
जयसवाल गौरव: पद्मभूषण प्रोफेसर राजाराम शास्त्री की जीवनी
समाज सेवा महत्वाकांक्षाओं की सीढ़ी नहीं, बल्कि एक तपस्या है। इस तप की सिद्धी के लिए ‘कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ’ जैसा जज्बा होना चाहिए और, चाहिए सब कुछ त्यागकर फकीरी अपना लेने का हौसला। काशी विद्यापीठ के पूर्व कुलपति तथा वाराणसी के सांसद रहे प्रो. जायसवाल राजाराम शास्त्री के जीवन का भी यही फलसफा था। उनके हर दिन का एक-एक पल अध्ययन, अध्यापन, लेखन और स्वाध्याय के अलावा जनसेवा को समर्पित था।
*प्रोफेसर जायसवाल राजाराम शास्त्री का जीवन*
प्रोफेसर राजाराम शास्त्री का जन्म 04 जून 1904 को मीरजापुर जिले के चुनार तहसील के जमालपुर ग्राम में हुआ था। *उनके पिता महाबीर प्रसाद और दादा रायबहादुर ठाकुर जायसवाल थे।* उनका परिवार शिक्षा और समाज सेवा के प्रति समर्पित था, जिसका प्रभाव प्रोफेसर शास्त्री के जीवन पर गहरा पड़ा।
*स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान*
प्रोफेसर शास्त्री भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में निरंतर लगे रहने के कारण एक बार कठोर कारावास एवं दो बार नजरबंद भी रहे। उनकी देशभक्ति और संघर्षशीलता ने उन्हें एक सच्चे देशभक्त के रूप में स्थापित किया। वर्ष 1921 में उन्होंने डॉ राम मनोहर लोहिया के साथ कांग्रेस छोड़कर नवगठित सोशलिष्ट पार्टी में शामिल हो गए। बाद में पुन: 1961 में कांग्रेस से जुड़ गए और अपनी राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ाया।
*शिक्षा और पेशेवर जीवन*
प्रोफेसर शास्त्री ने काशी विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त की और वहीं पर अध्यापन कार्य किया। वह समाज कार्य विभाग के प्रोफेसर थे और इस विभाग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अमेरिका में शिकागो विश्वविद्यालय से समाज कार्य में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। 1926 में बतौर प्राध्यापक काशी विद्यापीठ में नौकरी शुरू की थी, जो उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण शुरुआत थी।
*काशी विद्यापीठ के कुलपति के रूप में*
1967 में काशी विद्यापीठ को डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलने के बाद, प्रोफेसर शास्त्री पहले औपचारिक कुलपति नियुक्त हुए। यह उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसने उनकी नेतृत्व क्षमता और शैक्षिक योगदान को मान्यता दी।
*राजनीतिक जीवन*
प्रोफेसर शास्त्री ने 1971 में वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने दिग्गज नेता सत्यनारायण सिंह को शिकस्त देकर लोकसभा का सफर तय किया। इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने उनके समर्थन में एक विशाल सभा में भाग लिया था, जो उनके प्रति जनता के समर्थन और विश्वास का प्रतीक था। वह 1971-1977 तक लगभग छह वर्षों तक लोकसभा के सदस्य रहे। वह कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे और पं. कमलापति त्रिपाठी उनके अच्छे मित्र थे।
*अंतर्राष्ट्रीय यात्राएं*
प्रोफेसर शास्त्री ने विभिन्न शैक्षिक और सांस्कृतिक मंडलों के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में अमेरिका, सोवियत संघ, इंगलैंड, फ्रांस, जर्मनी, जापान एवं इंडोनेशिया आदि अनेक देशों की यात्राएं की। इन यात्राओं ने उन्हें विश्व के विभिन्न समाजों और संस्कृतियों को समझने का अवसर प्रदान किया और उनके ज्ञान को व्यापक बनाया।
*योगदान और सम्मान*
प्रोफेसर शास्त्री ने समाज और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें “मन के भेद”, “व्यैक्तिक मनोविज्ञान”, “समाज विज्ञान”, “सोशल वर्क ट्रेडिशन्स इन इंडिया” और “स्वप्न दर्शन” शामिल हैं। समाज विज्ञान और स्वप्न दर्शन के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से श्रेष्ठ लेखक के रूप में सम्मानित भी किया गया। इसके अलावा, उन्हें भारत सरकार द्वारा 1991 में प्रतिष्ठित *पद्मभूषण अवार्ड* से सम्मानित किया गया, जो उनके योगदान को उच्चतम स्तर पर मान्यता देने का प्रतीक था।
*व्यक्तिगत जीवन*
प्रोफेसर शास्त्री का निधन 21 अगस्त 1991 को 87 वर्ष की आयु में हुआ। उनके पुत्र प्रोफेसर गिरीश कुमार शास्त्री और पुत्रवधु प्रोफेसर गायत्री शास्त्री दोनों काशी विद्यापीठ से सेवानिवृत हुए हैं।
आप विद्यापीठ स्थित आवास में ही रहे और वहीं अंतिम सांस ली।
*जायसवाल गौरव*
प्रोफेसर राजाराम शास्त्री की जीवनी आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि समाज सेवा एक तपस्या है, जिसमें धैर्य एवं समर्पण की आवश्यकता है। हमें उनके आदर्शों को अपनाकर समाज के लिए काम करना चाहिए। दुख की बात है कि *जायसवाल समाज अपने विभूतियों का जिक्र नहीं करता है, हमें उनके योगदान को याद रखना चाहिए तथा उनके आदर्शों को अपनाना चाहिए।*
✍️ *©अशोक चौधरी “प्रियदर्शी”*
👉 कटिहार, बिहार
संपर्क: 9431229143
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