आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आगे बढ़ने के लिए स्थानीयता पर जोर देना होगा। यानी लोकल को वोकल होना पड़ेगा। आत्मनिर्भरता का अभियान पांच स्तंभों पर टिका होगा: अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, प्रणाली, जीवंत लोकतंत्र और मांग। आत्मनिर्भरता का मतलब दुनिया से कनेक्शन तोड़ लेना नहीं है। बल्कि ऐसे उत्पाद जिसका टेक्नोलॉजी हमारे पास उपलब्ध है उसका उपयोग हम करें और जो टेक्नोलॉजी हमारे पास नहीं है उस श्रोत को भी साथ लेकर चलना है, हाँ उस टेक्नोलॉजी को विकसित करने का प्रयास भी हमें करते रहना है.
प्रधानमंत्री ने भारत को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के लिए ‘वोकल फ़ॉर लोकल’ का मंत्र दिया है। भारतवासियों के लिए भी स्वावलम्बन की मुराद उतनी ही पुरानी है, जितना पुराना हमारा इतिहास है, लेकिन अब से पहले देश के शीर्ष स्तर से भारत की आत्मनिर्भरता को राष्ट्रीय मुहिम बनाने की पेशकश पहले कभी नहीं हुई। इसीलिए आत्मनिर्भरता के मंत्र का महत्व वोकल फ़ॉर लोकल के नारे के साथ बेहद बढ़ जाता है।
वास्तव में , दुनिया का हरेक समाज, हरेक देश स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने और अपने उत्पादों के ज़्यादा से ज़्यादा निर्यात का सपना देखता है, और फिर इस सपने को साकार करने के लिए ही अपनी नीतियाँ बनाता है। नीतियों को लागू करता है। हमारे देश का भी ये सपना पूरा हो और हर कोई पूरे समर्पण के साथ स्वदेशी पर गर्व करने और इसे बढ़ावा देने के सपने को साकार करने में पूरी ताक़त से जुट जाए, इसके लिए ही प्रधानमंत्री ने देश को आत्मनिर्भर और वोकल फ़ॉर लोकल के दो मंत्र दिये हैं। दोनों मंत्र परस्पर एक-दूसरे के जुड़े हुए हैं, अनुपूरक हैं।
आत्मनिर्भरता का सीधा सम्बन्ध उत्पाद की गुणवत्ता से होता है। प्रायः यह माना जाता है कि नये-नये उत्पादों और इनकी गुणवत्ता के बल पर ही विकसित देश विश्व बाज़ार में अपना दबदबा स्थापित रखते हैं। इसीलिए,भारत भी अपने शोध, अनुसंधान, मेहनत और लगन से ऐसी गुणवत्तापूर्ण उत्पाद तैयार करे जिससे एक ओर तो हमारी आयात पर निर्भरता कम हो सके और दूसरी ओर, विकसित देशों के उत्पादों की तरह भारतीय उत्पादों की भी दुनिया भर में माँग हो और हम भी एक महत्वपूर्ण निर्यातक देश बन सकें।
बात चाहे मानव संसाधन की हो या अन्य किसी भी उत्पाद की, सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धा गुणवत्ता को ही लेकर होती है। यदि हम सिर्फ़ उन प्राकृतिक उत्पादों को ही देखें जिन्हें कृषि क्षेत्र उत्पादित करता है तो भी हम पाते हैं कि बाज़ार में सिर्फ़ बेहतर वस्तुओं की ही माँग होती है। हल्की या कमज़ोर क्वालिटी के सामान को कभी ग्राहक नहीं मिलते। जबकि उत्कृष्ट सामान के लिए बेहद ऊँचे दामों पर भी क्रेता मिल जाते हैं।
सभी विकासशील देशों की तरह भारत की भी यदि कोई सबसे बड़ी चुनौती है तो वो है हमारे उत्पादों को क्वालिटी को और बेहतर या विश्वस्तरीय बनाना। इसके लिए देश में प्रचुर संसाधन उपलब्ध हैं। प्रकृत्ति ने हर प्रकार से भारत को सम्पन्न बनाया है। भारत यदि हर तरह की जलवायु और भौगोलिक क्षेत्र से सम्पन्न है तो हमारा आकार, हमारी आबादी, हमारी धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषायी विविधता भी अद्भुत है। अब ज़रूरत केवल इस बात की भारतीय जनमानस में गुणवत्ता को लेकर वैसी चाहत पैदा हो जिससे हमारे उत्पादों की दुनिया भर में माँग हो। यही आत्मनिर्भर और वोकल फ़ॉर लोकल के मंत्रों के पीछे की की सोच है।
गुणवत्ता का सम्बन्ध केवल औद्योगिक उत्पादों से ही नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र से होता है, क्योंकि समाज की हरेक गतिविधि के बीच परस्पर निर्भरता होती है। ज़िन्दगी के हरेक पहलू की क्वालिटी में सुधार लाकर ही हम आत्मनिर्भरता का सपना साकार कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर यदि हम कोरोना संकट से पैदा हुए हालात पर ग़ौर करें तो पाएँगे कि सबसे बड़ा संकट अर्थव्यवस्थाओं में माँग-पक्ष के कमज़ोर पड़ने का है।
इसीलिए अभी जितनी शक्ति हमें अपनी सप्लाई चेन और स्टोरेज जैसी आधारभूत सुविधाओं को मज़बूत बनाने पर लगानी है, उतना ही शक्ति अर्थव्यवस्था में माँग-पक्ष को मज़बूत करने, इसमें तेज़ी लाने के उपाय अपनाने पर भी रखना होगा। ऐसा करके ही उत्तम क्वालिटी के उत्पादों को बाज़ार तक पहुँचने के बाद भी उपभोग और उचित मूल्य के लिए नहीं तरसना पड़ेगा। बाज़ार में माँग की कमी का सबसे भारी नुकसान किसानों को होता है क्योंकि उनकी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था तो आज भी केवल सीमित अनाजों के मामले में ही है। अन्य उपज को उचित मूल्य मिलने का सीधा सम्बन्ध माँग से है और माँग की निर्भरता लोगों की उस क्रय-शक्ति या आमदनी से होती है जिसे वो बाज़ार में खर्च करते हैं। लिहाज़ा, माँग से पहले हमें लोगों की आमदनी बढ़ाने या रोज़गार के नये अवसर विकसित करने होंगे।
भारत में हस्तशिल्प और आयुर्वेदिक उत्पादों की अपार सम्भावना है। इस सेक्टर के उत्पादों को भी अच्छी क्वालिटी, ब्रॉन्डिंग और मार्केटिंग की चुनौती से उबरना पड़ेगा। कृषि क्षेत्र भारत का सबसे परम्परागत और बुनियादी क्षेत्र है। इसकी उत्पादकता और अर्थव्यवस्था में इसका योगदान सबसे कम है, हालाँकि इस पर बहुत बड़ी आबादी आश्रित है। कृषि से जुड़ी हमारी आबादी का अनुपात भी तभी घट पाएगा जबकि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों जैसे औद्योगिक सेक्टर, सर्विस सेक्टर और आधारभूत सेक्टर के पहिये भी तेज़ी से घूम रहे हों और इनकी भी माँग में लगातार वृद्धि होती रहे।
ध्यान रहे कि जब भारतीय कृषि क्षेत्र की उत्पादकता भी विकसित देशों जैसी हो जाएगी तो भी ऐसा नहीं हो सकता कि हमारे उत्पाद विश्व बाज़ार पर छा जाएँगे और हर जगह भारतीय सामानों की ही माँग होगी। होगा यह कि तब हमें उन देशों से और कड़ी प्रतिस्पर्धा मिलेगी जिनके उत्पादों को अभी वैश्विक बाज़ार मिल रहा है। लिहाज़ा, चाहे कृषि क्षेत्र हो या अन्य सेक्टर, यदि हम स्वयं को मज़बूत बनाना चाहते हैं तो हमें उत्कृष्ट क्वालिटी का सामान प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर बनाकर दिखाना होगा। इसीलिए, चाहे बात आत्मनिर्भरता की हो या वोकल फ़ॉर लोकल की, हर चुनौती की दवा सिर्फ़ एक ही है और वो है गुणवत्ता !
