कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक:भोगा यथार्थ 3

 

रमेश उपाध्याय

 

।।आगे बढ़ने से पहले मैं पुनः आग्रह कर रहा हूँ कि यहाँ मैंने बैंक के संघर्ष में केवल अपने प्रयास एवं श्रद्धेय अध्यक्षों के कार्यकाल के महत्वपूर्ण सन्दर्भों का  उल्लेख औकिया है । बैंक के किसी भी साथी का नाम तक नहीं आया है ।साथ ही केवल सकारात्मक पक्ष का उल्लेख किया गया है ।।        
 सात वर्षों की लम्बी अवधि सहरसा में व्यतीत करने के बाद अप्रैल 1988 में प्रधान कार्यालय, पूर्णिया पहुँचा। जिस दिन योगदान दिया उस दिन पूर्णिया जिला के शाखा प्रबन्धकों की बैठक हो रही थी ।मैं अध्यक्ष श्री आर एन बोधनकर साहब से  मिलने उपर सभागार में गया तो देखते ही बोले कि उपाध्याय जी यही आपका विभाग है , सम्हालिये । मैं उस दिन समीक्षा बैठक में व्यस्त रहा ।

योजना व विकास विभाग का प्रभार लेने के बाद सहकर्मियों से विमर्श में ज्ञात हुआ कि विभाग मे शाखा विस्तार, परिपत्र जारी करना, जिलों की बैठकों में भाग लेना, शाखा प्रबन्धकों की त्रैमासिक बैठक आयोजित करना , वार्षिक  बजट बनाना आदि कार्य होता था ।जमा योजनायें लेखा विभाग से बनती थीं ।

 हमारे अध्यक्ष आदरणीय श्री बोधनकर साहब बड़े सुलझे  हुए, स्पष्टवादी,  समझदार व अध्ययनशील व्यक्ति थे ।सोच समझ कर स्वयं  निर्णय लेते थे ।अच्छे वक्ता होने के कारण बैठकों में प्रभावी भूमिका निभाते  धे ।मैंने अनुभव किया कि वे पूर्णिया जिला की अधिकतर बैठकों में भाग लेते थे ।एक दिन उनके वेश्म में मैं और वो थे ।किसी बात के क्रम में बैठकों पर चर्चा हुई ।उस दिन के बाद वे सभी जिलों की जिला परामर्शदात्री समिति कीं बैठकों में ही भाग लेते थे या किसी विशेष बैठक में ।शेष में वहाँ के क्षेत्रीय प्रबन्धक ही भाग लेते थे या मैं ।

काम कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ता था ।मुझे तिथि तो याद नहीं लेकिन प्रधान कार्यालय आने के कुछ दिनों बाद ही सेवा क्षेत्र अवधारणा लागू करने का रिजर्व  बैंक से निर्देश मिला जो विस्तार से परिभाषित था ।शनिवार का दिन था, मुझे सहरसा जाना था क्योंकि परिवार अभी वहीं था।मुझे वो परिपत्र देकर बोधनकर   साहब बोले कि इसका हिन्दी अनुवाद सोमवार को ही चाहिए ।मैंने  उन्हेंआश्वस्त किया ।सहरसा जाने के क्रम में ट्रेन में ही पढ़ कर लिखते गया ।सोमवार को  बिना किसी संशोधन के परिपत्र जारी हो गया ।

सेवा क्षेत्र के पुनर्निधारण  में बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा ।बड़े भाग दौड़ के बाद शाखाओं का सेवा क्षेत्र व्यवस्थित हो पाया ।सेवा क्षेत्र अवधारणा के अनुसार संसाधन की उपलब्धता केआधार पर  साख योजना बनानी थी । बैंक में संसाधन के अभाव (resource crunch)  का प्रारम्भ हो गया था ।बैठकों में वसूली से ही समीक्षा शुरू होती थी और इसी  में अधिकतर समय चला जाता था ।कुछ लोग तनाव में आ जाते थे तो कुछ थक जाते थे ।जमा  कीं समीक्षा विधिवत नहीं हो पाती थी ।मैंने इस ओर बोधनकर साहब का ध्यान भी खींचा लेकिन वैसे ही कुछ दिन  चला ।क्षेत्रीय प्रबन्धकों की एक  बैठक में मैंने एक नोट जमा की स्थिति पर दिया ।उसपर वो बस ‘it is an eye opener ‘ लिखे और तभी से जमा कीं समीक्षा से बैठकों की शुरुआत होने लगी  ।

मैं तो सांस्थिक जमा से सहरसा में शाखाओं का लक्ष्य पूरा कराने में सहयोग करता रहा था इसलिए वहाँ ही मेरा ध्यान आम जमा और सांस्थिक जमा को अलग अलग कर देखने पर गया था ।मैंने इसका भी प्रस्ताव दिया था। तबसे इसी आधार पर जमा की समीक्षा शुरू हुई ।

