जून के महीने में भारत में लगभग 8,58,649 करोड़ रुपये (114 बिलियन डॉलर) का भुगतान एवं आदान-प्रदान डिजिटल तरीके से हुआ।
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) के अनुसार, भीम एप द्वारा 5,47,373 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ। फास्ट टैग द्वारा हाईवे पे 2,576 करोड़ रुपये का ट्रांसैक्शन हुआ (आन्दोलनजीवी नोट करे!)। 2,84,033 करोड़ रुपये का भुगतान बैंक से बैंक द्वारा डिजिटल तरीके (IMPS – सेल फ़ोन या कंप्यूटर द्वारा Immediate Payment Service) से हुआ। आधार सत्यापन प्रक्रिया के द्वारा 24,667 करोड़ रुपये का पेमेंट हुआ।
यह सभी ट्रांसैक्शन कुछ सेकंड में बिना किसी थर्ड पार्टी के सत्यापन या हस्तक्षेप के हो गए – तभी यह डिजिटल हुए। उदाहरण के लिए, चेक पेमेंट के लिए किसी बैंक कर्मी को चेक क्लियर करना होता है। यही स्थिति बैंक टु बैंक मनी वायर या ट्रांसफर करने में है जिसे कोई कर्मी क्लियर करता है।
अगर इस 114 बिलियन डॉलर को एक वर्ष के आंकड़ों के रूप में ले, तो लगभग 1368 बिलियन डॉलर का ट्रांसैक्शन डिजिटल रूप से होगा।
दूसरे शब्दों में, प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से भारत की अर्थव्यवस्था का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा डिजिटल हो चूका है। अमेरिका में डिजिटल पेमेंट अभी भी अर्थव्यवस्था का लगभग 20 प्रतिशत है, जबकि चीन में 45 प्रतिशत है।
कुछ वर्ष से तुलनात्मक रूप से धीमे विकास का एक बहुत बड़ा कारण यह था कि प्रधानमंत्री मोदी ने कानूनी और गैरकानूनी धन के मध्य एक दीवार खड़ी कर दी है। पहले धनी लोग अपने नंबर 2 के पैसे को मॉरिशस या साइप्रस ले जाते थे। वहां पर उन्हें टैक्स नहीं देना पड़ता था। फिर वह उस पैसे को शेल या कागजी कंपनियों के जरिए भारत ले आते थे। उदाहरण के लिए, वे लोग किसी शेल कंपनी का शेयर मार्केट में उतारते थे और मॉरिशस या भारत से उस शेयर को कई गुना दामों में खरीद लेते थे। दिखाया जाता था कि शेल कंपनी को शेयर बेचने से भारी लाभ हुआ है और वह पैसा नंबर एक का हो जाता है।
दूसरा उदाहरण – भ्रष्ट लोग किसी वस्तु का विदेशों में दाम कई गुना बढ़ाकर निर्यात करते थे। आप मानिये की उस वस्तु का एक्चुअल दाम ₹200 है लेकिन विदेश में बैठा व्यवसायी उस वस्तु का 5000 रुपए देने को तैयार है। आपको बैठे-बिठाए उस पर 4800 रुपए का फायदा हो गया। मजे की बात यह है कि भारत से निर्यात करने वाला और विदेश में उस वस्तु को खरीदने वाला व्यक्ति एक ही है। यहां से शेल कंपनी के द्वारा निर्यात किया, वहां पनामा या मॉरिशस में पंजीकृत शेल कम्पनी ने उसे आयात किया। और इस तरीके से फिर वह पैसा नंबर 1 का बन गया।
वर्ष 2010 -11 में इंजीनियरिंग कंपनियों ने 30 बिलियन डॉलर (132000 करोड़ रुपये) का निर्यात किया, जबकि मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत इंजीनियरिंग कंपनियों के द्वारा किया गया निर्यात केवल 1.8 बिलियन डॉलर (6100 करोड़ रुपये) था। यह 28 बिलियन डॉलर (लगभग 123000 करोड़ रुपये) निर्यात कहां से हुआ और किस इंजीनियरिंग कंपनी ने किया? क्या यह संभव है कि 28 बिलियन डॉलर का निर्यात छोटी छोटी कंपनियां कर सके जो मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत ही नहीं है?
ऐसे हो गया था 123000 करोड़ रुपये का “निर्यात” या क्या काले धन का आगमन। यही था सोनिया काल का जीडीपी ग्रोथ का मॉडल।
प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के बाद ऐसे लोगो का काला धन, चाहे भारत में हो या विदेश में, फंस गया और वह धन व्यापारी और उद्योगपतियों की सहायता करने में असमर्थ था। प्रधानमंत्री स्वयं बता चुके हैं कि लगभग चार लाख कागजी कंपनियों का पंजीकरण रद्द किया जा चुका है, उनके बैंक अकाउंट फ्रीज या बंद कर दिए गए हैं।
आज सारा डिजिटल – एवं कैश – ट्रांसैक्शन सरकार के समक्ष है। सरकार को पता है कि किस व्यक्ति ने किस स्थान से किसको पेमेंट किया है। तभी GST एवं आयकर के कलेक्शन में लगातार वृद्धि हो रही©