इतिहास के साथ राहुल गांधी की जालसाजी धोखाधड़ी मक्कारी अब नहीं चल पाएगी…

राहुल गांधी ने कहा है कि… “इंदिरा गांधी ने देश में जो इमरजेंसी जो लगायी थी वो एक “गलती” थी। उस दौरान जो भी हुआ, वह “गलत” था। हालांकि वो वर्तमान परिप्रेक्ष्य से बिलकुल अलग था, क्योंकि कांग्रेस ने कभी भी देश के संस्थागत ढांचे पर कब्जा करने का प्रयास नहीं किया लेकिन आज जो हो रहा है, वो उससे भी बुरा है।”
राहुल गांधी ने संस्थागत ढांचों पर मोदी सरकार के कब्जे के उदाहरण के रूप में क्योंकि न्यायपालिका और मीडिया का नाम लिया है इसलिए राहुल गांधी के निर्लज्ज सफेद झूठ की धज्जियां चिथड़े उड़ाने के लिए उसको इतिहास प्रसिद्ध एक दस्तावेजी घटनाक्रम की याद दिलाना आज आवश्यक हो गया है।

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। अपने उस फैसले में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को भ्रष्ट तरीकों से चुनाव लड़ने का दोषी ठहराया था और उनको किसी भी संवैधानिक पद तथा चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया था।

उस फैसले के विषय में परम सेक्युलर और प्रचण्ड भाजपा (जनसंघ) विरोधी की अपनी पहचान वाले अत्यन्त प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब “द जजमेंट: इनसाइड स्टोरी ऑफ द इमरजेंसी इन इंडिया” में लिखा है कि…

“इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले के कई महीने बाद मैं जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा से इलाहाबाद में उनके घर में मिला था। उन्होंने मुझे बताया था कि एक कांग्रेस सांसद ने इन्दिरा गांधी के पक्ष में फैसला सुनाने के लिए उन्हें रिश्वत देने की कोशिश की थी। इसी तरह न्यायालय में उनके एक सहकर्मी साथी जज ने भी उन्हें सुप्रीमकोर्ट का जज बनाए जाने का प्रलोभन दिया था। सिन्हा की मुश्किल यह थी कि वे अपने फैसले को दूसरों की नज़रों में आने से कैसे रोकें। उन्होंने अपने स्टेनोग्राफर को छुट्टी पर भेज दिया और और फैसले का अहम हिस्सा स्वयं अपने हाथ से लिखा। फिर भी, सरकार की गुप्तचर एजेंसियां फैसले की गंध पाने की कोशिशों में जुटी रहीं। जस्टिस सिन्हा की धार्मिक प्रवृत्ति को देखते हुए साधू सन्यासियों तक का इस्तेमाल किया गया।”

कुलदीप नैयर अपनी किताब में आगे लिखते हैं कि सरकार के लिए फ़ैसला इतना महत्वपूर्ण था कि उसने सीआईडी के एक दल को इस बात की ज़िम्मेदारी दी थी कि किसी भी तरह ये पता लगाया जाए कि जस्टिस सिन्हा क्या फ़ैसला देने वाले हैं.?”

कुलदीप नैयर ने आगे लिखा है कि, ”वो लोग 11 जून की देर रात सिन्हा के निजी सचिव मन्ना लाल के घर भी गए. लेकिन मन्ना लाल ने उन्हें एक भी बात नहीं बताई थी क्योंकि जस्टिस सिन्हा ने अंतिम क्षणों में अपने फ़ैसले के महत्वपूर्ण अंशों को अपने हाथ से लिख कर जोड़ा था।
कुलदीप नैयर ने आगे लिखा है कि… “बहलाने फुसलाने के बाद भी जब मन्ना लाल कुछ बताने के लिए तैयार नहीं हुए तो सीआईडी वालों ने उन्हें धमकाया, ‘हम लोग आधे घंटे में फिर वापस आएंगे। हमें फ़ैसला बता दो, नहीं तो तुम्हें पता है कि तुम्हारे लिए अच्छा क्या है।’ इस धमकी के बाद मन्ना लाल ने अपने बीबी बच्चों को तुरंत अपने रिश्तेदारों के यहाँ भेजा और जस्टिस सिन्हा के घर में जा कर शरण ले ली। उस रात तो मन्ना लाल बच गए, लेकिन जब अगली सुबह वो तैयार होने के लिए अपने घर पहुंचे, तो सीआईडी की कारों का एक काफ़िला उनके घर के सामने आकर रुक गया था।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा के उस फैसले को अपनी सत्ता की ताकत से रौंदने कुचलने के लिए ही फैसले के 12 दिन बाद देश में इमरजेंसी लगा दी गयी थी। यह पूरा घटनाक्रम एक दस्तावेजी ऐतिहासिक सच्चाई है। राहुल गांधी की तरह इतिहास के साथ धोखाधड़ी, जालसाजी, मक्कारी करने की करतूत नहीं है।

राहुल गांधी ने क्योंकि यह भी कहा है कि “कांग्रेस की यह शैली ही नहीं है…”

इसलिए पोस्ट के अन्त में उपरोक्त घटनाक्रम से जुड़े एक अन्य प्रसंग का उल्लेख कर के राहुल गांधी को “कांग्रेस की शैली” की याद भी दिला ही दूं…

जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा का फैसला आते ही उस फैसले के विरोध में उत्तरप्रदेश कांग्रेस के एक तत्कालीन चर्चित नेता ने अपने साथी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट के गेट पर जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा का पुतला फूंका था। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को जमकर गालियां बकते हुए नारे लगाए थे कि…
“इन्दिरा तेरी सुबह की जय,
इन्दिरा तेरी शाम की जय।
इन्दिरा तेरे काम की जय,
इन्दिरा तेरे नाम की जय।।”

1980 में कांग्रेस की यूपी की सत्ता में वापसी होते ही इन्दिरा गांधी, संजय गांधी की जोड़ी ने लगभग दर्जन भर वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की अनदेखी और उपेक्षा कर के उस चर्चित कांग्रेसी नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) को पुरस्कार स्वरूप यूपी का मुख्यमंत्री नियुक्त कर सबको चौंका दिया था।

तो यह है “कांग्रेस की शैली”।

राहुल गांधी ने क्योंकि न्यायपालिका के साथ ही साथ मीडिया पर भी मोदी सरकार के कब्जे का झूठ राग अलापा इसलिए कल अपनी पोस्ट के माध्यम से उसको बहुत ही शर्मनाक और घृणित उदाहरण के साथ यह भी याद दिलाऊंगा कि मीडिया के साथ “कांग्रेस की कार्यशैली” क्या और कैसी थी।

© Satish Chandra Mishra जी की वॉल से

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