बोधनकर साहब की एक विशेषता थी कि स्थानांतरण के मामले में गम्भीर रहते थे ।किसी व्यक्ति के बारे में जानना होता तो गाड़ी में चलते चलते जानकारी लेते थे लेकिन क्यो ये वही जानते थे । उन्होंने एक Central Management Committee (CMC)का गठन किया था जिसका संयोजक मुझे बनाया ।

प्रधान कार्यालय के सभी वरीय प्रबन्धक व महाप्रबंक इसके सदस्य थे।महत्वपूर्ण विषयों पर फैसला इसीमे लिए जाते थे ।विभिन्न  विभागों की प्रगति  ,शाखाओं  की समस्या पर भी मन्थन होता था ।याद  होगा कि बिना अध्यक्ष कीअवधि में इसी CMC ने बैंक का संचालन किया था ।

प्रयास के बावजूद बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में जमा व वसूली दोनों में कमी से संसाधन की स्थितिअच्छी नहीं थी ।फलतः वित्तायन  नियंत्रित करना पड़ा । श्री बोधनकर साहब के कार्यकाल में बैंक की छवि अच्छीबनी रही ।

  23-9-1989 को श्री जयन्त मोइत्रा  ने अध्यक्ष का प्रभार लिया ।अपने जीवन में मैने बहुत भद्रजनों को देखा है लेकिन इतने भद्र,अनुशासित, सादगी भरा व मितव्ययी जीवन जीने वाले बैंकर  से पहली बार मिला था ।इनकी माँ भी साथ रहतीं थी । वे अंग्रेजी माध्यम से स्नातक थीं ।इनके स्वर्गीय  पिता कोलकाता में कभी बैरिस्टर थे ।इनके कार्यकाल में मैंनेअनुभव किया कि घर के मुखिया को मृदुभाषी व सरल नहीं होना चाहिए ।साथ ही मुँह से दबंग भी होना चाहिए ।

मोइत्रा साहब सितम्बर अन्त से कार्य शुरू किये । एक दो माह विभागों को समझने व शाखा-भ्रमण में  गया ।तब तक जनवरी माह से साख योजना बनाने का संघष॔ शुरू हुआ ।संघर्ष इसलिए कि संसाधन आधारित साख योजना बनानी थी और संसाधन कम थे हमारे पास ।इसे हर जिले की जिला परामर्शदात्री समिति से पास कराना बड़ा कठिन था क्योंकि हमारा बैंक पूर्व में बहुत  वित्तायन करता रहा था ।हर जिला की बैठक में अध्यक्ष व क्षेत्रीय प्रबन्धकों  के साथ  मैंने भाग ले कर इसे पास तो करा दिया लेकिन मन में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से आया कि ऐसा कब तक चलेगा ।                                                     

  विचार करनें के बाद दो नयी जमा योजनायेंKVIP व एक अन्य लागू करने के साथ जमा संग्रहण पखवाडा मनाया गया ।योजनाबद्ध ढंग से शाखाओं केप्रयास के कारण जमा में अच्छी बृद्धि हुई । एक बात स्पष्ट हो गयी थी कि बिना बड़े जमाकर्ताओं को जोड़े जमा में अपेक्षित बृद्धि सम्भव नहीं थी ।मैंने अध्यक्ष की सहमति से कुछ बैंकों की दैनिक जमा योजनाओं का अध्ययन किया ।मेरा ख्याल था कि बड़े जमाकर्ता बैंक आ नहीं पाते और छोटे जमाकर्ताओं से सम्पर्क कीआवश्यकता थी ।ऐसे में दैनिक जमा योजना उपयोगी लगी फलतःअपनेअनुरूप  ‘कोशी अल्प बचत  जमा योजना ‘ बना कर निदेशक मंडल के विचारार्थ प्रस्तुत किया  ।पहली बैठक में इसपर चर्चा के दौरान मुझे बुलाया गया ।मैंने बैंक की स्थिति और इसकी जरूरत बताया ।मुझे बैंकों में इस योजना में बढ़तीधोखाधड़ी से बचने का उपाय ढूंढने की सलाह दी गयी ।सोचते सोचते स्टाफ गारन्टी की बात समझ में आयी । मोइत्रा साहब को बताया तो सहमत हुये ।तदनुसार अगली बोर्ड बैठक में रखे प्रस्ताव पर फिर मुझे  बुलाया गया ।मेरे स्टाफ गारन्टी व पर्यवेक्षण  के प्रस्ताव से सहमति बनी ।इस तरह से योजना का शुभारंभ हुआ । 

