प्राइवेट वरदान या अभिशाप
भारत की सरकारी उपक्रम है (थी) हिंदुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड, इंडियन ड्रग एंड फार्मास्यूटिकल लिमिटेड। कई अन्य भी राज्य की दवा कंपनी जैसे RACL, UPDPL आदि। सब के सब बंद पड़ी हैं। हज़ारों एकड़ के जमीन में फैले खँडहर, ऋषिकेश, हैदराबाद, लखनऊ, जयपुर आदि में देखे जा सकते हैं। इन कम्पनी में सारी सुविधाएं उपलब्ध थीं। सरकारी फण्ड की कोई कमी नहीं। फिर भी इनका नतीजा ये कि देश को दवाई न दे पाईं। कोई एक पेटेंट नहीं इनके नाम, कोई इनकी दवा किसी के जुबान पर नहीं। कारण सरकारी नौकरी और व्यवस्था – जिम्मेदारी कोई नहीं। तनख्वाह और सारी सुविधाएं, रिटायर होने पर पेंशन – मरने के बाद बीवी को पेंशन। मस्त रही जिंदगी। फिर भी हड़तालों की भरंमार, यूनियन बाज़ी की दुकानों की भंडार, कामचोरी बेमिसाल, माल की चोरी अद्भुत और कमीशन का कोई अंत नहीं।

आज से 15 – 20 – 25 वर्ष पहले जो प्राइवेट कंपनी Lupin, CIPLA, Sun, Alkem, Nicholas, Dr. Reddy, Aurobindo आदि खुली इनसे कम फण्ड और सुविधा होते हुए भी आज विश्व में नाम कमा रही हैं। इनकी दवाइयाँ लोगों के जुबान पर है, इनके नाम पेटेंट हैं, इनके नाम रिसर्च बेस्ड प्रोडक्ट की भरमार है। इनकी महँगी दवाइयाँ लोग खरीद रहे हैं, दुगुने, तीनगुने, चुगने दाम पर….सरकारी नौकरों ने IDPL, HABL, UPDPL आदि को खा डाला जो उन्ही करदाता के पैसे से चलती थी जिनको उनकी दवाइयों की जरूरत थी…!!
करदाता लूट लिए गए, गरीब और किसान को लूट खाया इन सरकारी भ्रष्ट नौकरों नें मिल कर …


एक और कंपनी है HMT जो घड़ियाँ बनाती हैं। नैनीताल जाते समय काठगोदाम में रूककर किसी से भी इसके बरबादी की कहानी सुनिए। वहां काम करने वाले कर्मचारी घड़ियों के पुर्ज़े पीछे बहते नहर में फेंक देते थे। आगे कुछ दूर इनके दलाल उसको जाल से छान लेते थे। टिफ़िन बॉक्स, कागज़ों, मोज़ों, कमीज के कालर और ब्रीफ़केस में चुरा के ले जाते थे पुर्ज़े। कुछ बाहर घड़ी के दूकान वाले आधे दाम पर खरीद के पैसे दे देते थे। कुछ वापस सप्लायर के पास जो वही फिर से HMT को बेंच देता था …
यही हाल चण्डीगढ़ के पास पिंजौर में भी था HMT घङी का, आज सब बेरोजगार हुए बैठे हैं।
आज बड़े बड़े शोरूम में Titan, Citizen, Reebok, Fastrack, Omega और न जाने कितने ब्रांड झमाझम बिक रहे हैं। बड़ा सा कारखाना, सारी सुविधाएँ होते हुए भी HMT कोई घडी न ला पाई, समय के अनुसार quartz घड़ियाँ न बना पाई। और इन सरकारी नौकरों ने इसको बंद करा दिया …


एक कम्पनी और है ITI – Indian Telephone Industries. मॉडर्न इक्विपमेंट से सुसज्जित, हज़ारों एकड़ में फैली रायबरेली, मनकापुर आदि में फैक्ट्री लेकिन ये डिजिटल फ़ोन न बना सके। जहाँ दूरसंचार क्रांति भारत में आ रही थी वहीँ दूर संचार की इस सरकारी कंपनी को सरकारी नौकरों और यूनियनबाज़ों ने बंद करा दिया। इनकी R&D में उपलब्ध सुविधाओं से कुछ भी बन सकता था। आज भारत में अपने बनाये मोबाइल फ़ोन हो सकते थे लेकिन कमीशनबाज़ तथा घूसखोर सरकारी नौकरों, यूनियनबाज़ नेताओं ने इनको बंद करा दिया। ITI के बंद होने का नुकसान इतना बड़ा रहा कि BSNL को लैंडलाइन के लिए चीन में बने फ़ोन खरीदने पड़े। ITI का बंद होना मतलब भारत में चीन के बने फ़ोन और मोबाइल का हजारों-हजार  करोड़ से ऊपर का कारोबार। …


और भी बहुत सारे उपक्रम हैं NTC, Hinustan Latex, IPCL, UPTRON आदि … नाम देते देते मैं थक जाऊंगा और आप लोग पढ़ते पढ़ते थक जाएंगे ..

