26 जून 1975 की सुबह 4.30 बज रहे थे, दरवाजा पर जोड़-जोड़ खटखटाने की आवाज दे रहे व्यक्ति ने कड़क आवाज में कहा कि जल्दी दरवाजा खोलो, नहीं तो तोड़ डालेंगे. मेरे सिनियर मित्र (स्व) श्याम सुन्दर दास ने झकझोरते हुए मुझे यह कहते हुए धक्का देकर उठाया कि “अशोक” भागो लगता है पुलिस तुम्हें पकड़ने आई है. मैं भी पिछला दरवाजा खोलकर अपने डेरा से बगल में अवस्थित “नारायण मंडल” लॉज में अपने मित्र दिनेश सिंह के कमरे में छिप गया.
पुलिस से डरने का मुख्य कारण था कि, 25 जून की शाम में बड़ा बाजार शिव मंदिर चौक पर कुछ दुकानदारों से विवाद हुआ था, उस काल में आवश्यक घरेलू सामान बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं था, चाहे किरासन तेल हो, टिक्का माचिस, सनलाइट / लाइफबॉय साबुन, दाल, सरसों तेल जैसे आवश्यक सामग्री का बाजार में भयंकर अभाव रहता था लेकिन कालाबाजारी में गुपचुप तरीके से मिलता था.
हमारी हल्लाबोल टोली जयप्रकाश नारायण जी के आह्वान पर थाली बजाकर सरकार के विरुद्ध आंदोलन का बिगुल फूंकते थे तथा जनता कर्फ्यू लगाया करते थे. इसी क्रम में प्रायः कालबाजारियों से विवाद हुआ करता था.
इसी क्रम में 25 जून 1975 की शाम में एक किराना दूकानदार जो कालबाजारी से सामान बेचते थे से विवाद हो गया था. उस काल में गोपाल महतो आजाद कांग्रेस सेवादल के दबंग नेता हुआ करते थे जिनकी पुलिस से अच्छी सांठगांठ थी, वे सदैव कालाबाजारियों को समर्थन देने में आगे रहते थे, 25 जून को भी वह उस दूकान दार के समर्थन में मुझे पुलिस केस में फंसाने का धमकी दे चुके थे, बस इसी बात का भय था कि गोपाल महतो ने मेरे विरुद्ध पुलिस को भड़काया होगा इसलिए मैं पुलिस के भय से चुपचाप पिछले दरवाजे से भाग निकला था.
26 जून को दिन में मैं किसी प्रकार छिपते-छिपाते नया टोला स्थित संघ कार्यालय पहुंचा तब देखा कि वहां सन्नाटा पसरा हुआ था, तब मैं वहां उस समय के जनसंघ के कद्दावर नेता बंगाली महतो जी से मिलने उनके आवास पर चले-चले, वहां पहुंचते ही मुझे कहा गया कि मुझे पकड़ने के लिए पुलिस तलाश में है. वहां से मैं उल्टे पैर नारायण मंडल लॉज में अपने मित्र दिनेश सिंह के कमरे की ओर चल पड़ा. रास्ते में ही पता चला कि देश में आपातकाल लागू हो गया है, छात्र आंदोलनकारियों को पुलिस पकड़-धकड़ कर रही है, फिर मैं भी छिप-छिपाकर रहने लगा. पुलिस और मेरे बीच चूहा-बिल्ली का खेल चलता रहा. इस बीच संघ स्वयं सेवकों की बैठक गुपचुप तरीके से किसी न किसी के घर पर होता रहा, हमलोग संघ कार्यालय आना-जाना बंद कर दिए थे, हां एक सावधानी अवश्य बरतते थे की कहीं भी बैठक में 5- 6 से ज्यादा लोग नहीं मिलते थे और बैठक में उपस्थित व्यक्ति में से एक दूसरे बैठक में उपस्थित होकर एक बैठक की सूचना दूसरे बैठक में पहूंचाने का काम करते थे. अधिकांश समय इस जिम्मेदारी को निभाने का अवसर मुझे मिला करता था.
25 जून: भारत में 25 जून 1975 को लागू हुए आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ है. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की थी. ये आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च, 1977 तक चला था. यानी पूरे 21 महीने तक. ये भारत का पहला आपातकाल था. 26 जून 1975 के तड़के ऑल इंडिया रेडियो से प्रधानमंत्री (तत्कालीन) इंदिरा गांधी ने कहा, ”राष्ट्रपति (फखरुद्दीन अली अहमद) ने आपातकाल की घोषणा कर दी है. घबराने की कोई बात नहीं है.” इंदिरा गांधी के ऑल इंडिया रेडियो स्टूडियो जाने से थोड़े दे पहले ही कैबिनेट मंत्रियों को इस इमरजेंसी के बारे में सूचित किया गया था. तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने पिछली रात यानी 25 जून (1975) करीब 11.30 बजे आपातकाल की घोषणा की थी. इसके बाद फौरन ही दिल्ली भर के सारे समाचर पत्रों के ऑफिस में बिजली काट दी गई ताकी अगले दो दिनों तक अखबार में कुछ भी छापा ना जा सके. वहीं दूसरी ओर 26 जून की सुबह सैकड़ों राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं और कांग्रेस पार्टी का विरोध करने वाले ट्रेड यूनियनों को जेल में बंद कर दिया गया था। इमरजेंसी के लिए इंदिरा गांधी ने तीन कारणों का किया था जिक्र इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इंदिरा गांधी सरकार द्वारा बताया गया कि भारत में 21 महीनों तक चलने वाले आपातकाल का लक्ष्य देश में फैले आंतरिक अशांति को नियंत्रित करना है. इसलिए देशभर में संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी पर अंकुश लगा दिया गया था. इंदिरा गांधी ने अपने संबोधन में तीन प्रमुख कारणों का जिक्र किया और आपतकाल को उचित ठहराया। पहला कारण देते हुए इंदिरा गांधी ने कहा, ‘देश में जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए आंदोलन की वजह से भारत की सुरक्षा और लोकतंत्र खतरे में है.’ दूसरा कारण देते हुए इंदिरा गांधी बोलीं, ‘मेरा विचार है कि देश में तेजी से आर्थिक विकास और पिछड़े वर्गों, वंचितों के उत्थान की जरूरत है.’ तीसरा इंदिरा गांधी ने कहा, ”विदेशों से आने वाली शक्तियां भारत को अस्थिर और कमजोर कर सकती हैं.आपातकाल के पहले देश में थी आर्थिक तंगी 25 जून 1975 को भारत में आपातकाल लागू होने से पहले के कुछ महीनों में देश में आर्थिक तंगी चल रही थी. देशभर में लोग बढ़ती बेरोजगारी, अत्यधिक मुद्रास्फीति और भोजन की कमी की परेशानियों से जूझ रहे थे. भारतीय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति के बीच देश कई हिस्सों में दंगे और विरोध प्रदर्शन किए जा रहे थे.