मोइत्रा साहब के ही कार्यकाल में करीब 35/40 अभिकर्ता रखे जा चुके थे ।एक वर्ष मे ही ग्राहको की संख्या में काफी बृद्धि हुई । इस योजना के कारण बड़े बड़े जमाकर्ता जुड़े, माँग ॠण में बृद्धि हुई और हजारों  की संख्या में खाता खुले ।अधिकतर अभिकर्ताओं की मेहनत के कारण बहुत शाखाओं की नगदी मंगाने कीआवश्यकता कम हो गयी ।बैंक ने भी इनके भविष्य के बारे में सोच कर इनके मासिक कमीशन का 10% उनके KVIP खाते में जमा करने की व्यवस्था किया जिससे सक्षम न रहने पर वे एक बड़ी राशि के साथ बिदा होसकें।ये तोअभिकर्ता बन्धु ही आज बता सकते हैं कि वे कितनी सुखद स्थिति में हैं ।जब हम सुनते हैं किअधिकतर अभिकर्ता आयकर देते हैं और किसी का बच्चा मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहा है, कोई  बैंक में  पी- ओ – बन गया है तो गर्व होता है ।आज भी लगभग 60 शाखाओं में यह योजना सफलतापूर्वक चल रही है ।

मोइत्रा साहब के कार्यकाल में जमा में काफीबृद्धि हुई, वसूली में भी सुधार हुआ,पदोन्नति भी हुई किन्तु औद्योगिक अशान्ति भी हुई ।अशान्ति के कारणों की चर्चा करना उचित नहीं लगता क्योंकि हम सकारात्मक और प्रियकर संदर्भों की ही चर्चा करने को संकल्पित हैं ।ऐसे तो अभिलेख में उनका कार्यकाल 31-12-93 तकदिखाया गया है लेकिन वे 1993 के उत्तरार्ध में  कभी चले गये व बाद में स्तीफा दिए थे।

मोइत्रा साहब के जाने के बाद 23-8-94 तक लगभग 13 माह कीअवधि में बैंक बिना अध्यक्ष के रहा ।वही CMC जिसका गठन श्री बोधनकर साहब कर गए थे द्वारा बैंक का संचालन सुचारू ढ़ग से हुआ ।प्रधान कार्यालय के सभी वरीय प्रबन्धकों  के लिए एक सुअवसर मिला था एकजुट होकर कुछ करने का ।इसे सभी ने अनुभव किया और शाखाओं को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया गया ।हमने कोई काम रूकने नहीं दिया । शाखा प्रबन्धकों की त्रैमासिक बैठकें पूर्ववत होती रहीं ।जमा संग्रहण पखवाडा व वसूली पखवाडा का आयोजन कर दोनों को गति प्रदान की गई ।फलतः दोनों मानकों मेंअप्रत्याशित बृद्धि हुई।निश्चित रूपसे शाखाओं के  साथियों ने जरूरत को समझ कर संकल्प के साथ प्रयास किया था।केंद्रीय प्रबन्धन समिति के संयोजक होने के कारण मेरा गुरुतर दायित्व था बिखरी स्थिति में वरीय प्रबन्धकों व क्षेत्रीय प्रबन्धकों को एक साथ ले चलने का ।सामूहिक सप्रयास  कितना सफल रहा ये या तो परिणाम बता सकते है या उस समय के  सहकर्मी ।उस अवधि में बैंक में एक महाप्रबंधक भी थे  श्री एम के साहा ।वे भी बहुत भद्र व मॄदुभाषी थे।उन्होंने हर प्रकार से हमारा साथ दिया था ।   

पटना में रिजर्व बैंक, नवार्ड व सेन्ट्रल बैंक   की हर बैठक में हम अध्यक्ष की पदस्थापना  की बात करते थे तो उस अवधि के कार्य की प्रशंसा कर हमे शान्त कर दिया जाता था ।इसी अवधि में रिजर्व बैंक से एक परिपत्र आया जिसमें अलाभकर शाखाओं को अच्छे व्यवसाय वाले  केन्द्रों पर पुनर्स्थापित करने का निदेश था।विश्वास करें मैंने परिपत्र को  गौर से कई बार पढ़ा ताकि अधिकाधिक शाखाओं का पुनर्स्थापन किया जा सकें ।हमारे लिए एक अद्भुत अवसर था यह।केंद्रीय प्रबन्धन समिति की बैठक में हमने इसपर चर्चा किया तो सभी ने सहमति जताई व अलाभकार शाखाओं के चयन की प्रक्रिया शुरू हुई।हमारे पास ऐसी शाखाओं कीं कमी तो थी नहीं, समस्या थी किन केन्द्रों पर ले जाया जाये ।