भारतीय रेल का इन सरकारी नौकरों ने क्या कबाड़ा कर रखा है वो दीखता ही है … किसी भी रैलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 1 के अलावा कोई भी ठीक नहीं है। फर्श उखड़े हुए, गन्दगी की भरमार, पानी की व्यवस्था नहीं, टॉयलेट नहीं, बिजली पँखे नहीं, बैठने को बेंच नहीं … यही व्यवस्था अभी तक दिया हैं सरकारी नौकरों ने … आपको मालूम होना चाहिए कि मंत्रालय बजट में सारी व्यवस्थाएं कराता है .. रेलवे के स्टोर में इन सुविधाओं के लिए धन और सामान भी आता हैं। बहुत सारे रेल कर्मचारियों के घरों पर लगे पंखे, AC, बल्ब इन्ही स्टोर से उड़ाए हुए होते हैं। ये लोग इसी पर इतराते हैं … इसी चोरी की व्यवस्था को बंद करके जब कुछ स्टेशन को प्राइवेट सेक्टर को व्यवस्था सुधारने को दिया जा रहा है तो बड़ा कष्ट हो रहा है …
सीट कवर के झोले बड़े मजबूत होते हैं … रोडवेज कर्मचारियों के हाथ में दीखते हैं …

यही हाल राष्ट्रीय जूट विनिर्माण निगम का रहा, राष्ट्रीयकरण के पश्चात जूट उद्दोग का भी यही हाट रहा. अधिकारीयों का लूट-खसोट तथा वामपंथी एवं अन्य यूनियन द्वारा अधिकारियों के साथ मिली भगत तथा तथाकथित मज़दूर नेताओं द्वारा कामचोरी एवं उद्दोग के कल-पुर्जों के साथ-साथ उत्पाद की धरल्ले से चोरी के कारण बंगाल एवं बिहार में स्थित यह उद्दोग भी बंद हो गया. उद्दोग के नौकरशाहों द्वारा भी बाजार के मांग के अनुरूप उत्पाद में परिवर्तन नहीं करना भी महत्वपूर्ण कारण रहा…………
और अंत में …. USSR को बरबाद करने वाली इसी ब्यवस्था का नक़ल हमने अपनाया जो भारतीय वामपंथीयों के द्वारा कांग्रेसियों को दी गयी बौद्धिक सलाह पर थी। जिस व्यवस्था ने USSR को बरबाद किया उस व्यवस्था से जितनी जल्दी छुटकारा पा लिया जाए उतना ही अच्छा … हमको जर्मनी, फ्रांस और जापान जैसी व्यवस्था लानी होगी …. सरकार व्यवसायी नहीं होनी चाहिए .. सरकार का काम व्यवस्था सञ्चालन और नीति नियमन का होना चाहिए उससे आगे कुछ नहीं, तभी देश की और जान मानस की तरक्की होगी … इस व्यवस्था से छुटकारा पाने के हर कदम पर वामपंथी चीखेंगे ही .. कांग्रेसी भी चीखेंगे .. चोर कम्युनिष्ट और समाजवादी जैसे असामाजिक लोग भी दहाड़ें मरेंगे .. इनकी परवाह न करते हुए हुए, इनको कुचलते हुए इनके पोषित व्यवस्था को ख़त्म करना ही अच्छा है…!!

𝔸𝕓𝕠𝕦𝕥 𝔸𝕣𝕥𝕚𝕔𝕝𝕖: 𝕆𝕡𝕚𝕟𝕚𝕠𝕟 𝕖𝕩𝕡𝕣𝕖𝕤𝕤𝕖𝕕 𝕚𝕟 𝕥𝕙𝕚𝕤 𝕒𝕣𝕥𝕚𝕔𝕝𝕖 𝕚𝕤 𝕤𝕠𝕝𝕖 𝕧𝕚𝕖𝕨 𝕠𝕗 𝕒𝕦𝕥𝕙𝕠𝕣, 𝕒𝕝𝕥𝕙𝕠𝕦𝕘𝕙 𝕒𝕦𝕥𝕙𝕠𝕣 𝕓𝕖𝕝𝕠𝕟𝕘𝕤 𝕥𝕠 ‘𝔹𝕄𝕊’ 𝕓𝕦𝕥 𝕧𝕚𝕖𝕨𝕤 𝕠𝕗 “𝔹𝕙𝕒𝕣𝕥𝕚𝕪𝕒 𝕄𝕒𝕫𝕕𝕠𝕠𝕣 𝕊𝕒𝕟𝕘𝕙” 𝕚𝕤 𝕤𝕠𝕝𝕖𝕝𝕪 𝕕𝕚𝕗𝕗𝕖𝕣𝕖𝕟𝕥. ℍ𝕠𝕨𝕖𝕧𝕖𝕣 “𝔹𝕄𝕊” 𝕚𝕤 𝕒𝕟 𝕆𝕣𝕘𝕒𝕟𝕚𝕫𝕒𝕥𝕚𝕠𝕟 𝕒𝕟𝕕 𝕒𝕦𝕥𝕙𝕠𝕣 𝕚𝕤 𝕒𝕟 𝕀𝕟𝕕𝕚𝕧𝕚𝕕𝕦𝕒𝕝.

  About Author: 37 वर्षों तक ग्रामीण बैंक में सेवा उपरान्त वरीय प्रबंधक पद से सेवानिवृत हैं विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े रहने के अतरिक्त भारतीय मज़दूर संघ में जिला स्तर से प्रदेश स्तर के विभिन्न नेतृत्व पदों का निर्वहन के साथ B.M.S. से सम्बद्ध All India Gramin Bank Officers’ Organisation में राष्ट्रीय सचिव का दायित्व निर्वहन किया है. भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा नियुक्त Chairman (Regional  Advisory Committee) Dattopant Thengari National Board for Workers’ Education and Development का अनुभव भी रहा है. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *