नियोग प्रथा क्या है ? क्या यह अभी भी प्रचलित है ?

प्राचीन काल में पति के संतानोत्पत्ति में असक्षम रहने अथवा जीवित न रहने पर, वंश को आगे बढाने के लिए पत्नी किसी अन्य से संबंध बनाकर संतान उत्पन्न किया करती थी। यही क्रिया नियोग कहलाती थी जिसने आगे चलकर एक प्रथा का रूप ले लिया था।। इसका बहुत ही सुंदर उदाहरण महाभारत ग्रंथ में मिलता है।

गंगा पुत्र भीष्म के कभी विवाह न कर आजन्म कुंवारा रहने की कसम खाने के कारण उनके पिता शांतनु का विवाह मत्स्य सुंदरी सत्यवती से हुआ था। इसमें यह शर्त थी कि सत्यवती का पुत्र ही राजगद्दी पर बैठेगा। सत्यवती की दो पुत्रवधुएं जब विधवा हो गईं और वंश को आगे बढाने वाला कोई न रहा तो सत्यवती ने अपने बडे पुत्र व्यास से जो शांतनु से विवाहपूर्व पाराशर ऋषि से संबंध बनाने पर उत्पन्न हुए थे, विनती की कि वह उनकी विधवा हुई पुत्रवधुओं को नियोग द्वारा संतान उत्पन्न करायें। इसी के परिणामस्वरूप ही धृतराष्ट्र व पांडु ने जन्म लिया था।

संतानोत्पत्ति की यह प्रथा तो अब नहीं है, लेकिन इसने अब एक नया रूप ले लिया है जिसे IVF (In Vitro Fertilization) कहा जाता है। इस विधि से आजकल बहुत सी स्त्रियां संतानोत्पत्ति में सक्षम हो रही हैं।

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