परिपत्र के आधार पर मैं तो समझ गया था कि न प्रखण्ड न जिला पूरे कार्यक्षेत्र  में कहीं भी हम शाखाओं को पुनर्स्थापित कर सकते थे ।हमारे ही बहुत साथी इसपर विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे ।बाद में तमघट्टी शाखा ,अररिया  को मथुबनी, पूर्णिया  में लाने से यह भी सही  साबित हो गया ।लगभग 45/46 शाखाओं के पुनर्स्थापन को CMC से सम्पुष्ट करा रख दिया गया ।

एक दिन पता चला कि सेन्ट्रल बैंक के आंचलिक कार्यालय , पटना में पदस्थ श्री एन के गुप्ता को अध्यक्ष हेतु  नामित किया गया है ।बस, कुछ साथी पटना भ्रमण कर सम्पर्क बढ़ाने लगे ।गुप्ता जी को पुरी जानकारी पटना में ही मिल गई ।

 24 -8-1994 को श्री गुप्ता जी ने अध्यक्ष का प्रभार लिया ।पहली ही भेंट में हम दोनों एक-दूसरे कोसमझ रहे थे ।पहली  बोर्ड की बैठक में शाखाओं  पुनर्स्थापन का परिपत्र  व इस हेतु चयनित शाखाओं कीं सूची  व अध्यक्ष रहित अवधि में हुए खर्च को  विचारार्थ प्रस्तुत किया गया ।ये दोनों प्रस्ताव मेरे विभाग से ही दिए गए थे ।गुप्ता जी की यह पहली बैठक थी,क्षेत्र के बारे में भी जानकारी नहीं थी इसलिए पुनर्स्थापन के मामले में समस्या आ रही थी ।वे बैठक से बाहर आकर बोले कि बोर्ड बैठक में  वे मुझे  बुलायेंगे । मै तैयार था ही ,गया  ।  परिपत्र व बैंक की जरूरत पर चर्चा के साथ साथ इस सुअवसर का लाभ उठाने का आग्रह किया । माननीय निदेशक गण सहमत हुये एवं बोले कि इस बैठक में अपनी सूची में से दस नाम आपही टिक करिये ।आग्रह करते करते मैंने 16 या 20 शाखाओं का नाम  पहली बैठक में टिक किया जो सम्पुष्ट हुआ ।हमारी मेहनत को पंख लग गए ।अगली  दो बैठकों में सभी चयनित केन्द्र सम्पुष्ट हो गये ।हाँ,जिला बदल वाली शाखा के प्रस्ताव पर फिर बोर्ड में मुझे बुलाया गया यह आश्वस्त होने के लिए कि यह सही है न ।खैर, रिजर्व बैंक से लाईसेंस आ जाने के बाद मुझे भी राहत मिली ।                              

  समस्या यहीं खत्म नहीं हुई ।सातों जिलों की जिला परामर्शदात्री समिति से प्रस्ताव को पारित कराना था । व्यावसायिक बैंकों के रवैये से परिचित था मैं लेकिन  जिला प्रशाशन व बैंक प्रतिनिधियों से अच्छे सम्बन्ध के कारण अधिकतर प्रस्ताव पारित हो गये ।अररिया व कटिहार में कुछ समस्यायें आयीं जो बाद में समाप्त हुईं ।अगस्त 1996 में मेरे स्थानांतरण तक बहुत शाखाओं का पुनर्स्थापन अच्छे केन्द्रों पर हो चुका था ।जमा में ही नहीं पूरे कारोबार मेंअपेक्षित बृद्धि हुई । यह   बता दूँ कि सबसे अधिक व अच्छे केन्द्रों पर पुनर्स्थापन कोशी में ही हुआ था । गुप्ता साहब में एक खास गुण था कि वो अच्छे सुझावों को बेझिझक मान लेते थे और अपनी भूलों को भी स्वीकार कर लेते थे ।लगभग दो वर्षों में वे सबको समझ तो गये थे लेकिन अपनी अपनी मजबूरी होती है ।शुरू से ही  हमसे तो मतान्तर रहा ।एक दिन मैंने आग्रह किया कि मेरा स्थानांतरण कर दें ।सुनकर थोड़ी देर चुप लगा गए ।फिर बोले मुझे आपसे कोई असुविधा नहीं है ,यहीं रहिये ।मैंने स्पष्ट किया कि प्रधान कार्यालय में मैं आठ साल से अधिक समय से कार्यरत हूँ ,कोई हद होती है । दूसरे दिन मैं अवकाश में चला गया । दो दिन बाद किसी को भेजकर बुलाये ।मै गया तो वे नीचे ही टहल रहे थे बोले कि जाइये, आपका अररिया कर दिया ।आप तो जानते ही हैं कि वो कैसा क्षेत्र है ,न कोई  जिला के पदाधिकारियों से समन्वय है न अन्य से ।   वहाँ  के राजनीतिक हालात कैसे हैं आप जानते ही हैं ।मैंने उन्हें धन्यवाद देते हुए बस इतना ही कहा कि उस क्षेत्र की चिंता नहीं करें,जो भी है अब  मेरी जबाबदेही है ।             

