जब ब्रह्मपुत्र का पानी मुगलों के खून से लाल हो गया था

असम में कभी मुस्लिम राज क्यों नहीं आया ? लाचित बरफुकन के वीरता की कहानी

24 नवंबर को असम के महान सेनानायक लचित बोरफुकान की 400वीं जयंती थी इस मौके पर दिल्ली के विज्ञान भवन में 3 दिन का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया

23 नवंबर को इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने, 24 तारीख को स्वयं गृह मंत्री अमित शाह इस कार्यक्रम में उपस्थित थे और 25 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने इस कार्यक्रम का समापन किया आखिर कौन है लचित बरफुकन जिनको भारत सरकार ने इतनी अहमियत दी है ?

लचित बरफुकन एक और नाम है जो वामपंथी इतिहासकारों की कुचेष्टाओं का शिकार हो गया । लचित बरफुकन ही वह नाम है जिसकी वजह से असम में कभी भी मुगल साम्राज्य दाखिल नहीं हो सका ।

1663 से लेकर के 1669 तक असम में चक्रध्वज सिंघा नाम के अहोम राजा का राज्य चल रहा था । चक्रधर सिंघा इस बात से बहुत परेशान थे कि आज नहीं तो कल मुगल साम्राज्य उनके इलाके पर भी कब्जा कर लेगा । असम के आसपास के इलाकों पर धीरे-धीरे मुगलिया सेनाओं का दबाव बढ़ना शुरू हो गया था । इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए चक्रधर सिंघा ने भरोसा किया लचित बरफुकन पर ।

औरंगजेब की एक आदत थी वह किसी भी युद्ध के लिए पहले मुसलमान सेनापतियों को भेजता था और जब मुसलमान सेनापति हार जाते थे तो फिर वह हिंदू सेनापतियों को आगे कर दिया करता था ।

1671 में ठीक ऐसा ही हुआ जब उसने देखा कि उसके सारे मुस्लिम सरदार हार चुके हैं तो उसने एक हिंदू सेनापति के नेतृत्व में लचित बरफुकन से लड़ने के लिए मुगलिया सेना को असम भेजा ।

1671 में असम के अंदर सराय घाट की लड़ाई हुई । यह लड़ाई ब्रह्मपुत्र नदी के अंदर और बाहर उसके तटों पर लड़ी गई । यह भारत के इतिहास की एक ऐसी अनोखी लड़ाई थी जो कि नौसेना युद्ध थी इसीलिए इस लड़ाई की बहुत ज्यादा अहमियत है ।

अहोम साम्राज्य के सेनापति लचित बरफुकन पर यह जिम्मा था कि वह असम को मुगलों के आतंक से दूर रखें और इसके लिए उन्होंने बहुत जबरदस्त रणनीति तैयार की वही जानते थे की मुगल जमीन पर लड़ने के अभ्यस्त हैं लेकिन पानी में लड़ना नहीं जानते हैं।

इसीलिए अपने रण कौशल से लचित बरफुकन ने मुगलों को मजबूर किया कि वह ब्रह्मपुत्र नदी में जंग लड़ें और जैसे ही यह जंग ब्रह्मपुत्र नदी में लड़ी गई कम संख्या में होने के बावजूद भी अहोम साम्राज्य के सैनिकों ने बड़ी संख्या वाले मुगल सेना को बहुत बुरी तरह से पराजित किया

मुगले मुगलों के खून से ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल हो गया था ऐसा मंजर इतिहास में कभी-कभी ही देखने को मिलता है मुगलों को ऐसी करारी हार मिली कि इसके बाद पलटकर कभी दोबारा मुगलों ने अहोम साम्राज्य की तरफ देखा नहीं ।

कांग्रेस की सरकार ने औरंगजेब के रास्ते का कांटा होने की वजह से लचित बरफुकन को कभी वह सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे कम्युनिस्ट और जिहादी इतिहासकारों ने भी हमेशा लचित बोरफुकान को घृणा की नजर से देखा क्योंकि लचित बोरफुकान बहुत देशभक्त थे ।

लेकिन बीजेपी की सरकार केंद्र में आई तो सबसे पहले लचित बरफुकन के नाम से एनडीए (National Defence Academy) में 1 पदक देना शुरू किया गया । एनडीए में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले कैडेट को लचित बरफुकन गोल्ड मेडल अवार्ड दिया जाता है

युद्ध के ठीक पहले लचित बरफुकन को बहुत तेज बुखार आया था और वह बहुत बुरी तरह बीमार हो गए थे लेकिन इसके बाद भी वह यह सोच कर युद्ध लड़ने गए कि अगर वह युद्ध में नहीं जाएंगे तो उनके सैनिकों का मनोबल टूट जाएगा ।

आज इस खास मौके पर और लचित बोरफुकान की 400वीं जयंती पर पूरा देश और हम सभी राष्ट्रभक्त असम के इस महान देश प्रेमी को अपनी कोटि-कोटि श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

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