आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है और एक कमेटी का गठन कर दिया है जो कि 10 दिनों में सभी किसान संगठनों से चर्चा करके 2 महीनों के अंदर अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करेगी।
जैसा कि अनुमान था, विरोध करने वाले किसान संगठन, सुप्रीम कोर्ट की इस व्यवस्था का भी विरोध कर रहे हैं। सामान्यतः हम सभी भारतीयों की आस्था और विश्वास सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन ये संगठन शुरु से ही सुप्रीम कोर्ट के किसी भी तरह के दखल का विरोध कर रहे थे, क्योंकि यह संगठन जानते हैं संवैधानिक रूप से इन कानूनों में कुछ भी गलत नहीं है ।
तथाकथित किसान संगठनों द्वारा यह कदम उठाना यह साबित करता है कि यह आंदोलन पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है इस आंदोलन का किसानों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। इस आंदोलन का एकमात्र उद्देश्य है कि मोदी सरकार को अस्थिर करना और आने वाले चुनाव में ऐसा माहौल बनाने कि है कि जिससे यह सरकार दोबारा चुनकर ना आ सके।
तथाकथित किसानों द्वारा किए जा रहे इस आंदोलन को समझिए। सरकार ने इस कानून के संबंध में अध्यादेश 5 जून को ही पारित कर दिया था लेकिन इस अध्यादेश के विरोध में किसी भी तरह का कोई आंदोलन नहीं हुआ, जब दोनों सदनों में कानून के पारित होने के बाद आंदोलन शुरू हुआ और जब सरकार ने इन्हें बातचीत का न्योता दिया तब शुरू के दो दौर में इन संगठनों को यह पता ही नहीं था कि इनके आंदोलन के मुद्दे क्या हैं ? बात किस मुद्दे पर करनी है ? क्या बात करनी है और इनके कौन प्रतिनिधि रहेंगे ? सरकार ने ही इनसे कहा कि आप अपना होमवर्क करके आइए और किन मुद्दों पर आपको आपत्ति है उसके बारे में हमें अवगत कराइए ।
तत्पश्चात तीसरे दौर की बातचीत में इन संगठनों ने अपने विरोध के बिंदु सरकार के सामने लाए जिसे सरकार ने विचार-विमर्श करके तुरंत इन बिंदुओं का समाधान कर दिया और छह मुद्दों पर अपनी लिखित सहमति दे दी जिसमें एमएसपी भी शामिल है।
लेकिन सरकार द्वारा इन मुद्दों के समाधान के बाद किसानों को लगा की अब तो यह आंदोलन समाप्त हो जाएगा, तब इन्होंने अपने रुख से पलटते हुए यह कहना शुरू कर दिया कि इस समाधान और कानून में किसी संशोधन को नहीं मानेंगे, और जब तक तीनों कृषि कानून वापस नहीं होगा तब तक ये इस आंदोलन को जारी रखेंगे।
तत्पश्चात सरकार ने किसान संगठनों से यह निवेदन करना शुरू कर दिया कि आपकी और भी कोई अन्य मुद्दों से विरोध है तो उन्हें हमें बताइए, ताकि वह उसका युक्तिसंगत समाधान निकाल सके लेकिन किसानों ने अड़ियल रुख अपनाते हुए सरकार से लगभग बातचीत करने का अपना मन ही खत्म कर दिया लेकिन चूंकि सरकार का बार-बार आग्रह था, तो उन्हें भी दिखावे के लिए सरकार से बातचीत करने जाना पड़ता था और वहां पर भी वे सरकार को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे वहां वह अपना खाना ले जाते थे अगर यह इतने ही खुद्दार और स्वाभिमानी किस्म के लोग हैं तो इन्हें इस सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता जो कि सब्सिडी के रूप में है उसे भी वापस कर देना चाहिए
लोकतंत्र में किसी भी विवाद का समाधान बातचीत के द्वारा ही हो सकता है, सरकार ने आठ दौर की बातचीत उनसे कर ली है, लेकिन यह अपने ही रुख पर अड़े हुए हैं कि कानून वापस लो अन्यथा 2024 तक यही बैठे रहेंगे और आंदोलन जारी रखेंगे और यह 2024 शब्द का उपयोग करना ही इनकी मंशा को दर्शाता है ।