    इस तरह आठ वर्ष तीन माह बाद मैं प्रधान कार्यालय से अररिया क्षेत्र के लिए विदा हुआ । यहाँ जाते जाते यह बता दें कि अररिया जानेके दस दिनों के अंदर जिला से समन्वय बहुत बढ़िया हो गया यहाँ तक कि कुछ दिनों के भीतर ही उसी जिला में मुझे फोन कर कहा गया कि अपने शाखा प्रबन्धक को भेज दें,खाता खोलना है ।स्व  शिव लाल जी जिला पदाधिकारी के निवास पर जा कर MP–LAD का खाता खोल कर एक करोड़ रुपये का चेक लेकर आये ।एक करोड़ की जमा की राशि बैंक को  पहली बार मिली  थी ।अररिया के संघर्ष का यथार्थ अगले अंक में ।
चलते चलते मैं बैंक के उन साथियों व बैंक से  बाहर के शुभचिंतकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने संघर्ष के कठिन समय में मेरा साथ दिया था ।उनके प्रति मेरे मन में आज भी वही सम्मान है ।
                                                    क्रमश: ———–

10 thoughts on “संस्मरण: रमेश उपाध्याय जी भाग 4”
  1. आपकी इस असाधारण प्रतिभा के ,जो भी आपसे परिचित हैं, सभी कायल हैं।नमन है सर को।

  2. उपाध्याय जी के संस्मरण-4 एक बार फिर उन दिनों की यादों को ताजा कर गया।मैं वर्णित योजनाओं के कार्यान्यवन का प्रत्यक्षदर्शी रहा हूँ। उस काल की बहुत सी खट्टी-मीठी यादें अनायास ही आंखों के सामने आ गया।धन्यवाद।

  3. संस्मरण -4 के कई यादे फिर से ताजा हो गई।अध्यक्ष श्री मोईत्रा साहब से एक बार व्यक्तिगत रूप से मिलने का अवसर मिला,उनका सरल स्वभाव और आत्मीयता प्रभावित कर गया।