प्रधानमंत्री के मंत्रों को सफल बनाने के लिए हमें भारतीय समाज में बड़ा बदलाव पैदा करना होगा। स्वच्छता की तरह हमें गुणवत्ता की महिमा को जन-जन तक पहुँचाकर उसे जनमानस का संस्कार बनाना होगा। हम जिस मानव संसाधन से सम्पन्न हैं उसकी भी क्वालिटी ऐसी करनी होगी कि रोज़गार के बाज़ार में लोगों की माँग हो। बेरोज़गारों को कौशल विकास से ही रोज़गार पाने लायक बनाया जा सकता है।
मानव संसाधन से जुड़ी किसी भी चुनौती की तह में जाने पर हम पाते हैं कि जो कुछ भी हमारे देश में तैयार या उत्पादित किया जाता है, उसकी मात्रा भले ही कम या अधिक हो, लेकिन गुणवत्ता की प्रतिस्पर्धा में भारतीय उत्पादों का डंका अभी नहीं बजता। इसीलिए 136 करोड़ की आबादी वाले भारत में ऐसे कई विश्वस्तरीय उत्पादों का होना बहुत आवश्यक है जिसे हमसे ख़रीदने के लिए दुनिया मज़बूर हो। शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भी हमें विश्वस्तरीय मानकों पर और तेज़ी से अपने पंख फैलाने होंगे। हालाँकि, कुछेक क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ हमारे शोध और अनुसंधान ने उत्कृष्ट क्वालिटी का प्रदर्शन किया है। जैसे, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी, स्पेस टेक्नोलॉज़ी में इसरो ने शानदार उपलब्धियाँ प्राप्त किया हैं। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी हमारी उपलब्धि गर्व करने लायक है।
ये उपलब्धियाँ शिक्षा की क्वालिटी से सीधे जुड़ी हुई हैं। इसीलिए आबादी के अनुपात में हमें उत्कृष्ट शैक्षिक संस्थानों की संख्या को बहुत बढ़ाना आवश्यक हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में भी हम ज़्यादातर उच्च तकनीक वाले उपकरणों के लिए आयात पर ही निर्भर हैं। उदारीकरण की नीतियाँ अपनाने बाद भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर भले ही आत्मनिर्भर दिखने लगा लेकिन इस सेक्टर की भी ज़्यादातर कम्पनियाँ बुनियादी तौर पर विदेशी ही हैं। इसी तरह, रक्षा और संचार जैसे बड़े सेक्टरों में भी हमारी आयात पर ही अतिशय निर्भरता है। इन्हीं क्षेत्रों को आत्मनिर्भरता और वोकल फ़ॉर लोकल की सबसे ज़्यादा आवश्यकता है।
यही हाल, फ़ार्मा सेक्टर का भी है। दवाईयों का भारत उत्पादक तो बहुत बड़ा है लेकिन इसके कच्चे माल का हमें भारी पैमाने पर आयात ही करना पड़ता है। लिहाज़ा, इस क्षेत्र में भारतीय कम्पनियों के पास अपार सम्भावना है। स्पष्ट है कि भारत को यदि वास्तव में आत्मनिर्भर बनकर दिखाना है, वोकल फ़ॉर लोकल के मंत्र को साकार करना है तो हमें क्वालिटी की उपासना को अपना संस्कार बनाना ही होगा। भारतीय समाज के सम्पन्न वर्ग को क्वालिटी की सबसे ज़्यादा चाहत पैदा करनी होगी, क्योंकि किसी भी समाज को बदलने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी इसके सम्पन्न वर्ग पर ही होती है। सम्पन्न वर्ग को ही अपने आय का वितरण इस तरह करना होगा कि उसके लिए काम करने वाले लोगों की आमदनी ज़्यादा से ज़्यादा हो सके।
इसीलिए, दुनिया के हरेक उन्नत समाज की तरह भारत में भी क्वालिटी के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन या अभियान का होना सबसे ज़रूरी है। प्रधानमंत्री जी के मंत्रों ने इसका बिगुल बजा दिया है क्योंकि नये शोध और उत्कृष्ट क्वालिटी की संस्कृति के पनपने तक भारत किसी नये बाजार में नहीं जा सकता। शोध और क्वालिटी का कोई छोटा मार्ग नहीं हो सकता। क्वालिटी कभी रातों-रात हासिल नहीं होती। इसे प्राप्त करने में भी पीढ़ियाँ खप जाती हैं। सुखद ये है कि भारत अब सपने साकार करने के लिए कमर कसकर जुट रहा है।
अशोक चौधरी "प्रियदर्शी"
Ashok Kumar Choudhary is a retired banker who has wide experience in handling rural banking, agriculture and rural credit. He is also a Trade Unionist and has held a leadership position in Bharatiya Mazdoor Sangh, trade wing of RSS and formaly he has been the chairman of Regional Advisory Committe, DT National Board of Workers Education. He in past he hold the post of Joint State President of National Human Rights Organization.
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