आंदोलनकारी किसानों को यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि अगर 2024 में यह सरकार नहीं आती है और इनकी जगह कोई और सरकार आती है तब भी क्या यह इसी तरह अपना आंदोलन जारी रखेंगे। मुझे लगता है कि इन्हें तो यह ऐलान करना चाहिए कि जब तक यह कानून वापस नहीं होगा तब तक यह इसी तरह अपना आंदोलन जारी रखेंगे चाहे किसी की भी सरकार हो।
आपको एक बात स्पष्ट कर दूं कि इन कानूनों के जितने भी प्रावधान है इन सारे प्रावधानों को कभी न कभी सारे विपक्षी दल और इनके नेता जैसे कि शरद पवार, सोनिया गांधी, राहुल गांधी सराह चुके हैं और इन प्रावधानों को लागू करने की मांग कर चुके हैं, भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत भी जब यह कानून लागू हुआ तब इसकी सराहना करते हुए घूम रहे थे , अचानक किसी राजनेता से मुलाकात के बाद इन्होंने अपने रुख में बदलाव किया और आंदोलन में शामिल हो गए ।
आखिर कोई देश कैसे चलेगा, संविधान में इसकी व्यवस्था है और इसके तीन अंग है विधायिका न्यायपालिका और कार्यपालिका लेकिन यह संगठन इन तीनों को दरकिनार करके सड़क से देश को चलाना चाह रहे हैं।
सरकार पर तो इन्होंने अपना अविश्वास दिखाई दिया था पर अब सुप्रीम कोर्ट में भी इन्होंने अपना अविश्वास प्रदर्शित कर दिया है ।
मैं विनम्रता पूर्वक और सम्मान पूर्वक यह कहना चाहूंगा कि आंदोलनरत किसान संगठनों का यह रवैया सुप्रीम कोर्ट के लिए भी एक सबक है कि कभी भी किसी मुद्दे पर अपनी टिप्पणियों में भावनात्मकता का प्रदर्शन ना करें, कानून और संविधान में लिखे हुए जो प्रावधान हैं उन्हीं के अनुसार टिप्पणी करें और उन्हीं के अनुसार कार्यवाही करें। अगर हजारों लाखों लोगों को रोज इन किसानों के सड़क रोकने से परेशानी हो रही है तो सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेकर इन किसानों को हटाने का आदेश जारी करना चाहिए क्योंकि अगर इन किसानों के कुछ संवैधानिक अधिकार हैं तो, परेशान हो रहे नागरिकों का भी संवैधानिक अधिकार है कि वह बिना किसी रोक टोक और बाधा के अपने कार्यस्थल या जहां वो जाना चाहे निर्बाध रूप से जा सकें।
सरकार से यही निवेदन है कि इस कृषि कानून को किसी भी हालत में वापस नहीं लेना चाहिए, अगर सरकार यह कृषि कानून वापस लेती है तो, यह एक तरह का उदाहरण हो जाएगा और भविष्य में भी इसी तरह से कुछ संगठन, भीड़ तंत्र का उपयोग करके ऐसे सारे कानून जो कि देशहित में तो है, लेकिन कुछ लोगो या उनको समूह के हितों को चोट पहुंचाते हैं उन्हें वापस लेने के लिए सरकार पर दबाव बनाएंगे, इसलिए सरकार को निश्चित तौर पर इस आंदोलन को ऐसे उदाहरण बनने से रोकना चाहिए।
और अंत में एक मजेदार बात आपको और बता दूं कि इन तीनों कृषि कानून में मौजूदा व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं किया गया वरन् उन मौजूदा व्यवस्था के अलावा कुछ अन्य विकल्प भी दिए दिए जा रहे है और यह पूरी तरह किसानों की मर्जी पर है कि वह मौजूदा विकल्प चुनते हैं या नए विकल्प की ओर अग्रसर होते हैं।
अशोक चौधरी "प्रियदर्शी"
Ashok Kumar Choudhary is Joint President, Bihar, National Human Right’s Organisation, a retired banker who has wide experience in handling rural banking, agriculture and rural credit. He is also a Trade Unionist and has held a leadership position in Bharatiya Mazdoor Sangh, trade wing of RSS. Writer, Poet, Thinker,
Also an amateur Astro-Palmist, Numerologist, Naturopath, Acupressure Expert, ,आयुर्वेद सलाहकार