  4. प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल परिस्थिति में बदलने वाला एक ही व्यक्ति जिसका नाम श्री रमेश उपाध्याय है।इसका प्रमाण उपाध्याय बाबु का अररिया क्षेत्रीय कार्यालय पदस्थापना के बाद देखा गया।सरकारी मुलाजिम हो या बड़े कारोबारी कोई भी हमारे बैंक को अन्य बैंकों की तरह समझते ही नहीं थे।वे लोग समझते थे की कॉपरेटिव बैंक की तरह हमारा बैंक भी कभी भी बंद हो सकता है।उपाध्याय जी इस विचार धारा को अपनी मृदुभाषी और दृढ निश्चय से बदलकर दिखा दिया । जिसके बाद जिला पदाधिकारी,प्रखंड विकास पदाधिकारियों ने क्षेत्रीय प्रबंधक से बोलने पर मजबूर हुए की आपके शाखा प्रबंधकों को भेज दे,विभिन्न योजनाओं में खाता खोलना है,और खोले भी।
    उपाध्याय बाबु का बैंक के प्रति समर्पण भाव सबके लिए आदर्श प्रस्तुत करता है।दूसरे व्यबसायिक बैंकों से हमारा बैंक पीछे नहीं रह जाये इसके लिए उपाध्याय जी का नया नया योजना लागू करवाना उपाध्याय जी का दूरदर्शिता का प्रमाण है।पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गिया इंदिरा गांधी का ग्रामीण बैंक खोलने का एक मात्र उद्देश्य था कि ग्रामीण बैंक के माध्यम से छोटे छोटे कारवारीयों/किसानों को ऋण दिलवाकर उनका उत्थान कराना।और इसीलिए ग्रामीण बैंक गांव में ही खोला जाता था।शुरू शुरू में हमारा ग्रामीण बैंक भी ग्रामीण बैंक के उद्देश्य अनुरूप
    न्यूनतम 5/-रु0 से खाता खोलता था और अधिकतम 2500/-रु0 तक छोटे कारवारीयों को ऋण देता था।क्या इतने ही कार्य करने से हमारे बैंक का उद्देश्य सफल होता?और क्या हमलोग अन्य व्यवसायिक बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा में टिक पाते ?हमारे बैंक के अग्रजों ने अपनी दूरदर्शिता का प्रमाण देकर हमारे बैंक को अन्य बैंकों कि तरह उचित सम्मान प्राप्त कराने हेतु तरह तरह के उपाय निकले,जिसमे श्री रमेश उपाध्याय जी का नाम कोसी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है।श्री उपाध्याय जी ने यह महसूस किया था कि जब तक बड़े व्यवसायी हमारे बैंक के साथ नही जुड़ेंगे तब तक हमारे बैंक को कोई बैंक नही समझेगा।इसलिए सबसे पहले हमें बड़े व्यवसायियों को हमारे बैंक के प्रति विश्वास जगाना था और साथ ही साथ बैंक का संसाधन बढ़ाना भी आवश्यक था।इसके लिए श्री उपाध्याय जी ने निर्देशक मंडल से दो जमा योजना पास करवाकर लागु करवाया।जिसमे से KVIP योजना और दूसरा KABY (कोसी अल्प वचत योजना)जिसे Daily deposit योजना भी कहते हैं ।जिसमे एक एक अभिकर्ता का भी बहाली हुआ जो कि व्यवसायियों से मिलकर निश्चित समय के लिए खाता खोलवाकर daily deposit लाता था।इसके लिए अभिकर्ता को deposit के अनुसार कमीशन भी मिलता था।इस प्रकार बड़ा व्यवसायी हमारे बैंक से जुड़े,जिससे हमारे बैंक का संसाधन में काफी बृद्धि हुआ और हमलोग बड़ा ऋण देने में सक्षम हुए।जिससे वार्षिक लाभ भी ज्यादा होने लगा।बैंक के व्यवसाय में बृद्धि के साथ साथ KABY के अभिकर्ता के रूप में बहाली कर किसी के जीवन में खुशियाली लाने जैसा कार्य वही व्यक्ति कर सकता है जिसके मन में हमेसा अच्छा करने की सोच हो, भगवान भी उन्हें सफलता देते है।कोसी अल्प वचत योजना का बिरोध बाद में उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक के कई अध्यक्षों द्वारा होता रहा और योजना को बंद करने हेतु सभी प्रकार का प्रयास किया गया था।लेकिन योजना ही इतना कारगर था और खामियां के बदले अच्छाइयां ही भरा हुआ था , जिस कारण अभी भी अल्प वचत योजना चल ही रहा है।अभी भी अभिकर्ता साथियों ने उपाध्याय जी को भगवान की तरह मानते हैं।
    उपाध्याय जी के साथ काम करने का मौका तो मुझे नहीं मिला है ,लेकिन उनके आस पास ही रहकर उनके पथ निर्देश पर चलकर एक सच्चे सैनिक की तरह बैंक को उच्च शिखर पर पहुँचाने में भरसक प्रयास किया है।
    प्रशांत कुमार घोष,मधेपुरा।

  5. सभी मित्रों को यह संस्मरण अच्छा लग रहा है यही मेरे लिए बहुत है ।पी के घोष जी हर बार कुछ अपनी यादें जोड़ कर इसे और रोचक बनाते हैं जो मुझे और प्रेरित
    करता है ।सच तो यह है कि इन यादों को लिख कर मैं
    एक बार फिर उन दिनों को जीने का प्रयास कर रहा हूँ ।
    आप सब को बहुत बहुत धन्यवाद ।

