कुछ नही बल्कि काफी हिन्दू बीजेपी को वोट नही देते इसके पीछे कारण हैं।
आज़ादी के बाद सत्ता कांग्रेस के पास काफी समय सत्ता रही और वामपंथियों के पास मीडिया,सांस्कृतिक, ऐतिहासिक,एजुकेशनल संस्थाएं।
सत्ता तो आती जाती रहती है हालांकि कांग्रेस को जाने में काफी समय लग लेकिन वामपंथियों के तंत्र को वोट के जरिए उखाड़ा नही जा सकता इसलिए वे आज भी भले ही वोट राजनीति में खत्म हो गए हों लेकिन जनमानस को प्रभावित करने में उतने ही सक्षम हैं बल्कि कहें तो पहले से भी ज्यादा मजबूत।
राजनैतिक रूप से बीजेपी कांग्रेस की प्रतिद्वंद्वी रही है इसलिए कांग्रेस ने आरएसएस और गांधी की हत्या के बहाने उंस पर लगातार प्रहार किया जिससे वह पनप नही सकी। वामपंथियों के अघोषित हिन्दू और देश विरोधी एजेंडे के चलते उन्होंने इस मामले में उनका साथ दिया।
कांग्रेस के इस प्रचार के चलते कि आजादी कांग्रेस ने दिलाई, 1967 तक उसे केंद्र में बहुमत मिलता रहा और हिन्दू वोट बीजेपी/जनसंघ को नही मिले।
वामपंथियों ने इतिहास अपने एजेंडे के हिसाब से लिखा, उन्होंने बर्बर आक्रमणकारियों का महिमामंडन किया और हिंदुओं की आदिकाल की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने का काम किया। क्या आप सोच सकते हैं कि इरफान हबीब,रोमिला थापर जैसे इतिहासकार संस्कृत से अनभिज्ञ थे तो उन्होंने इतिहास लिखने में कितना न्याय किया होगा??
हिंदुओं, हिंदुत्व की बात करने वालों को जलील करने के लिए इन्होंने भाजपा समर्थकों को संघी, साम्प्रदायिक कहना शुरू कर दिया,अगर कोई अपनी प्राचीन विरासत का जिक्र करे तो उसे जलील करने के लिए ये के कुतर्क पेश करते थे और अभी भी कर रहे हैं। भारत में सिर्फ हिन्दू ही ऐसे हैं जो अपने धर्म की प्रशंसा करें तो इनकी नजर में ये साम्प्रदायिक हैं दूसरे धर्म वालों के लिए इनके हिसाब से संविधान प्रदत धार्मिक स्वतंत्रता है।
अब मैं वर्तमान और आता हूँ, आज के पढेलिखे लोगों में अधिसंख्यक वे हैं जो ग्रैंड ट्रंक रोड को शेरशाह सूरी की देन बताते हैं लेकिन उनको उत्तरपथ का ज्ञान नही है,उन्हें अकबर महान पढ़ाया लेकिन पेशवा बाजीराव के बारे में नही बताया,उन्हें ललितादित्य मुक्तापीड के बारे में नही बताया,उन्हें अहम वंश के बारे में पता नही है,उन्हें चोल,पांड्य चालुक्य राजवंशों की महानता के बारे में पता नही है।
तो यह पीढ़ी अभी भी उसी भ्रम में जी रही है जिसे वामपंथियों ने इनको अपने एजेंडे से इंजेक्ट किया है।
प्रशासन में भी इन्हीं वामपंथियों की पकड़ है वरना कांग्रेस को बचाने के लिए वे माल्या ओर नीरव मोदी को भागने कैसे देते।
जिस सिविल सर्विस में हिन्दू विरोधी अखबार द हिन्दू के लिखे को परीक्षा पास करने का मानदंड बनाया गया हो उससे निकले अधिकारी कैसे न्याय कर सकते हैं।
गनीमत है आज सोशल मीडिया में एक बहुत बड़ा वर्ग इनके झूठ को ध्वस्त करने में जुट है जिससे बीजेपी आज आगे बढ़ रही है।
एक बात मैं दिल से स्वीकार करता हूँ कि हिन्दू बिल्कुल भी साम्प्रदायिक नही हैं यहां तक कि उकसाने का बाद भी नही लेकिन इसके बावजूद अब अधिसंख्यक हिन्दू को सांप्रदायिक घोषित किया जा रहा है।