भारत में खेती पूरी तरह से कुदरत के भरोसे है. कभी सूखा तो कभी ज्यादा बारिश, खेत में खड़ी फसल को चौपट कर देते हैं. हमारे देश में ज्यादातर छोटे किसान हैं. ये किसान अपने खेतों में कुछ ज्यादा प्रयोग भी नहीं कर पाते. आलम ये हो गया है कि लोग खेती-बाड़ी छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. हालांकि खेती के घाटे को कम करने के लिए सरकार बड़े स्तर पर काम कर रही है, लेकिन विविधताओं से भरे इस देश में ये प्रयास पर्याप्त साबित नहीं होते हैं.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग: नए जमाने की खेती, किसानों के लिए फायदा ही फायदा:
अनुबंध पर खेती का मतलब ये है कि किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए. कॉन्ट्रैक्ट खेती में किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता.
भारत में खेती पूरी तरह से कुदरत के भरोसे है. कभी सूखा तो कभी ज्यादा बारिश, खेत में खड़ी फसल को चौपट कर देते हैं. हमारे देश में ज्यादातर छोटे किसान हैं. ये किसान अपने खेतों में कुछ ज्यादा प्रयोग भी नहीं कर पाते. आलम ये हो गया है कि लोग खेती-बाड़ी छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. हालांकि खेती के घाटे को कम करने के लिए सरकार बड़े स्तर पर काम कर रही है, लेकिन विविधताओं से भरे इस देश में ये प्रयास पर्याप्त साबित नहीं होते हैं.
सरकार किसानो को आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए जागरुक कर रही है. आधुनिक खेती का ही एक नया माध्यम है कॉन्ट्रैक्ट खेती या अनुबंध पर खेती या फिर ठेका खेती.
क्या है कॉन्ट्रैक्ट खेती
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किसानों की खेती ज्यादातर कुदरत के भरोसे होती है. खेतों की फसलों को कभी बारिश तो कभी सूखे की मार झेलनी पड़ती है. फिलहाल सरकार कृषि क्षेत्र के लिए बड़े स्तर पर काम कर रही है, जिससे किसानों के घाटे को कम किया जा सके. बता दें कि हमारे देश में अधिकतर छोटे किसान खेती करते हैं. इसी कड़ी में सरकार किसानों को आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए प्रेरित कर रही है. इसके लिए एक नया माध्यम भी बताया गया है, जिसको कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, अनुबंध खेती या फिर ठेका खेती कहा जाता है.
कैसे होता है कॉन्ट्रैक्ट
किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसी कंपनी या व्यक्ति के साथ करता है. इस खेती में किसान द्वारा उगाई गई फसल को कॉन्ट्रैक्टर खरीदता है. खास बात है कि किसान की उगाई फसल के दाम भी कॉन्ट्रैक्ट में पहले से तय किए जाते हैं. इसके अलावा खाद, बीज,सिंचाई और मजदूरी आदि का खर्च भी कॉन्ट्रैक्टर ही उठाता है. किसानों को खेती के तरीके भी कॉन्ट्रैक्टर ही बताता है. इसमें फसल की गुणवत्ता, पैदावार, दाम, फसल को बेचना पहले ही तय हो जाता है.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से लाभ:
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भारत के कई राज्यों में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की जा रही है. यह खेती महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में बड़े स्तर पर होती है. बता दें कि किसानों की तरफ से इस खेती के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. इस खेती से किसान को काफी मुनाफ़ा हो रहा है, साथ ही खेती की दिशा और दशा, दोनों ही सुधर रही है.
कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन जारी है. आंदोलनकारी किसानों का कहना है कि ये कानून उन अन्नदाताओं की परेशानी बढ़ाएंगे जिन्होंने अर्थव्यवस्था को संभाले रखा है. कांट्रैक्ट फार्मिंग में कोई भी विवाद होने पर उसका फैसला सुलह बोर्ड में होगा. जिसका सबसे पावरफुल अधिकारी एसडीएम को बनाया गया है. इसकी अपील सिर्फ डीएम यानी कलेक्टर के यहां होगी. सरकार ने किसानों के कोर्ट जाने का अधिकार भी छीन लिया है. इस प्रावधान को भी बदलने की मांग हो रही है.
30 दिन के अंदर डीएम के यहां हो सकेगी अपील
आनंद का कहना है कि एसडीएम बहुत छोटा अधिकारी होता है वो न तो सरकार के खिलाफ जाएगा और न कंपनी के, इसलिए विवाद का निपटारा कोर्ट में होना चाहिए. एसडीएम और डीएम (DM) सरकार की कठपुतली होते हैं. वो सरकार या कंपनी की नहीं मानेंगे तो पैसे वाली शक्तियां मिलकर तबादला करवा देंगी. ऐसे में नुकसान किसानों का होगा. विवाद से जुड़े फैसले कोर्ट में होने चाहिए. आनंद का कहना है कि यह प्रावधान किसानों को बर्बाद कर सकता है. इस प्रावधान को खत्म किए बिना यह योजना शायद ही सफल होगी.
दोनों पक्षों में कोई भी जानकारी, नियम या शर्त छिपी नहीं होनी चाहिए.
निष्कर्ष: इस प्रकार हम देखते हैं कि संविदा कृषि एक नई अवधारणा है जिसको साकार एवं सार्थक रूप धारण करने में समय लग सकता है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में दोनों पक्षों के बीच ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होना चाहिए. किसान और कंपनी या व्यक्ति के बीच पारदर्शिता होनी चाहिए.
कांट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा बिल का एक प्रावधान काफी खतरनाक है. जिसमें कहा गया है कि अनुबंध खेती के मामले में कंपनी और किसान के बीच विवाद होने की स्थिति में कोई सिविल कोर्ट (Civil Court) नहीं जा पाएगा. इस मामले में सारे अधिकार एसडीएम (SDM) के हाथ में दे दिए गए हैं. और प्रारम्भ में किसानों और प्रतिष्ठानों दोनों को कठिनाइयाँ आ सकती हैं. आशा की जाती है कि सतत सुधार के माध्यम से यह कृषि सर्वसुलभ एवं लाभकारी सिद्ध होगी.