  6. बात उनदिनों की हैं, मैं स्थाइत्व की तलाश में नजरे फिरा रहा था, एक दिन मेरी बात चित, श्री तरुण कान्ति घोष से हों रही थी, जो प्रधान कार्यालय में थे, उन्होंने पूछा डेली डिपॉजिट एजेंट का काम करोगे, फिर मैं कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के शाखा की तलाश में लगगया जहाँ से मुझे यह काम का अवशर मिले, फिर रौतारा
    में एक एजेंट बहाल हों चूका था पर काम नहीं किया, वही श्री ज्ञान शंकर झा से उन्होंने मुझे मिलवाया, मैं धन्यबाद देकर मैं उनकी श्रद्धा को सीमा में नहीं बांधूगा काफी सहयोग एवं प्यार मिला फिर वारी चेयरमैन श्री मोइत्रा की बारी थी एक सज्जन श्री के, एन, ठाकुर साहब के साथ मिलने गया, चेयरमैन साहब ने स्वयंचाय लाकर दिया, मैं झूठा कप रखने में संकोच करने लगा वे स्वयं आकर मेरे हाथ से झूठा कप लिया, बड़प्पन तो देखा उनकी माँ का तुंरत आ कर बोली डरता क्यों हैं तुमभी मेरा बेटा हीं हैं, अब साक्षात्कार में श्री रमेश उपाध्याय सर की चतुरता ( जिससे मेरा भाग्य बदला )ने पूछा आप अभी क्या करते हैं, मैं सहज बोल पड़ा सर ट्रेक्टर कमीशन एजेंट हू, फिर उन्होंने चेयरमैन सर से मुखातिब हों कर कहा, तब तो चलेगा, इन्हे कमीशन खाने का अभ्यास हैं, फिर शाखा से कार्य करने लगा, तब यूनियन में एक क्षत्र राज करने वाले श्री अरविन्द उपाध्याय से परिचय हुआ, जो अपने साथियो के लिए किसी से भी टक्कर लेने को हमेशा तैयार मिलते थे, यह योजना बैंक के आई, एस, बैच के अधिकांश पधादिकारी ओ द्वारा काफी सराहा, सभी कर्मचारी, पदाधिकारी ओ ने मदद की, बैंक को बाजार में पहचान मिला लोग समझने लगें यह भी अच्छा बैंक हैं, और सर्विस अच्छा देता हैं, काफी सारे उतार चढ़ाव से रु बरु हों चूका हू, इस योजना को बन्द करने का भी षड्यंत्र काफी चला, पर सर्बोच्च न्यायालय ने एक निर्णय दे कर हम एजेंटो को मृतसंजीवनी दे दिया इधर चेयरमैन श्री बी मण्डल ने हमलोगों को वर्कमैन का दर्जा दिया, फिर उत्तरबिहार ग्रामीण बैंक बना पर संघर्ष हैं जो पुनः हमलोगों को अपने आगोश में लेने को आतुर हों गया, पर भला हों सुप्रीम कोर्ट का, हम आज भी हैं, एकबात एक शाखा प्रबंधक श्री अशोक चौधरी ने कहा था लरते रहो कुछ न कुछ तो मिलेगाहीं, अन्त में एकबात कहूंगा इस योजना के जन्मदाता रमेश उपाध्याय हैं, पर यह योजना आज अगर चल रहाहै सत्तर से अस्सी परिवार का जीवन यापन में अरविन्द उपाध्याय का दिमाग, प्यार, के कारण हैं बाकी जो भी कारण रहा हों श्री किशोर कुमार मिश्र का भी सहयोग भुलाया नहीं जा सकता हैं, लाल सलाम, इंकलाब……… जिंदाबाद, संश्था सबसे ऊपर, संस्था हित सबसे जरुरी, संस्था हैं तो हम हैं.

  7. पंकज जी आप तो KABY योजना से शुरुआत से ही जुड़े हुए हैं और हमेशा इस योजना के कार्यान्वयन में आ रही समस्याओं से अवगत कराते रहते थे जिससे हमें उन्हें दूर करने में सहायता मिलती थी ।मेरे सेवा निवृत्ति के बाद भी आपने कई बार बताया कि योजना को बन्द करने का
    षड्यंत्र हो रहा ।हमेशा मैं ने एक ही बात कहा कि कोई भी
    विवेकशील व्यक्ति इसे बन्द नहीं कर सकता है और यह
    योजना तभी बन्द होगी जब आप सभी काम करना छोड़ देगें ।आप हमेशा संघर्ष में सक्रिय व मुखर रहे हैं ।
    अरविंद जी के सहयोग के बारे में जितना लिखा जाए वो
    कम है ।प्रारम्भ से ही वो हर परेशान साथी के लिए लड़
    जाते थे ।उन्होंने इस योजना के सघष॔ में आप सभी का सहयोग किया यह जानकर खुशी हुई ।आप सभी को याद होगा कि इस योजना के चालू होने के बाद से ही नकरात्मक सोच वाले कर्मियों ने काम बढ़ने तथा खर्च
    बढ़ने के नाम पर निरर्थक इसका विरोध करते रहे ।के के मिश्रा जी ने अध्यक्ष को सही स्थिति बताकर आपलोगों
    को सहयोग किया था यह जानकर खुशी हुई ।मुझे तो फख्र है कि आप में से कुछ लोग जब 32 वर्ष के बाद काम
    करना बन्द करेंगे तो KVIP योजना से उतनी राशि लेकर बिदा होंगे जितनी बैंक के पदाधिकारी सेवा निवृत्ति के बाद
    नहीं प्राप्त करेंगे ।

