थर दवा और माणिक्य पदार्थो पर डालता है लम्बे पेड़ और पित रोग का कारण भी सूर्य गृह होता है सूर्य गृह के देवता महादेव शिव है गर्मी ऋतु सूर्य का मौसम है और इस गृह से शुरू होने वाला नाम ‘अ’ ‘ई’ ‘उ’ ‘ए’ अक्षरों से चालू होते है।

*🌹२. चन्द्र ग्रह :-

चन्द्र गृह सोम के नाम से भी जाना जाता है इन्हें चन्द्र देवता भी कहते है उन्हें जवान सुंदर गौर और मनमोहक दिव्बाहू के रूप में वर्णित किया जाता है और इनके एक हाथ में कमल और दुसरे हाथ में मुगदर रहता है और इनके द्वारा रात में पुरे आकास में अपना रथ चलाते है उस रथ को कही सफ़ेद गोड़ो से खीचा जाता है चन्द्र गृह जनन क्षमता के देवताओ में से एक है चन्द्र गृह ओस से जुड़े हुए है उन्हें निषादिपति भी कहा जाता
सोम के रूप में वे सोमवार के स्वामी है और मन माता की रानी का प्रतिनिधित्व करते है वे सत्व गुण वाले है।

*🌹३. मंगल ग्रह :-

मंगल गृह लाल और युद्ध के देवता है और वे ब्रह्मचारी भी है मंगल गृह वृश्चिकऔर मेष रासी के स्वामी है मंगल गृह को संस्कृत में अंगारक भी कहा जाता है (‘जो लाल रंग का है ‘) मंगल गृह धरती का पुत्र है अर्थात मंगल गृह को पृथ्वी देवी की संतान माना जाता है मंगल गृह को लौ या लाल रंग में रंगा जाता है चतुर्भुज एक त्रिशूल मुगदर कमल और एक भाला लिए हुए चित्र किया जाता है उनका वाहन एक भेडा है वे मंगलवार के स्वामी है मंगल गृह की प्रकृति तमस गुण वाली है और वे ऊर्जावान कारवाई ,आत्मविश्वास और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते है

*🌹४. बुध ग्रह :-

बुध गृह व्यपार के देवता है और चन्द्रमा और तारा (तारक) का पुत्र है बुध गृह शांत सुवक्ता और हरे रंग में प्रस्तुत किया जाता है बुध गृह व्यपारियो के रक्षक और रजो गुण वाले है बुध बुधवार के मालिक है उनके एक हाथ में कृपाण और दुसरे हाथ में मुगदर और ढाल होती है बुध गृह रामगर मंदिर में एक पंख वाले शेर की सवारी करते है और शेरो वाले रथ की सवारी करते है बुध गृह सूर्य गृह के सबसे करीबी गृह है।

*🌹५. बृहस्पति ग्रह :-

सभी ग्रहों में से बृहस्पति गृह सभी ग्रहों के गुरु है और शील और धर्म के अवतार है बृहस्पति गृह बलिदानों और प्रार्थनाओ के प्रस्तावक है जिन्हें देवताओ के पुरोहित के रूप में भी जाना जाता है ये गुरु शुक्राचार्य के कट्टर दुश्मन थे देवताओ में ये वाग्मिता के देवता, जिनके नाम कई कृतिया है जैसे की नास्तिक बाह्र्स्पत्य सूत्र .बृहस्पति गृह पीले तथा सुनहरे रंग के है और एक छड़ी एक कमल और अपनी माला धारण करते है वे बृहस्पति गृह के स्वामी है वे सत्व गुनी है और ज्ञान और शिक्षण का प्रितिनिधित्व करते है

*🌹६. शुक्र ग्रह :-

शुक्र गृह दैत्यों के शिक्षक और असुरो के गुरु है जिन्हें शुक्र गृह के साथ पहचाना जाता है शुक्र ,शुक्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है शुक्र गृह साफ़, शुध्द या चमक,स्पष्टता के लिए जाना जाता है और उनके बेटे का नाम भ्रुगु और उशान है वे शुक्रवार के स्वामी है प्रकृति से वे राजसी है और धन ख़ुशी और प्रजनन का प्रतिनिधित्व करते है शुक्र गृह सफ़ेद रंग मध्यम आयु वर्ग और भले चेहरे के है शुक्र गृह घोड़े पर या मगरमच्छ पर वे एक छड़ी ,माला और एक कमल धारण करते है शुक्र की दशा की व्यक्ति के जीवान में २० वर्षो तक सक्रीय बनी रहती है ये दशा व्यक्ति के जीवन में अधिक धन ,भाग्य और ऐशो-आराम देती है अगर उस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र मजबूत स्थान पर विराजमान हो और साथ ही साथ शुक्र उसकी कुंडली में एक महत्वपूर्ण फलदायक गृह के रूप में हो शुक्र गृह वैभव का भी कारक होता है।

*🌹७. शनि ग्रह :-

शनि गृह तमस प्रकृति का होता है शनि , शनिवार का स्वामी है शनी सामान्यतया कठिन मार्गीय शिक्षण ,कैरियर और दीर्घायु को दर्शाता है शनि शब्द की व्युत्पति शनये क्रमति स: अर्थात, वह जो धीरे-धीरे चलता है शनि को सूर्य की परिक्रमा में ३० वर्ष लगते है शनि सूर्य के पुत्र है और जब उन्होंने एक शिशु के रूप में पहली बार अपनी आँखे खोली , तो सूरज ग्रहण में चला गया,जिसमे ज्योतिष कुंडली पर शनि के प्रभाव का साफ संकेत मिलता है शनि वास्तव में एक अर्ध देवता है शनि का चित्रण काले रंग में ,काले लिबास में ,एक तलवार ,तीर और कौए पर सवार होते है।

*🌹८. राहु ग्रह :-

राहू गृह राक्षसी सांप का मुखिया है राहू उत्तर चन्द्र /आरोही आसंधि के देवता है राहू ने समुन्द्र मंथन के दौरन असुर राहू ने थोडा दिव्य अमृत पी लिया था अमृत उनके गले से नीचे उतरने से पहले मोहिनी (विष्णु भागवान) ने उसका गला काट दिया तथा इसके उपरांत उनका सिर अमर बना रहा उसे राहू काहा जाता है राहू काल को अशुभ माना जाता है यह अमर सिर कभी-कभी सूरज और चाँद को निगल जाता है जिससे ग्रहण लगता है।

*🌹९. केतु ग्रह :-

केतु गृह का मानव जीवन पर इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ता है वे केतु अवरोही/दक्षिण चन्द्र आसंधि का देवता है केतु को एक छाया गृह के रूप में माना जाता है केतु राक्षस सांप की पूँछ के रूप में माना जाता है केतु चन्द्रमा और सूरज को निगलता है केतु और राहू ,आकाशीय परिधि में चलने वाले चन्द्रमा और सूर्य के मार्ग के प्रतिच्छेदन बिंदु को निरुपित करते है इसलिए राहू और केतु को उत्तर और दक्षिण चन्द्र आसंधि कहा जाता है सूर्य को ग्रहण तब लगता है जब सूर्य और चंद्रमा इनमे से एक बिंदु पर होते है ये किसी विशेष परिस्थितियों में यह किसी को प्रसिध्दि के शिखर पर पंहुचने में मदद करता है वह प्रकृति में तमस है और परलौकिक प्रभावों का प्रतिनिधित्व करता है।

अशोक कुमार चौधरी “ज्योतिर्विद”

संपर्क: 9431229143

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