    1. सर, सादर मैं जो भी लिखने का प्रयास कर रहा हूँ, वह हम दैनिक जमाकर्ताओं के दिल से उठी टीस हैं जो वही समझ सकता हैं, जिसे हम जैसा बन कर जीना आता हों, बैंक के प्रति, चाहें बैंक डिपोज़िट (fixed) या बचत खाता खुलवाना ऐसा हर काम हमलोगों ने किया हैं यह जान कर की संस्था हमारी बुनियाद हैं, जवानी कब कट गया पता नहीं चला, बच्चे बड़े होगये, बैंक छोरके कुछ यादहीं नहीं रहा ऋण वसूली हों या जमा संग्रहण, शाखा प्रबंधक द्वारा टास्क दिया जाता था, और हमलोगों ने चुनौती स्वरुप स्वीकार किया, आज बड़े बदलाव दिखाई पररहा हैं f4, f10 पर हीं दुनिया (बैंक कर्मियों )सिमट गई हैं, पर हमलोगों का बैंक के प्रति प्यार एक तरफ़ा हैं, इस बैंक के प्रबंधन, या उनके नजदीकिओ का सोच हमलोगों के प्रति नकारात्मक हीं रहा, सुप्रीम कोर्ट का आदेश सारे बैंको में लागु होगया, पर हमारा बैंक इस मामले को रद्दीकी टोकरी में रख कर चैन की बंशी बजा रहा हैं, मेरे साथ एक मामला 07, 07, 1999. को डकैती के रूप में घटा तत्कालीन अध्यक्ष स्वामी साहब रकम भरपाई हेतु, मेरे KVIP को लिएन कर मुझे 18. 05%पर लोन दिए, ज्ञातव्य हों की मैंने उसदिन सिर्फ अपने दम पर दो डकैत, एक यामाहा मोटरसाइकिल, पकड़ कर रौतारा थाना को दिया, जिसके गवाह तत्कालीन शाखा प्रबंधक अम्बष्ठा सर हैं, और मुझे मेरे सिक्युरिटी पर अम्बष्ठा सर के काफी अनुरोध पर 18. 05 %पर डिमांड लोन दिया गया, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जब आप लोगों के पेंसन पर आया हमलोगो को लगा चलो इतने दिन आप लोगों ने बैंक को दिया, कमसेकम सम्मान जनक बुढ़ापा तो कटेगा, पर हमलोगों की आवाज़को बुलंदी देनेवालों की आस में हम आज भी हैं. एक बात का संतोष आज भी हैं, हमलोगों ही हैसियत आप सबों के आशिर्बाद, बैंक, एवं हमारी ईमानदारी और मेहनत से हैं, समाज में प्रतिष्ठा बैंक के कारण हैं,सादर, पंकज मिश्र

  8. सर, सादर मैं जो भी लिखने का प्रयास कर रहा हूँ, वह हम दैनिक जमाकर्ताओं के दिल से उठी टीस हैं जो वही समझ सकता हैं, जिसे हम जैसा बन कर जीना आता हों, बैंक के प्रति, चाहें बैंक डिपोज़िट (fixed) या बचत खाता खुलवाना ऐसा हर काम हमलोगों ने किया हैं यह जान कर की संस्था हमारी बुनियाद हैं, जवानी कब कट गया पता नहीं चला, बच्चे बड़े होगये, बैंक छोरके कुछ यादहीं नहीं रहा ऋण वसूली हों या जमा संग्रहण, शाखा प्रबंधक द्वारा टास्क दिया जाता था, और हमलोगों ने चुनौती स्वरुप स्वीकार किया, आज बड़े बदलाव दिखाई पररहा हैं f4, f10 पर हीं दुनिया (बैंक कर्मियों )सिमट गई हैं, पर हमलोगों का बैंक के प्रति प्यार एक तरफ़ा हैं, इस बैंक के प्रबंधन, या उनके नजदीकिओ का सोच हमलोगों के प्रति नकारात्मक हीं रहा, सुप्रीम कोर्ट का आदेश सारे बैंको में लागु होगया, पर हमारा बैंक इस मामले को रद्दीकी टोकरी में रख कर चैन की बंशी बजा रहा हैं, मेरे साथ एक मामला 07, 07, 1999. को डकैती के रूप में घटा तत्कालीन अध्यक्ष स्वामी साहब रकम भरपाई हेतु, मेरे KVIP को लिएन कर मुझे 18. 05%पर लोन दिए, ज्ञातव्य हों की मैंने उसदिन सिर्फ अपने दम पर दो डकैत, एक यामाहा मोटरसाइकिल, पकड़ कर रौतारा थाना को दिया, जिसके गवाह तत्कालीन शाखा प्रबंधक अम्बष्ठा सर हैं, और मुझे मेरे सिक्युरिटी पर अम्बष्ठा सर के काफी अनुरोध पर 18. 05 %पर डिमांड लोन दिया गया, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जब आप लोगों के पेंसन पर आया हमलोगो को लगा चलो इतने दिन आप लोगों ने बैंक को दिया, कमसेकम सम्मान जनक बुढ़ापा तो कटेगा, पर हमलोगों की आवाज़को बुलंदी देनेवालों की आस में हम आज भी हैं. एक बात का संतोष आज भी हैं, हमलोगों ही हैसियत आप सबों के आशिर्बाद, बैंक, एवं हमारी ईमानदारी और मेहनत से हैं, समाज में प्रतिष्ठा बैंक के कारण हैं,सादर, पंकज मिश्र

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